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________________ स्थान-५/१/४४३ ११३ शरीर के अवयवों का छेदन करता है । मेरे सामने उपद्रव करता है । मेरे वस्त्र, पात्र, कंबल या रजोहरण छीन लेता या दूर फैंक देता है । मेरे पात्रों को तोड़ता है । मेरे पात्र चुराता है । ___ यह यक्षाविष्ट पुरुष है इसलिए यह- मुझे आक्रोश वचन बोलता है यावत् मेरे पात्र चुरा लेता है । इस भव में वेदने योग्य कर्म मेरे उदय में आये हैं । इसलिए यह पुरुष मुझे आक्रोश वचन बोलता है- यावत् मेरे पात्र चुरा लेता है । यदि में सम्यक् प्रकार से सहन नहीं करूंगा । ,, ,, क्षमा नहीं करूंगा । ,, ,, तितिक्षा नहीं करूँगा । ,, ,, निश्चल नहीं रहूँगा । तो मेरे केवल पाप कर्म का बंध होगा । यदि मैं सम्यक् प्रकार से सहन करूंगा । ,, ,, क्षमा करूंगा । ,, ,, तितिक्षा करूंगा । ,, ,, निश्चल रहूँगा । तो मेरे केवल कर्मों की निर्जरा ही होगी । पांच कारणों से केवली उदय में आये हुए परीषहों और उपसर्गों को- समभाव से सहन करता है-यावत् । ,, निश्चल रहता है । यथा- (१) यह विक्षिप्त पुरुष है, इसलिए मुझे आक्रोश वचन बोलता है यावत्-मेरे पात्र चुरा लेता है । (२) यह दृप्तचित्त (अभिमानी) पुरुष हैं, इसलिये- मुझे आक्रोश वचन बोलता है-यावत्- मेरे पात्र चुरा लेता है । यह यक्षाविष्ठ पुरुष है-इसलिये- मुझे आक्रोश वचन बोलता है-यावत्- मेरे पात्र चुरा लेता है । इस भव में वेदने योग्य कर्म मेरे उदय में आये हैं, इसलिए यह पुरुष- मुझे आक्रोश वचन बोलता हैयावत् -मेरे पात्र चुरा लेता है । (५) मुझे सम्यक् प्रकार से सहन करते हुए, क्षमा करते हुए, तितिक्षा करते हुए या निश्चल रहते हुए देखकर अन्य अनेक छद्मस्थ श्रमण निर्ग्रन्थ उदय में आये हुए परीषहों और उपसर्गों को सम्यक् प्रकार से सहन करेंगे-यावत्-निश्चल रहेंगे । [४४४] पांच प्रकार के हेतु कहे गये हैं, यथा- अनुमान प्रमाण के अंग घूमादि हेतु को जानता नहीं है, अनुमान प्रमाण के अंग देखता नहीं है, अनुमान प्रमाण के अंग धूमादि हेतु पर श्रद्धा नहीं करता है । अनुमान प्रमाण के अंग धूमादि हेतु को प्राप्त नहीं करता है । अनुमान प्रमाण के अंग जाने बिना अज्ञान मरण मरता है । पांच प्रकार के हेतु कहे गये हैं, यथा- हेतु से जानता नहीं है, यावत् हेतु से अज्ञान मरण करता है । पांच प्रकार के हेतु कहे गये हैं, यथा- हेतु से जानता है, यावत् हेतु से छद्मस्थ मरण मरता है । पांच हेतु कहे गये हैं, हेतु से जानता है, यावत् हेतु से छद्मस्थ मरण मरता है । पांच अहेतु कहे गये हैं, यथा- अहेतु को नहीं जानता है, यावत् अहेतु रूप छद्मस्थ मरण मरता है । पांच अहेतु कहे गये हैं, यथा- अहेतु से नहीं जानता है, यावत अहेतु से छद्मस्थ मरण मरता है । पांच अहेतु कहे गये हैं, यथा- अहेतु को जानता है-यावत् अहेतु रूप केवलीमरण मरता है । पांच अहेतु कहे गये हैं, यथा- अहेतु से जानता है-यावत् अहेतु से केवली मरण मरता है । पांच गुण केवली के अनुत्तर (श्रेष्ठ) कहे गये हैं-यथा- अनुत्तर ज्ञान, अनुत्तर दर्शन, अनुत्तर चारित्र, अनुत्तर तप, अनुत्तर वीर्य । [४४५] पद्मप्रभ अर्हन्त के पाँच कल्याणक चित्रा नक्षत्र में हुए हैं, यथा- चित्रा नक्षत्र में देवलोक से च्यवकर गर्भ में उत्पन्न हुए । चित्रा नक्षत्र में जन्म हुआ, चित्रा नक्षत्र में प्रव्रजित हुए, चित्रा नक्षत्र में अनंत, अनुत्तर, नियाघात, पूर्ण, प्रतिपूर्ण केवल ज्ञान-दर्शन
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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