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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३९२ ) परिआविजइ खवगो अह गिव्ह अप्पणी इअरहाणी अविदिने उमपाणाइ यद्धो न उगच्छई पुणो जंव माई भद्दगभोई पंतेण उ अप्पणी छाए ( ३९३) ओहासइ खीराई विचंतं वान वाराई लुद्धो जे अगवेसणदोसा एगस्स य ते उ लुद्धस्स ( ३९४ ) नडमाई पिच्छंतो ता अच्छइ जाव फिट्टई वेला सुत्तत्ये पडिबद्धो ओसक्कणुसक्क माईआ ( ३९५) एयद्दोसविमुक्कं कडजोगिं नायसीलमायारं गुरुभत्तिमं विणीयं वेद्यावच्चं तु कारेला (३९५) साइंति य पिअधम्मा एसणदोसे अभिग्गहविसेसे एवं तु विहिग्गहणे दव्वं वर्द्धति गीयत्था (३९७) दव्वम्पमाण गणणा खरिअ फोडिअ तहेव अद्धा य संविग्ग एगठाणे अनेगसाहूसु पनरस (३९८) संघाडेगो ठवणाकुलेसु सेसेसु बालबुड्ढाई तरुणा बाहिरगामे पुच्छादितऽगारीए ( ३९९ ) पुच्छा गिहिणो चिंता दिद्रुतो तत्य खुज्जच्वोरीए आपुच्छिऊण गमणं दोसा य इमे अणापुच्छे (४००) रकिमिअभत्तगदाणे नेहादवहरइ थोव धोवं तु पाहुण विद्याल आगम विसन आसासणादाण (४०१ ) एवं पीइविबुड्ढी विवरीयऽण्णेण होइ दिट्टंतो लोउत्तरे विसेसो असंचया जेण समणा उ (४०२ ) जणलावो परगाने हिंडिताऽऽणेति वसइ इह गामे दिजइ बालाईणं कारणजाए य सुलभं तु (४०३ ) पाहुणविसेसदाने निजर कित्ती य इहर विवरीयं पुव्वं चमढणसिग्गा न देति संतंपि कजेसु (४०४) गामबभासे वयरी नीसंदकडुफला य खुज्जा य पक्कामालसडिंभा घा यति घरे गया दूरे (४०५) गाममा बयरी नीसंदकडुप्फला य खुजा य पक्का भालसडिंभा खायंतियरे गया दूरं (४०६ ) सिग्घपरं आगमणं नेसिऽण्णेसिं च देति सयमेव खायंती एमेव उ आयपरहिआवहा तरुणा (४०७) खीर दहिमाइयाणं लंभो सिग्घतरगं च आगमणं पइरिकूक उग्गमाई विजढा अनुकंपिआ इयरे (४०८) आपुच्छिअ उग्गाहिअ अण्णं गामं वयं तु वद्यामो अण्णं च अपजत्ते होंति अपुच्छे इमे दोसा (४०९) तेणाएसगिलाणे सावय इत्थी नपुसं मुच्छा य आयरिअबालवुड्ढा सेहा खमगाय परिवत्ता For Private And Personal Use Only ओहति (३९२ ) ॥२०१५.-20 ||२१||५.-21 ॥२२॥ प.-22 ॥१३४॥ पा. - 134 ॥१३५॥ था. 135 ||१३६|| मा. 136 १३७॥ भा. 137 ॥२४०॥-299 ।।१३८।। मा.-138 ।।१३९ । मा.-139 ॥१४०॥ मा. 140 1989)|4.-141 ॥१४२॥ मा.-142 ||१४३|| मा.-143 ॥१४४॥ पा.- 144 ११४५ ॥ प. 145 ||१४६|| मा.-146 ॥१४७ मा. 147
SR No.009770
Book TitleAgam 41A Pindnujjutt Mulsutt 02A Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages78
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 41, & agam_oghniryukti
File Size2 MB
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