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________________ १३६ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद लिये ही उपाश्रय की याचना करूँगा अन्य के लिए नहीं । मैं जिसके घर ( उपाश्रय) में ठहरूँगा उसी के यहाँ से संस्तारक भी प्राप्त होगा तो उस पर सोऊँगा अन्यथा बिना संस्तारक के ही रात बिताऊँगा । मैं जिस घर में ( उपाश्रय) में ठहरूँगा उसमें पहले से बिछा हुआ संस्तारक होगा तो उसका उपयोग करूँगा । सप्तैकक सात प्रकार का कहा गया है । यथा- स्थान सप्तैकक, नैषेधिकी सप्तैकक, उच्चारप्रश्रवण विधि सप्तैकक, शब्द सप्तैक्क, रूप सप्तैकक, परक्रिया सप्तैकक, अन्योन्य क्रिया सप्तैकक । सात महा अध्ययन कहे गये हैं । सप्तसप्तमिका भिक्षु प्रतिमा की आराधना ४९ अहोरात्र में होती है उसमें सूत्रानुसार यावत् - १९६ दत्ति ली जाती है । [५९७] अधोलोक में सात पृथ्वीयाँ हैं । सात घनोदधी हैं । सात धनवात और सात तनुवात है । सात अवकाशान्तर हैं । इन सात अवकाशान्तरों में सात तनुवात प्रतिष्ठित हैं । इन सात तनुवातों में सात धनवात प्रतिष्ठित हैं । इन सात धनवातों में सात धनोदधि प्रतिष्ठित हैं । इन सात धनोदधियों में पुष्पभरी छाबड़ी के समान संस्थानवाली सात पृथ्वीयाँ है । यथाप्रथमा यावत् सप्तमा । इन सात पृथ्वीयों के सात नाम हैं । यथा- धम्मा, वंसा, सेला, अंजना, रिठा, मघा, माघवती । इन सात पृथ्वीयों के सात गोत्र हैं । यथा - रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमप्रभा, तमस्तमाप्रभा । [५९८] बादर (स्थूल) वायुकाय सात प्रकार की कही गई है । यथा- पूर्व का वायु, पश्चिम का वायु, दक्षिण का वायु, उत्तर का वायु ऊर्ध्व दिशा का वायु, अधोदिशा का वायु, विविध दिशाओं का वायु । [५९९] संस्थान सात प्रकार के कहे गये हैं । यथा - १. दीर्घ, २. ह्रस्व, ३ . वृत्त, ४. त्र्यस्त्र, ५. चतुरस्त्र, ६. पृथुल, ७. परिमण्डल । [६०० ] भय स्थान सात प्रकार के कहे गये हैं । यथा - इहलोक भय, परलोक भय, आदान भय, अकस्मात् भय, वेदना भय, मरण भय । अश्लोक-अपयश भय । [६०१] सात कारणों से छद्मस्थ ( असर्वज्ञ) जाना जाता है । यथा - हिंसा करने वाला, झूठ बोलने वाला, अदत्त लेनेवाला, शब्द, रूप, रस और स्पर्श को भोगने वाला, पूजा और सत्कार से प्रसन्न होने वाला । "यह आधाकर्म आहार सावद्य (पाप सहित ) है" इस प्रकार की प्ररूपणा करने के पश्चात् भी आधा कर्म आदि दोषों का सेवन करने वाला । कथनी के समान करणी न करने वाला । सात कारणों से केवली जाना जाता है, यथा- हिंसा न करनेवाला । झूठ न बोलने वाला । अदत्त न लेनेवाला । शब्द, गन्ध, रूप, रस और स्पर्श का न भोगनेवाला । पूजा और सत्कार से प्रसन्न न होने वाला यावत् कथनी के समान करणी करनेवाला । [६०२] मूल गोत्र सात कहे जाते हैं, यथा- काश्यप, गौतम, वत्स, कुत्स, कौशिक, मांडव, वाशिष्ट । काश्यप गोत्र सात प्रकार का कहा गया है, यथा- काश्यप, सांडिल्य, गोल्य, बाल, मौजकी, पर्वप्रेक्षकी, वर्षकृष्ण ।
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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