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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६ www.kobatirth.org (१९९०) उराला तसा जे उ चउहा ते पकित्तिया इंदिय इंदिय चउरो पंचिंदिया चैव (१५९१) बेइंदिया उ जे जीवा दुविहा ते पकित्तिया पत्तमपत्ता तेर्सिए सुणे हमे (१५९२) किमिणी सोमंगला चैव अलसा माइवाइया । वासीमुहाय सिप्पिया संख संखणगा तहा (१५९३) पल्लोयाणुल्लया चैव तठेव य बराडगा जलूंगा आलगा चैव चंदणा य तहेव य (१५९४ ) इइ बेइंदिया एएऽ गहा एवमायओ लोगेगदेसे ते सव्वे न सव्वत्य वियाहिया (१५९५) संतई पप्यणाईया अपनयसियाविय ठिइ पडुच साईया सपञ्जवसियावि य (१५९६) वासाई दारसा चैव उक्कोसेण विद्याहिया बेदियाउठिई अंतीम जहत्रिया (१५९७) संखिजकालमुकुकोर्स अंतो मुहुत्तं जहनयं दिपकायठितं कार्यं तु अमुंचओ (१५९८) अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुतं जहन्नयं इंदियजीवाणं अंतरं च वियाहिय (१५९९) एएसिं वण्णओ देव गंधओ रसफासओ संठाणदेसओ वावि विहाणाई सहरससो (१६००) तेइंदिया उ जे जीवा दुविहा ते पकित्तिया पत्तमपत्ता तेर्सि भेए सुणेह मे (१६०१) कुंयुपिवीलिङहंसा उक्कलुदेहिया तहा तणहारकाहारा य मालूगा पत्तहारगा (१६०२) कप्पसङ्किमिंजाय तिदुगा तउसमिंजना सदावरी व गुम्मी य बोधव्वा इंदगाया (१९०३) इंदगोयगमाईया णेगविहा एवमायओ लोगेगदेसे ते सव्वे न सव्वत्य वियाहिया (१६०४) संतई पप्पणाईया अपञ्जवसियादि य ठिई पडुन साईया सपञ्जवसियाविय ( १६०५ ) एगूणपण्णहोरता उक्कोसेणं वियाहिया तेइंदिय आउठिई अंतोमहतं जहत्रिया (१६०६) संखित्रकालमुक्कोर्स अंतोमहतं जहनयं इंदियकायठिई तं कायं तु अमुंचओ (१६०७) अनंतकालमुक्कोसं अंतीमहत्तं जहत्रयं तेइंदियजीवाणं अंतरं तु वियाहियं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only उत्तरपणाणि - २६/१५९० ||१४९९।-126 119400||-128 |1940911-127 ||१५०२|| 128 11940311-129 ॥१५०४॥१-130 ॥१५०५|| 131 ।।१५०६ ।। 132 ॥१५०७॥-133 ||१५०८||-134 ।।१६०९।। 135 11949-11-138 il949911-137 ।।१५१२।।-198 ||१५१३।।-199 119498||-140 ||१५१५॥-141 11949811-142
SR No.009773
Book TitleAgam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages114
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 43, & agam_uttaradhyayan
File Size2 MB
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