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________________ १५६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद श्रवण, धनिष्ठा, यावत् भरणी । [८०९] इस रत्नप्रभा पृथ्वी के सम भू भाग से नवसौ योजन की ऊंचाई पर ऊपर का तारा मण्डल गति करता है । [८१०] जम्बूद्वीप में नौ योजन के मच्छ प्रवेश करते थे, करते हैं और करेंगे । [८११] जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में, इस अवसर्पिणी में ये नौ बलदेव और नौ वासुदेव के पिता थे । यथा [८१२] प्रजापती, ब्रह्म, रुद्र, सोम, शिव, महासिंह, अग्निसिंह, दशरथ और वसुदेव । [८१३] यहाँ से आगे समवायांग सूत्र के अनुसार यावत् एक नवमा बलदेव ब्रह्मलोक कल्प से च्यवकर एक भव करके मोक्ष में जावेंगे-पर्यन्त कहना चाहिए । जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी में नौ बलदेव और नौ वासुदेव के पिता होंगे, माताएं होंगी-शेष समवायाङ्ग के अनुसार यावत्-महा भीमसेन सुग्रीव पर्यन्त कहना चाहिये । [८१४] कीर्तिमान् वासुदेवों के शत्रु प्रतिवासुदेव जो सभी चक्र से युद्ध करनेवाले हैं और स्वचक्र से ही मरने वाले हैं । ८१५] प्रत्येक चक्रवर्ती की नौ महानिधियां है, और प्रत्येक महानिधि नौ नौ योजन की चौड़ी हैं । यथा [८१६] नैसर्प, पाँडुक, पिंगल, सर्वरत्न, महापद्म, काल, महाकाल, माणवक, और शंख । [८१७] नैसर्प महानिधि इनके प्रभाव से निवेश, ग्राम, आकर, नगर, पट्टण, द्रोणमुख, मडंब, स्कंधावार, और घरों का निर्माण होता है । [८१८] पांडुक महानिधि-इसके प्रभाव से गिणने योग्य वस्तुएं यथा-मोहर आदि सिक्के, मापने योग्य वस्तुएँ वस्त्र आदि, तोलने योग्य वस्तुएं-धान्य आदि की उत्पति होती है । [८१९] पिंगल महानिधि-इसके प्रभाव से पुरुषों, स्त्रियों, हाथियों या घोड़ों के आभूषणों की उत्पत्ति होती है ।। [८२०] सर्वरत्न महानिधि-इसके प्रभाव से चौदह रत्नों की उत्पत्ति होती है । . [८२१] महापद्म महानिधि-इसके प्रभाव से सर्व प्रकार के रंगे हुये या स्वेत वस्त्रों की उत्पत्ति होती है । [८२२] काल महानिधि-काल, शिल्प, कृषि का ज्ञान उत्पन्न होता है । [८२३] महाकाल महानिधि-इसके प्रभाव से लोहा, चांदी, सोना, मणी, मोती, स्फटिकशिला और प्रवाल आदि के खानों की उत्पत्ति होती है । [८२४] माणवक महानिधि-इसके प्रभाव से योद्धा, शस्त्र, बख्तर, युद्धनीति और दंडनीति की उत्पत्ति होती है । [८२५] शंख महानिधि-इसके प्रभाव से नाट्यविधि, नाटकविधि और चार प्रकार के काव्यों की तथा मृदंगादि वाद्यों की उत्पत्ति होती है । [८२६] ये नौ महानिधियां आठ-आठ चक्र पर प्रतिष्ठित हैं-आठ-आठ योजन ऊंची हैं, नौ नौ योजन के चौड़े हैं और बारह योजन लम्बे हैं, इनका आकार पेटी के समान है । ये सब गंगा नदी के आगे स्थित हैं ।
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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