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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहार • 110 अपलिउंचिए पलिउंचियं पलिउंचिए अपलिउंचियं पलिउंचिए पलिउंचियं, पलिउंचिए पलिउंचियं आलोएमाणस सव्वमेयं सकयं साहणिय जे एयाए पटवणाए पटदिए निविसमाणे पडिसेवेइ से विकसिणे तत्येव आरुहेयब्बे सिया।१७1-17 (१८) (एवी जे भिक्खू बहुसोयि [चाउमासियं या बहसोयि साइरेगचाउम्मासियं या बहुसोयि पंचमासियं वा बहुसोवि साइरेगपंचमासियं वा एएसि परिहारहाणाणं अण्णयरं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा पलिउंचियं आलोएमाणे ठवणिज्नं ठवइत्ता करणिशं वेयावडियं ठविए वि पडिसेवित्ता से विकसिणे तत्येव आरुहेयव्वेसिया पुञ् िपडिसेवियं पुचि आलोइयं पुदि पडिसेवियं पच्छा आलोइयं पच्छा पडिसेवियं पुबि आलोइयं पच्छा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं अपलिउंचिए अपलिउंचियं अपलिउंचिए पलिउंधियं पलिउंचिए अपलिउँचियं पलिउंचिए पलिउंचियं पलिउंचिए पलिचियं लोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणियं जे एयाए पट्ठवणाए पट्टविए निविसमाणे पडिसेवेइ से विकसिणे तत्येव आरुहेयव्दे सिया] १८1-18 (११) बहवे पारिहारिया यहवे अपारिहारिया इच्छेज्जा एगयओ अभिनिसेकं वा अभिनिसीहियं वा एत्तए नो से कप्पइथेरे अगापुच्छित्ता एगयओ अभिनिसेझं वा अभिनिसीहियं वा चेएतए कप्पड़ ण्डं थेरे आपुच्छिता एगयओ अभिनिसेनं वा अभिनिसीहियं वा एत्तए थेराय ण्हं से नो वियरेजा एवण्हं कप्पइ एगयओअमिनिसेचं वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तएथेरायण्हं से नो वियरेशा एय एहं नो कप्पड़ एगयओ अभिनिसेझं या अभिनिसीहि या चेएत्तए जो णं थेरेहि अविइण्णे अभिनिसेज़ अभिनिसीहियं याचेएइ से संतरा छेए वा परिहारे वा ।१५।-20 (२०) परिहारकप्पटिए भिक्खू बहिया घेराणं वेयावडियाए गच्छेजा थेरा य से सरेशा कप्पई से एगराइयाए पडिमाए मण्णं-जाणं दिसं अण्णे साहम्मिया विहरति तण्णं तणं दिसं उवलितए नो से कप्पइ तत्य विहारवतियं वत्यए कम्पति से तत्थ कारणवत्तियं वत्यए तंसि चणं कारणंसि निद्वियंसि परो वएज्जा-वसाहि अजो एगरायं वा दुरायं वा एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्यए नो से कपइ परंएगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्यए जंतत्य परं एगसयाओ वा दुरायाओ या वसइसे संतरा छेए वा परिहारे वा।२७। (२१) परिहारकप्पडिए मिक्खू बहिया घेराणं वेपावडियाए गच्छेगा रा य नो सरेरणा कपति से निविसमाणस्स एगराइयाए पडिमाए जणं-जाणं दिसि अन्ने साहम्मिया विहरंति तपण-तण्णं दिसं उवलित्तए नो से कपति तत्थ विहारदत्तिय वत्यए कप्पति से तत्थ कारणवत्तियं वत्यए तंसि च णं कारणंसि निहियंसि परोवएज्जा-वसाहि अन्जो एगरायं वा दुरायं वा एवं से कप्पइ एगरायं या दुराय वा वत्यए नो से कपड़ पाएगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्यए जंतत्य परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ से संतरा छेए वा परिहारे दा|२१121 (२२) परिहारकप्पहिए भिक्खू बहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छेजा थेरा य से सरेज वा नो वा सरेजा कप्पइ से निबिसमाणस्स एगराइयाए पडिमाए जणं-जण्णं दिसिं अण्णे साहम्मिया विहरति तण्णं तणं दिसं उलवलित्तए नो से कप्पति तत्य विहारवत्तियं वत्यए कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्यए तंसि चणं कारणंसि निट्ठियसि परो वएजा-वसाहि अञ्जो एगरायं वा दुरायं वा एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं या वत्यए नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्यए जं' तत्थ परं एगरायाओ यादुरायाओ या वसइसे संतराछेए वा परिहारे वा।२२१-22 For Private And Personal Use Only
SR No.009764
Book TitleAgam 36 Vavahara Chheysutt 03 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages38
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 36, & agam_vyavahara
File Size1 MB
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