SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पाँच अभिग्रह प्रशस्त एवं सदा आचरण योग्य कहे हैं । यथा - अरसजीवी, विरसजीवी, अंतजीवी, प्रान्तजीवी, रुक्षजीवी । १.१० महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पाँच अभिग्रह प्रशस्त एवं सदा आचरण योग्य कहे हैं । यथा - स्थानातिपद - कायोत्सर्ग करने वाला मुनि । उत्कटुकासनिक - उकडु आसन बैटने वाला मुनि । प्रतिमास्थायी - 'एक रात्रिकी' आदि प्रतिमाओं को धारण करने वाला मुनि । वीरासनिक- वीरासन से बैठने वाला मुनि । नैषधिक - पालथी लगाकर बैठने वाला मुनि । महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पाँच अभिग्रह सदा प्रशस्त एवं आचरण योग्य कहे हैं । यथा - दण्डायतिक-सीधे पैर कर सोने वाला मुनि । लगडशायी - आँके वाँके पैर व कमर कर सोने वाला मुनि । आतापक-शीत या ग्रीष्म की आतापना लेने वाला मुनि । अपावृतकवस्त्र रहित रहने वाला मुनि । अकण्डूयक-खाज न खुजाने वाला मुनि । [४३१] पाँच कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ की महानिर्जरा और महापर्यवसान - मुक्ति होती है । यथा - ग्लानि के बिना आचार्य की सेवा करनेवाला, ग्लानि के विना उपाध्याय की सेवा करनेवाला, ग्लानि के विना स्थविर की सेवा करनेवाला, ग्लानि के विना तपस्वी की सेवा करनेवाला, ग्लानि के विना ग्लान की सेवा करनेवाला । पाँच कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ की महानिर्जरा और महापर्यवसान होता है । यथाग्लानि के बिना नवदीक्षित की सेवा करने वाला, कुल की सेवा करने वाला, गण की सेवा करने वाला, संघ की सेवा करने वाला, स्वधर्मी की सेवा करने वाला । [४३२] पाँच कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ साम्भोगिक साधर्मिक को विसंभोगी करे तो जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है । यथा - अकृत्य करनेवाले को । अकृत्य करके आलोचना न करनेवाले को । आलोचना करके प्रायश्चित्त न करनेवाले को । प्रायश्चित लेकर भी आचरण न करनेवाले को । “ अरे ! ये स्थविर ही बार-बार अकृत्य का सेवन करते हैं तो ये मेरा क्या कर सकेगे ।" ऐसा कहने वाले को । पाँच कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ (आचार्य) साम्भोगिक को पाराञ्चिक प्रायश्चित दे तो जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है । यथा- स्वकुल में भेद डालने के लिए कलह करने वाले को । स्वगण में भेद डालने के लिए कलह करने वाले को । हिंसा प्रेक्षी - साधु आदि को मारने के लिए उनका शोध करनेवाले को । छिद्र प्रेक्षी - साधु आदि को मारने के लिए अवसर की तलाश में रहने वाले को । प्रश्न विद्या का बार-बार प्रयोग करने वाले को । [४३३] आचार्य और उपाध्याय के गण में विग्रह ( कलह ) के पाँच कारण हैं । यथाआचार्य या उपाध्याय गण में रहने वाले श्रमणों को आज्ञा या निषेध सम्यक् प्रकार से न करे । गण में रहने वाले श्रमण दीक्षा पर्याय के क्रम से सम्यक् प्रकार से वंदना न करे । गण में काल क्रम से जिसको जिस आगम की बाचना देनी है उसे उस आगम की वाचना न दे । आचार्य या उपाध्याय अपने गण में ग्लान या शैक्ष्य की सेवा के लिए सम्यक् व्यवस्था न करे । गण में रहने वाले श्रमण गुरु की आज्ञा के बिना विहार करे । आचार्य उपाध्याय के गण में अविग्रह ( कलह न होने) के पाँच कारण हैं । यथाआचार्य या उपाध्याय गण में रहने वाले श्रमणों को आज्ञा या निषेध सम्यक् प्रकार से करे | गण में रहने वाले श्रमण दीक्षा पर्याय के क्रम से सम्यक् प्रकार वंदना करे । गण में कालक्रम
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy