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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १." 1|१५८७1-219 ॥५८८|-214 ।।१५८९॥-215 ||१५९०।-210 |१५९१1-217 १५९२||-218 १५९३||-219 ||१५९४||-220 वमायणं (११७८) उवरिमाउवरिमा चेव इय गेविनगा सुरा विजया वेजयंता यजयंता अपराजिया (१९७९) सव्वत्यसिद्धगावपंचहानुसरा सुरा इय येमाणिया एएउणेगहा एवमायओ (१९८०) लोगस्स एगदेसम्मिते सव्येवि वियाहिया इत्तो कालविभागं तु तेसिंयुष्ठं चउव्यिहं (१९८१) संतई पप्पणाईयाअपञ्जवसियाविय ठिई पडुन साइया सपञ्जवसियाविय (१८२) साहीयं सागरं एक्कंउक्कोसेण ठिई मवे मोमेजाणं जहन्नेणं दसवाससहसिया (१९८३) पलिओवममेगं तु उक्कोसण ठिई मवे वंतराणं जानेणं दसवाससहस्सिया (१६८४) पलिओवममेगंतु यासलखेण साहियं पलिओवमभागो जोइसेतु जहनिया (१९८५) दो चेय सागराइ उक्कोसेण वियाहिया सोहम्मम्मि जानेणं एपंच पलिओवर्म (१९८६) सागरा साहिया दुन्नि उक्कोसेण वियाहिया ईसाणम्पि जहनेणं साहियं पलिओयमं । (१९८७) सागराणि य सत्तेव उक्कोसेगं ठिई मवे सर्णकुमारे जानेणं दुन्नि ऊ सागरोवमा (१९८८) साहिया सागरा सत्त उक्कोसेगंठिई भवे माहिदमिजहणं साडिया दुन्निसागरा (१९८९) दस चेव सागराइं उक्कोसेणं ठिई मवे बंमलोए जानेणं सत्तक सागरोपमा (१९०) चउदस सागराई उक्कोसेण ठिई भवे लंतगंमिजहन्त्रेणं दसउसागरोवमा (10) सत्तरस सागराइंउकोसेणं ठिई भवे महासुक्के जानेणं घोरस सागरोयमा (१९९२) अट्ठारस सागराइं उक्कोसेण ठिई मवे सहस्सारम्मिजहरेणं सत्तरस सागरोयमा (१३) सागरा अउणवीसं तु उक्कोसेण ठिई मवे आणयपिजहनेणं अट्ठारस सागरोवमा (१९९४) वीसं तु सागराई उक्कोसेण लिई भवे पाणयम्मि जहत्रेणं सागरा अउणवीसई १५९५11-221 ||१५९६||-222 ॥५९७॥-223 ॥१५९८1-224 ॥१५९९||-225 ॥१६००11-228 १६०११-227 १६०२11-228 १६०३||-228 For Private And Personal Use Only
SR No.009773
Book TitleAgam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages114
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 43, & agam_uttaradhyayan
File Size2 MB
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