SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद कर्म चार प्रकार के हैं । यथा-एक कर्म प्रकृति का बंध शुभ रूप में हुआ और उसका उदय भी शुभ रूप में हुआ । एक कर्म प्रकृति का बंध शुभ रूप में हुआ किन्तु संक्रमकरण से उसका उदय अशुभ रूप में हुआ | एक कर्म प्रकृति का बंध अशुभरूप में हुआ किंतु संक्रमकरण से उसका उदय शुभ रूप में हुआ । एक कर्म प्रकृति का बंध अशुभ रूप में हुआ और उसका उदय भी अशुभ रूप में हुआ । कर्म चार प्रकार के हैं । प्रकृति कर्म, स्थिति कर्म, अनुभाव कर्म, प्रदेश कर्म । [३९४] संघ चार प्रकार का है । यथा- श्रमण, श्रमणियां, श्रावक, और श्राविकायें । [३९५] बुद्धि चार प्रकार की है । उत्पातिया वैनयिकी, कार्मिकी, पारिणामिकी । मति चार प्रकार की है । यथा- अवग्रहमति, ईहामति, अवायमति, और धारणामति । मति चार प्रकार की है । यथा- १. घड़े के पानी जैसी, २. नाले के पानी जैसी, तालाब के पानी जैसी, समुद्र के पानी जैसी ।। [३९६] संसारी जीव चार प्रकार के हैं । यथा- नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य और देव । सभी जीव चार प्रकार के हैं । मनयोगी, वचनयोगी, काययोगी अयोगी । सभी जीव चार प्रकार के हैं । यथा- स्त्री वेदी, पुरुष वेदी, नपुंसक वेदी और अवेदी । सभी जीव चार प्रकार के हैं । यथा- चक्षुदर्शन वाले, अचक्षुदर्शन वाले । अवधि दर्शन वाले, केवलदर्शन वाले । सभी जीव चार प्रकार के हैं । संयत, असंयत, संयतासंयत नोसंयत-नोअसंयत । [३९७] पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा- एक पुरुष इहलोक का भी मित्र है और परलोक का भी मित्र है । एक पुरुष इहलोक का तो मित्र है किन्तु परलोक का मित्र नहीं है । एक पुरुष परलोक का तो मित्र है किन्तु इहलोक का मित्र नहीं है । एक पुरुष इहलोक का भी मित्र नहीं है और परलोक का भी मित्र नहीं है । पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा- एक पुरुष अन्तरंग मित्र है और बाह्य स्नेह भी पूर्ण मित्रता का है । एक पुरुष अन्तरंग मित्र तो है किन्तु बाह्य स्नेह प्रदर्शित नहीं करता है । एक पुरुष बाह्य स्नेह तो प्रदर्शित करता है किन्तु अन्तरंग में शत्रुभाव है । एक पुरुष अन्तरंग भी शत्रु भाव रखता है । और बाह्य व्यवहार से भी शत्रु है ।। पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा- एक पुरुष द्रव्य (बाह्यव्यवहार) से भी मुक्त है और भाव (आसक्ति) से भी मुक्त है । एक पुरुष द्रव्य से तो मुक्त है किन्तु भाव से मुक्त नहीं है । एक पुरुष भाव से तो मुक्त है किन्तु द्रव्य से मुक्त नहीं है । एक पुरुष द्रव्य से भी मुक्त नहीं है और भाव से भी मुक्त नहीं है । पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा- एक पुरुष (आसक्ति से) मुक्त है और (संयत वेष का धारक होने से) मुक्त रूप है । एक पुरुष मुक्त है किन्तु मुक्त रूप नहीं है । एक पुरुष मुक्त रूप तो है किन्तु आसक्ति होने से मुक्त नहीं है । एक पुरुष मुक्त भी नहीं है और संयत वेषभूषा का धारक न होने से मुक्त रूप भी नहीं है । [३९८] पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव मरकर चारों गतियों में उत्पन्न होते हैं और चारों गतियों में से आकर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं । यथा- नैरयिकों से, तिर्यंचों से, मनुष्यों से और देवताओं से । मनुष्य मरकर चारों गतियों में उत्पन्न होते हैं और चारों गतियों
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy