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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरमपणाणि-8/16 11१८३॥-8 ||१८४1-7 ॥१८५11-8 ॥१८६||-9 ॥१८७||-10 ||१८८10-11 ||१८९||-12 11१९०11-13 १९१।। -14 (१८४) इत्थीविसयगिद्धेय महारंभपरिग्गहे मुंजमाणे सुरं मंसं परिवूटे परंदमे (१८५) अयकक्करभोइयतुंडिल्ले वियलीहिए आउयं नरए कंखे जहाएस य एलए (१८६) आसणं सपणंजाणं वित्तं कामे य भुजिया दुस्साह घणं हिचा बहुसंचिणियारयं (१८७) तओ कम्मगुरूजंतू पधुपापरायणे अय व्व आगयाएसे मरणंतम्मि सोयई (१८८) तओ आउपरिक्खीणे चुया देहा विहिंसगा आसुरीयं दिसंबाला गच्छंनि अवसा तमं (१८९) जहा कागिणिए हेउं सहस्सं हारए नरो अपत्यं अंबगंमोचा राया रजंतुहारए (१९०) एवं माणुस्सगा कामा देवकामाण अंतिए सहस्सगुणिया मुझो आउंकामा यदिब्बिया (११) अणेगवासानउया जा सा पत्रयओठिई जाणि जीपंति दुम्मेहाऊणे वाससयाउए (११२) जहाय तित्रि वणिया मूलं धेतूण निग्गया एगोऽत्य लहई लाभ एगो मूलेण आगओ (१९३) एगे मूलं पिहारित्ताआगओ तत्य वाणिओ यवहारे उवमा एसा एवं धम्मे वियाणह (१९४) माणुसत्तं भवे मूलं लामो देवगई मवे मूलच्छएणजीवाणं नरगतिरिक्खत्तणं धुयं (१२५) दुहओ गई बालस्स आवई वहमूलिया देवत्तंमाणुसत्तं च जंजिए लोलयासढे (१९१) तओ जिएसई होइदुविहिं दोग्गइंगए दुलहा तस्स उम्मज्जा अखाए सुचिरादवि (१९७) एवं जियं सपेहाए तुलिया षालं च पंडियं मूलियं ते पवेसंति माणुर्सि जोणिमेतिजे (१९८) येमायाहिं सिक्खाहिं जं नरा गिहिसुब्वया उति माणुसंजोणि कामसमाहुपाणिणो (१९९) जेसिं तु विउला सिक्खा मूलियं ते अइच्छिया सीलवंता सविसेसा अदीणा जंति देवयं (१००) एवमदीणवं भिक्खू आगारिच दियाणिया कहपणु जिच्चमेलिस्खं जिनामाणे न संविदे (२०१) जहा कुसग्गे उदगंसमुद्देण समं पिणे एवं माणुसणा कामा देवकामाण अंतिए ||११२||-15 ||१९३||-16 ||१९४||-17 ||१९५||1-18 ॥१९६||-19 १९७1-20 १९८||-21 ||१९९॥-22 १२००11-23 For Private And Personal Use Only
SR No.009773
Book TitleAgam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages114
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 43, & agam_uttaradhyayan
File Size2 MB
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