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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ववहार - १० / २४९ अससणिद्धे आगच्छइ आईपव्वे ससरक्खे आगच्छइ नो आईयब्वे अससरक्खे आगच्छइ आईवे जाए मोए आईय तं जहा- अप्पे वा बहुए वा एवं खलु एसा महल्लिया मोयपडिमा अहासुतं अहाकष्पं अहमगं अहातचं सम्मं कारण फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आणाए अनुपालिया मवइ ।४१।-41 (२४४) संखादत्तियस्स णं भिक्खुस्स पडिग्गहधारिस्स जावइयं - जावइयं केइ अंतो पडिग्गसि उवित्ता दत्तएज्जा तावइयाओ ताओ दत्तीओ बत्तव्यं सिया तत्य से केइ छव्वेण वा दूसएण वा चालएण वा अंतो पडिग्गंहंसि उवित्ता दलएज्जा सव्वा वि णं सा एगा दत्ती बत्तव्वं सिया तत्य से बहवे भुंजमाणा सव्वे ते सयं पिंड अंतो पहिग्गहंसि उवित्ता दलएचा सव्वा विणं सा एगा दत्ती दत्तव्वं सिया । ४२ -42 ( २४५) संखादत्तियस्स णं भिक्खुस्त पाणिपडिग्गहियस्स जायइयं जावइयं केइ अंतो पार्णिसि उविता दलएज्जा तावइयाओ ताओ दत्तीओ वत्तव्वं सिया तत्व से केइ छव्वेण वा दूसएण वा वालएण वा अंतो पार्णिसि उवित्ता दलएज्जा सव्वा वि णं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया तत्थ से बहवे जमाणा सव्वे ते सर्व पिंडं अंतो पाणिसि उचित्ता दलएञ्जा सव्वा विणं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया |४३|-43 (२४६ ) तिविहे उवहडे पत्रत्ते तं जहा सुद्धोचहडे फलिओचहडे संसठ्ठीबहडे । ४४ । -44 (२४७) तिविहे ओग्गहिए पत्रत्ते तं जहाजं च ओगिण्हइ जं च साहरइ जं च आसगंसि पक्खियइ एगे एवमाहंसु । ४५ ।-45 (२४८) एगे पुण एवमाहंसु दुविहे ओग्गहिए पत्रत्ते तं जहा-जं च ओगिण्हइ जंच आसगंसि पक्खिवइति वेमि । ४६ । - 48 नवमो उद्देसो समत्तो दसमो - उद्देसो (२४९) दो पड़िमाओ पत्रत्ताओ तं जहा जवमज्झा य चंदपडिमा बइरमज्झा य चंदपडिया, जयमज्झणं चंदपडिमं पडिवत्रस्स अणगारस्स पासं निघं वोसट्टकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पर्ज्जति तं जहा- दिव्वा वा माणुसा वा तिरिक्खजोणिया वा अनुलोमा वा पडिलोमा वा - तत्य अनुलोमा ताव वंदेखा वा नमसेज्जा वा सक्कारेञ्जर वा सम्माणेजा या कल्लाण मंगलं देवयं चेइयं पजुवासेज्जा तत्य पडिलोमा अण्णयरेणं दंडेण वा अट्टीण वा जोत्तेण वा वेत्तेण वा कसेण वा काए आउडेजा-ते सव्वे उप्पन्ने सम्मं सहेज्जा खपेज्जा तितिक्खेज्जा अहियासेज्जा जवमज्झष्मं चंदपडिमं पवित्रस्स अणगारस्स सुक्कपक्खस्स पाडिवए कप्पइ एगा दत्ती भोयणस्स पडिगाहेत्तए एगा पाणस्स अण्णायउंछं सुद्धोवहडं निज्जू हित्ता बहवे समण-माहण- अतिहि- किवण-वणीमगा कप्पइ से एगस्स भुंजमाणस्स पडिगाहेत्तए नो दोण्हं नो चउन्हं नो गुब्विणीए नो बालवच्छए नो दारगं पेजमाणीए नो अंतो एलुयस्स दो वि पाए साहद्दु दलभाणीए नो बाहिं एलुयस्स दो वि पाए साहड दलमाणीए एगं पायं अंतो किच्चा एगं पायं बाहिं किच्चा एलुयं विक्खंभइत्ता एवं दलवई एवं से कप्पइ पडिगाहेत्तए एवं नो दलयइ एवं से नो कप्पइ पडिगाहेत्तए विइज्जाए से कप्पइ दोण्णि दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेतए दोणि पाणस्स तइयाए से कप्पइ तिण्णि दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए तिष्णि पाणस्स चउत्थीए से कप्पइ चउ दत्तीओ पोयणस्स पडिगाहेत्तए चउ पाणस्स पंचमीए से For Private And Personal Use Only
SR No.009764
Book TitleAgam 36 Vavahara Chheysutt 03 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages38
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 36, & agam_vyavahara
File Size1 MB
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