SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बारसमं असणं-हरिएसिजं (३६०) सोवागकुलसंभूओ गुणुत्तरघरो मुणी हरिएसबलो नाम आसि भिक्खू जिइदिओ (३६१ ) इरिएसणभासाएं उच्चारसमिईसु य राणाणि - १२/१५० जओ आयाणनिक्खेवे संजओ सुसमाहिओ (१६२) मणगुत्तो वयगुत्तो कायगुत्तो जिइंदिओ भिक्खला बंभइजम्प जनवाडं उबडिओ (३६३) तं पासिऊणं एवंतं तवेण परिसोसियं पंतोवहिउवगरणं उवहसंति अणारिया (३६४) जाईमयपडियद्धा हिसगा अजिइंदिया अभचारिणो बाला इमं वयणमब्बवी (३६५) कयरे आगच्छ दित्तरूवे काले विकराले फोकूकनासे ओमचेलए पंसुपिसायए संकरसं परिहरिय कंठे (२११) कयरे तुमं इय अदंसणिजे काए व आसा इहमागओसि ॥ ३६४ ॥ -6 ओमचेलया पंसुपिसायभूया गच्छक्लाहि किमिहं ठिओ सि॥ ३६५॥ - 7 (२६७) जक्खे तर्हि तंदुयरुक्खवासी अणुकंपओ तस्स महामुणिस्स पच्छायइत्ता नियगं सरीरं इमाई वयणाइमुदाहरित्या (३६८) समणो अहं संजओ बंभवारी बिरओ धणपयणपरिग्गहाओ परम्पवित्तस्स उ भिक्खकाले अन्नरस अड्डा इहमागओ मि ॥ ३६७॥ - (३६९) बियरिज्जइ खाइ भुखई अनं पभूयं भवयाणमेवं ॥ ३६६॥ -8 जाणाहि मे जायणजीविणु त्ति सेसावसेसं लभऊ तवस्सी ॥ ३६८ ॥ - 10 (३००) उदक्खड मोयण महानागं अत्तट्ठियं सिद्धमिहेगपक्खं ॥३६९॥ - 11 नऊ वयं एरिसमन्नपाणं दाहामु तुज्नं किमिहं ठिजो सि (३०१) थलेसु बीयाई ववंति कासगा तहेव नित्रेसु य आससाए एयाए सद्धाए दलाए मज्झं आराहए पुण्णमिणं खुखित्तं (१०२) खेत्तामि अम्हं विइयाणि सोए जहिँ पकिष्णा विरुति पुण्णा जे पाहणा जाइविजोववेया ताई तु खेत्ताई सुपेसलाई (१७३) कोहोय माणो य वहो य जेसिं मोसं अदत्तं च परिग्गहं च ते पाहणा जाइबिजाविणा ताई तु खेत्तई सुपाययाई (१०४) तुमेत्य भो मारधरा गिराणं अटुं न जाणाह अहिल वेए उच्चावयाई मुणिणो चरंति ताई तु खेत्ताई सुपेसलाई ( १७५) अज्झावयाणं पडिकूलभासी पमाससे किं तु सगासि अम्हं अवि एवं विणस्सउ अन्नपाणं न प णं दाहामु तुमं नियंठा ( १०६) समिईहि मज्झं सुसमाहियस्स गुत्तोहि गुत्तस्स जिइंदियस्स ।।३५९।। -1 For Private And Personal Use Only ॥३६० ॥ -2 ॥३६१ ॥ -१ ॥३६२॥ -४ 1134301 -5 ॥३७०॥ -12 ॥३७१॥ -13 ॥३२॥ -14 ॥ ३७३॥-15 ॥ ३७४॥-16 जइ मे न दाहित्य आहेसणिखं किमज जाण लहित्य लाहं ॥ ३७५ ॥ -17
SR No.009773
Book TitleAgam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages114
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 43, & agam_uttaradhyayan
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy