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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अणाय.. (१९८) अभिभूयकाएण परीसहाई, समुद्धरे जाइपहाउ अप्पयं। विइतु जाईमरणं महब्मयं, तवेरए सामाणिए जे स भिक्खू || (९९) हत्यसंजए पायसंजए, वायसंजए संजईदिए। अन्झपरएसुसमाहियप्पा,सुतत्यंचवियाणइजेसभिक्खू ॥१५॥ (५००) उवहिन्मि अमुच्छिए अगिद्धे, अनायउंछं पुलनिप्पुलाए। कयविक्कयसन्निहिओविरए, सव्वसंगावगएयजेसभिक्खू ॥४७६।। (५०१) अलोल भिक्खून रसेसु गिज्झे, उठं घरे जीवियनाभिकखे। इहिंघ सक्कारण पूपणं च, चए ठियप्पा अणिहे जे स भिक्खू॥४७७|| (५०२) नपरं वएनासि अपं कुसीले, जेणन्नो कुप्पेञ्ज न तं यएन्जा । जागिय पत्तेयं पुत्रपावं, पत्ताणं न समुक्कसे जे सभिक्खू ॥७॥ (५०३) नजाइमते न यरूवमत्ते, नलामयत्ते नसुएण सत्ते।। मयाणि सव्वाणि विवजइता, धामझाणरएजेस भिक्खू ॥१७९|| (५०४) पयेपए अज्जपयं महामुणी, धमे ठिओ ठाययई परंपि। निक्खम्म वझेज कुसीललिगं, न याविहासंकुहए जेसभिक्खू॥४८०॥ (५०५) तं देहवासं आसुइं असासयं, सयाचए नियहियष्टियप्पा। छिंदित्तुजाईमरणस्सबंधणं,उवेइभिक्खूअपुणागमंगई।-तिबेमि||| दतमं अजायणं तपतं. पदमा चूलिया-रइवक्का (५०) इह खलु भोपब्वइएण उप्पण्णदुक्खेणं संजमे अरइसमावन्नचित्तेणं ओहाणुप्पेहिणा अणोहाइएणं चेव हयरस्सिगयंकुसपोयपडागाभ्याई इमाई अट्ठारस ठाणाई सम्मं संपडिलेहियब्वाई भवंति तं जहा-हं भो दुस्समाए दुप्पजीवी, लहुस्सगा इत्तिरिआ गिहीणं कामभोगा, मुजोय साइबहुला मणुस्सा, इमे प, मे दुक्खे न चिरकालोवाइ भविस्सइ, ओमजणपुरकारे, वंतस्स य पडियाइयणं, अहरगइयासोवसंपया, दुल्लहे खलु भो ! गिहीणं धमे गिहिवासमन्झे वसंताणं, आयंके से वहाय होइ, संकप्पे से वहाय होइ, सोवक्केसे गिहवासे निरुवककेसे परिआए, बंधे गिहवासे मुक्खे परियाए, साव गिहावासे अणयजे परियाए, बहुसाहारणा गिहीणं कामभोगा, पत्तेयं पुत्रपावं, अणिचे खलु मो मणुयाण जीविए कुस'ग जलविंदु चंचले, बहु च खलु पावं कम पगडं, पावाणं च खलु मो कडाणं कापाणं पुयि दुचित्राणं दुष्पडिकंताणं देइत्ता मुक्खो नत्यि अवेयइत्ता तयप्ता वा झोसइत्ता अठारसमं पयं पवइ, [भवइ य इत्य सिलोगो ।२१-1 (५०७) जया य चयई धम्म, अणडो मोगकारणा। से तत्थमुच्छिए वाले, आपईनावबुज्झई (५०८) जया ओहाविओ होइ. इंदो वा पडिओ छमं । सब्दधम्मपरिभठ्ठो, सपच्छा परितप्पड़ ||४८३।।-2 (५०१) जया अवंदिमो होइ, पच्छा होइ अचंदियो। देवया व चुया ठाणा, सपच्छा परितप्पड़ (५१०) जया अ पूइमो होइ, पच्छा होइ अपूइमो । राया वरज्जपमठो, स पच्छापरितप्पइ ॥४८२-1 ॥४८४||-3 For Private And Personal Use Only
SR No.009772
Book TitleAgam 42 Dasavevaliyam Mulsutt 03 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages46
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 42, & agam_dashvaikalik
File Size1 MB
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