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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १० www.kobatirth.org. चउत्यं अञ्झणं असंखयं (११६) असंखयं जीविय मा पमायए जरीवणीयस्स हु नत्थि ताणं एवं विजाणाहि जणे पत्ते किष्णुविहिंसा अजया गर्हिति ॥११५॥ - 1 (११७) जे पावकम्मेहिं धणं मणूसा समाययन्ती अमई गहाय पहाय ते पासपयट्टिए नरे वेराणुबद्धा नायं उवेति 1199611-2 ( ११८) तेणे जहा संधिमुहे गहीए सकम्पुणा किचड़ पावकारी एवं एया पेच इहं च लोए कडाण क्रम्माण न मुक्ख अस्थि ( ११९ ) संसारमावत्र परस्स अट्ठा साहारणं जं च करइ कम्पं कम्मस्स ते तस्स उ वेयकाले न बंधवा बंधवयं उर्वेति (१२० ) वित्तेण ताणं न लपे पमत्ते इमम्मि लोए अदुवा परत्या दीवष्णद्वेव अनंतमोहे नेयाउयं दद्रुमदठुमेव (१२१) सुत्तेसुयायी पडिबुद्धजीवी न दीससे पण्डिए आसुपत्रे घोरा मुहुत्ता अवलं सरीरं मारंडपक्खी व चरेऽपमत्ते (१२२) चरे पयाई परिसंकमाणो जं किंचि पासं इह मण्णमाणो लामंत्तरे जीविय बूहड़ता पच्छा परित्राय मलावधंसी (१२३) छन्दंनिरीहेण उयेइ मोक्खं आसे जहा सिक्प्रियवम्मधारी पुव्वाई वासाई चरेप्पमत्ते तम्हा मुणी खिम्पमुवैइ मोक्खं । ( १२४ ) स पुव्यमेवं न लभेज पच्छा एसोक्मा सासयवाइयागं विसीयई सिढिले आउयम्मि कलोवणीए सरीरस्स ए (१२५) खिप्पं न सक्केइ विवेगमेउं तम्हा समुद्वाय पहाय कामे समिा लोयं समया महेसी आयाणरक्खी व घरऽ प्पमत्ती (१२६) मुहं मुहं मोहगुणे जयन्तं अमेगरूवा समणं चरन्तं फासा फुसन्ति असमंजसं च न तेसि भिक्खू मणसा पउस्से ॥१२५॥ - 11 (१२७) मन्दाय फासा बहुलोहणिजा तहप्पगारेसु मणं न कुजा रक्खा कोहं विणएज माणं मायं न सेवेज पहेज लोह Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२८) जे संखया तुच्छपरप्पवाई ते पिनदोसाणुगया परज्झा (१२९) अण्णवंसि महोघंसि एगे तिष्णे दुरुत्तरं तत्थ एगे महापन्ने इमं पण्हमुदाहरे (१३०) संतिमे य दुवे ठाणा अक्खाया मारणंति अकाममरणं चैव सकाममरणं तहा (१३१) बालाणं अकामं तु मरणं असई भये पण्डियाणं सकामं तु उक्कोसेण सई भये उत्तरयणाणि - ४ /११६ For Private And Personal Use Only ॥११७॥1-3 1199211-4 ।।११९।। -5 1192011-6 ॥१२६॥-12 एए अहम्मे ति दुर्गुछमाणी कंखे गुणे जाव सरीरभेउ -त्ति बेमि ॥१२७॥ - 13 • उ अझ समते ● पंचमं अनवणं- अकाममरणिजं 1193911-7 ॥१२२॥ -8 ॥ १२३॥ -७ ||१२४॥ -10 ।।१२८|| -1 ॥१२९॥ -2 1193011-9
SR No.009773
Book TitleAgam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages114
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 43, & agam_uttaradhyayan
File Size2 MB
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