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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥१०१३.22 ॥१०१४-23 ॥१०१५1-24 19०१६-25 11१०१७1-28 ॥१०१८/27 ।।१०१९1-28 ॥१०२०1-29 अजायण-२१ (१०२८) पोरिसीए घउन्माए वंदित्ताण तओ गुरुं अपडिक्कमित्ता कालस्स भायणं पडिलेहए (१०२५) मुहपोत्तिं पडिलेहित्ता पडिलेहिम गोच्छगं गोछगलइपंगुलिओ वत्याइं पडिलेहए (१०३०) उड्ढं थिरं अतुरियं पुव्वं ता यत्यमेव पडिलेहे तो बिइयं पप्फोडे तइयं च पुणो पम झा (१००) अणञ्चावियं अवलियं अणाणुबंधिअमोसलिंचेय छप्पुरिमा नव खोडापाणीपाणविसोहणं (१०३२) आरमडासम्मदाय ययाय मोसली तइया पप्फोडणा धउत्यी विखित्ता वैइया छट्ठी (१०१३) पसिदिलपलंबलोला एगामोसा अणेगरुवधुणा कुणइपमाणि पसायं संकियगणणोवगंकुआ (१०१४) अणूणाइरित्तपडिलेहा अविवश्वासा तहेवय पढमं पयं पसत्यं सेसाणि उअप्पसत्याई (१०१५) पडिलेहणं कुणंतो मिहो कहं कुणइ जणयपकहवा देवपसक्खाणं वाएर सर्वपडिच्छदवा (१०१६) पुढवी-आउकाए तेऊ-याऊ-यणस्सइ-तसाणं पडिलेहणअपमत्तो छणई पि विराहओ होइ (१०१७) तइपाए पोरिसीए मत्तं पाणं गवेसए छह अन्नयरागपि कारणम्सिमुहिए (२०१८) वेयण धेयावचे इरियष्टाए य संजमठाए तह पाणवत्तियाए छड़ेपुण धम्मचिंताए (२०११) निगयो धिइमंतो निग्गंथी विन करेज छहिंचेव ठाणेहिं उ इमेहिं अणइक्कमणाइ से होइ (१०४०) आर्यके उवसग्गे तितिक्खया बंमचेरगुत्तीसु पाणिदया तवडेउंसरीरवोच्छेयणडाए (१०४१) अवसेसं भंडगं गिज्म चक्खुसा पडिलेहए पुरमद्धजोयणाओ विधरं विहरए मुणी (१०१२) चउत्यीए पोरिसीए निविखवित्ताण मायणं सज्झायंतओकुझा सव्वभावविभावणं (१०) पोरिसीए उमाए वंदित्ताणंतओ गुरुं पडिक्कमित्ता कालस्स सेजंतु पडिलेहए (hon) पासवणुधारभूमि च पडिलेहि जयंजई काउस्सग्गंतओ कुञा सव्वदुक्खविमोक्खणं (१०४५) देसियं च अईयारं चिंतिझा अणुपुब्बसो नाणे यदसणे चेव चरित्तमि तहेवय ।।१०२९30 ॥१०२२।।31 ।।१०२३॥32 11१०२४/33 ।।१०२५-94 19०२६।।36 ॥१०२७138 11१०२८137 ॥१०२९॥38 १०३०॥39 For Private And Personal Use Only
SR No.009773
Book TitleAgam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages114
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 43, & agam_uttaradhyayan
File Size2 MB
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