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________________ स्थान-४/४/३८२ १०१ प्रव्रज्या चार प्रकार की है । यथा-खलिहान में शुद्ध की हुई धान्यराशि जैसी अतिचार रहित प्रव्रज्या । खलिहान में उफणे हुए धान्य जैसी अल्प अतिचारखाली प्रव्रज्या । गायटा किये हुए धान्य जैसी अनेक अतिचारवाली प्रव्रज्या । खेत में से लाकर खलिहान में रखे हुए धान्य जैसी प्रचुर अतिचारवाली प्रव्रज्या ।। [३८३] संज्ञा चार प्रकार की है । आहारसंज्ञा भयसंज्ञा मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा। चार कारणों से आहार संज्ञा होती है । यथा-पेट खाली होने से । क्षुधावेदनीय कर्म के उदय से । खाद्य पदार्थों की चर्चा सुनने से । निरन्तर भोजन की इच्छा करने से । चार कारणों के भय संज्ञा होती है । यथा- अल्पशक्ति होने से । भयवेदनीय कर्म के उदय से | भयावनी कहानियाँ सुनने से । भयानक प्रसंगों के स्मरण से । चार कारणों से मैथुन संज्ञा होती है । यथा-रक्त और मांस के उपचय से । मोहनीय कर्म के उदय से । काम कथा सुनने से । भुक्त भोगों के स्मरण से । चार कारणों से परिग्रह संज्ञा होती है । यथा-परिग्रह होने से । लोभ वेदनीय कर्म के उदय से । हिरण्य सुवर्ण आदि के देखने से | धन कंचन के स्मरण से । ३८४] काम (विषय-वासना) चार प्रकार के हैं । यथा- श्रृंगार, करुण, बीभत्स, रौद्र, देवताओं की काम वासना 'श्रृंगार' प्रधान है । मनुष्यों की काम वासना 'करुण' है । तिर्यंचों की काम वासना 'बीभत्स' है । नैरयिकों की काम वासना 'रौद्र' है । [३८५] पानी चार प्रकार के हैं. | यथा-एक पानी थोड़ा गहरा है किन्तु स्वच्छ है । एक पानी थोड़ा गहरा है किन्तु मलिन है । एक पानी बहुत गहरा हैं किन्तु स्वच्छ है । एक पानी बहुत गहरा है किन्तु मलिन है । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष बाह्य चेष्टाओ से तुच्छ हैं और तुच्छ हृदय है । एक पुरुष बाह्य चेष्टाओं से तो तुच्छ है किंतु गम्भीर हृदय है । एक पुरुष बाह्य चेष्टाओं से तो गम्भीर प्रतीत होता है किंतु तुच्छ हृदय है । एक पुरुष बाह्य चेष्टाओं से भी गम्भीर प्रतीत होता है और गम्भीर हृदय भी है । पानी चार प्रकार का है ।यथा- एक पानी छिछरा है और छिछरा जैसा ही दीखता हैं । एक पानी छिछरा है किन्तु गहरा दीखता हैं । एक पानी गहरा हैं किन्तु छिछरा जैसा प्रतीत होता है । एक पानी गहरा है और गहरे जैसा ही प्रतीत होता है । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के है । यथा-एक पुरुष तुच्छ प्रकृति है और वैसा ही दिखता भी है । एक पुरुष तुच्छ प्रकृति है किन्तु बाह्य व्यवहार से गम्भीर जैसा प्रतीत होता हैं । एक पुरुष गम्भीर प्रकृति है किन्तु बाह्य व्यवहार से तुच्छ प्रतीत होता है । एक पुरुष गम्भीर प्रकृति है और बाह्य व्यवहार से भी गम्भीर ही प्रतीत होता है । उदधि (समुद्र) चार प्रकार के हैं । यथा-समुद्र का एक देश छिछरा है और छिछरा जैसा दिखाई देता है । समुद्र का एक भाग छिछरा है किन्तु बहुत गहरे जैसा प्रतीत होता है । समुद्र का एक भाग बहुत गहरा है किन्तु छिछरे जैसा प्रतीत होता है । समुद्र का एक भाग बहुत गहरा है और गहरे जैसा ही प्रतीत होता है । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के है । पूर्वोक्त उदक सूत्र के समान भांगे कहैं । [३८६] तैराक चार प्रकार के है । यथा-एक तैराक ऐसा होता हैं जो समुद्र को तिरने का निश्चय करके समुद्र को ही तिरता है । एक तैराक ऐसा होता है जो समुद्र को तिरने का
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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