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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाहा-६६२ ॥४१४||-413 ।।२२३।। भा.-229 ॥२२४||41-224 It२२५|| पा.-226 ॥२२६॥ पा.-228 ॥२२७॥ मा.-227 ॥२२८॥पा.-228 ॥४१५1414 ॥४१६||-415 (१६२) गारविए काहीए माइले अलस लुद्ध निखम्मे दुलम अत्ताहिद्विय अमणुने वा असंघाडो (६६३) संपाडगरायणिओ अलद्धि ओमो य लद्धिसंपत्रो जेटुग्ग पडिग्गहगंमुह य गारवकारणाएगो (१५४) काहीउ कहेइ कहं बिइओ वारेइ अहव गुरुकहणं एवं सोएगागी माइलो भगं भुजे (५९) अलसो चिरं न हिंडइलुद्धो ओहासए विगईओ निद्धम्मोऽणेसणाई दुलहभिक्खे व एगागी (६५६) अत्ताहिट्ठियजोगी असंखडीओवऽणि सव्येसि एवं सोएगागी हिंहइ उवएसऽनुवदेसा (८६७) सव्वोवगरणमाया असहू आयारमंडगेण सह नयणं तुमतगस्सा नय परिभोगो विणा कले (१६८) आपुच्छणत्ति पदमा विइया पडिपुच्छणायकायव्वा आवस्सिया य तइया जस्स यजोगो चउत्यो छ (६६९) आयरियाईणऽडा ओमगिलाणट्ठया यवहुसोऽदि गेलनखमगपाहुण अतिप्पएऽतिच्छिए यावि (१७०) अनुकंपापडिसेहो कयाइ हिंडेज वा नवा हिंडे अणभोगि गिलाणटा आवस्सगऽसोहइत्ताणं (६७१) आसनाउ नियत्ते कालि पहुप्पंति दूरपत्तोवि अपहुप्पंते तोचिय एगु धरे बोसिरे एगो (१७२) भावासनो समणुन अनओसनसड्ढवेजधरे सालपरवण वेजो तत्येव परोहडे वावि (१७३) एएसिं असईए रापपहे दो धराण वा मन्ने हत्यं हत्यं मुत्तुं मझे एगुधरे बोसिरे एगो (१७४) उपगह काइयवर्श छंडण ववहारु लब्मएतत्य गारविए पन्नवणा तव चेव अनुग्गहो एस (९७५) जइ दोह एग मिक्खा न य वेल पहुपए तओ एगो सव्वेविअत्तलाभीपडिसेहमणुत्र पियधम्मे (१७६) अमणुन्न अनसंजोइया उसव्येविनेच्छण विवेगो बहुगुणतदेक्कदोसे एसणबलवं नउ विगिचे (६७७) इत्यीगहणे यम्मं कहेड्ययठवण गुरुसमीयमि इह वोवर रज्जू भएण मोहोवसम तीए (९७८) साणा गोगा इयो परिहरऽणामोग कुकडनीसा धारइ यदंडएणं वारावे वा अगारेहि (६७१) पडिणीयगेहवनण अणभोगपविट्ट बोलनिक्खमणं मझे तिण्ह धराणं उवओग करेउ गेहेजा ||४१७11416 ॥४१८11417 |२७||प.-27 11४१९11-418 |२०||419 12911-420 11४२२||-421 ४२३||-422 ॥४२४||423 For Private And Personal Use Only
SR No.009770
Book TitleAgam 41A Pindnujjutt Mulsutt 02A Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages78
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 41, & agam_oghniryukti
File Size2 MB
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