SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ૨૮ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २००) सक्कया पायया चैव भणितीओ होंति दोणि वि सरमंडलंमि गिते पसत्या इसिमासिया (२०३ ) (२०१) केसी गायइ महुरं केसी गायइ खरं च रुक्खं च केसीगायइचउरंकेसी यविलंबियंदुतंकेसीविस्सरंपुणकेरिसी ।।५४।1-54 ( २०२ ) सामा गायइ महुरं काली गाय खरं च रुक्खं च गोरी गायइ चउरं काणाय विलंबियं दुतं अंधा विस्तरं पुणपिंगला ॥५५ ॥ ४४ सत्त सरा तओ गामा मुच्छणा एगवीसई ताणा एगूणपन्नासं समत्तं सरमंडलं ॥५६॥ 56 ( २०४ ) से तं सत्तनामे | १२७ -127 (२०५) से किं तं अट्टनामे अट्ठविहा वयणविभत्ती पत्रत्ता तं जहा ।१२८-91-128-1 (२०६) निद्देसे पढमा होइ बितिया उवएसणे तइया करणम्मि कया चउत्थी संपयावणे (२०७) पंचमीय अवायाणे छुट्टी सस्सामिवायणे सत्तमी सत्राणत्ये अट्टमाऽऽमंतणी भवे (२०८) तत्य पढमा विपत्ती निद्देसे-सो इमो अहं व त्ति बिइया पुण उवएसे-मण कुणसु इमं व तंव त्ति (२०९) तइया करणम्मि कया-मणियं व कयं व तेण व मए वा हंदि नमो साहाए हयइ चउत्थी एयाणम्मि (२१० ) अवजय गेण्ह य एत्तो इतो या पंचमी अवायाणे छुट्टी तस्स इमस्स व गयस्स वा सामिसंबंधे (२११) हवइ पुण सत्तमी तं इमम्मि आधारकालभावे य आमंतणी भवे अट्ठमी उ जह हे जुवाण ति काम-ककोह- महासत्तु पक्खनिग्धायणं कुणइ (२१७) सिंगारो नाम रसो रतिसंजोगाभिलासंजणणो अनुओमदारागं- ( २०० ) मंडण - विलास - विबोय -हास - लीला-रमणलिंगो (२१८) महुरं विलास -सलियं हिययुग्मादणकरं जुवाणाणं सामा सहुद्दा दाती मेहलादामं (२१९ ) विम्यकरो अपुव्वो ऽनुभूयपुष्वी य जो रसो होइ हरिसविसायुष्पत्तिलक्खणो अब्धुओ नाम 114311-53 For Private And Personal Use Only 11491157 114211-58 114814-59 Itε011-60 (२१२ ) से तं अटुनामे 19241-128 (२१३ ) से किं तं नवनामे नवनामे- नव कव्यरसा पत्रता [ तं जहा ] ।१२९-१ । (२१४) वीरो सिंगारो अब्मुओ य रोद्दो य होइ बोधव्वो वेलणओ बीभच्छो हासो कलुणो पसंती य (२१५) तत्य परिचायम्मिय तवचरणे सत्तुजणविणासे य अणणुसय-धिति-परक्कमलिंगो वीरो रसो होइ (२१६) सो नाम महावीरो जो रज्रं पयहिऊण पव्वइओ ||६१||-61 ||ER!1-62 ॥६३॥-७३ ॥६४॥1-64 118411-85 ॥६६॥-88 ॥६७॥१-67 ||६८||-88
SR No.009775
Book TitleAgam 45 Anuogdaram Chulikasutt 02 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 45, & agam_anuyogdwar
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy