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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यवहार - ५/१४५ आलोएत्तए अस्थियाइं त्य केइ आलोयणारिहे कप्पइ पहं तस्स अंतिए आलोएत्तए नत्थियाइं स्थ के आलोयणारिहे एवण्हं कप्पइ अण्णमण्णस्स अंतिए आलोएत्तए।१९।-19 (१४६) जे निग्गंथा य निग्गंधीओ य संभोइया सिया नो हं कप्पइ अण्णमण्णस्स वेयावचं कारवेत्तए अस्थियाई त्य केइ चेयावच्चकरे कप्पई पहं वेयावच्चं कारवेत्तए नस्थियाई त्य केइ देयावच्चकरे एव ण्हं कप्पइ अण्णमण्णस्स घेवावचं कारवेत्तए।२०|-20 (१४७) निगंधं च णं राओ वा वियाले वा दीहपट्ठो लूसेजा इत्थी वा पुरिसं ओमज्जेज्जा पुरिसो वा इत्यि ओमेजेज्जा एवं से कप्पइ एवं से चिट्ठइ परिहारं च नो पाउणइ-एस कप्पे थेरकप्पियाण एवं से नो कप्पइएवं से नो चिट्ठइ परिहारं च पाउणाइ-एस कप्पे जिनकप्पियाणं ।२१1.21 •पंचमो उद्देसो समत्तो. छटो-उद्देसो (१४८) भिक्खू व इच्छेजा नायविहिं एत्तए नो से कप्पइ थेरे अणापुछित्ता नायविहिं एतए कप्पइ से थो आपुच्छित्ता नायविहिं एत्तए थेरा य से वियरेशा एवं से नो वियरेज्जा एवं से नो कप्पइ नायविहि एतए जं तस्य थेरेहिं अविइण्णे नायविहिं एइ से संतरा छेए वा परिहारे वा नो से कप्पइ अप्पुसुपस्स अप्पागमस्स एगाणिवस्स नावविहिं एतए कप्पइ से जे तत्थ बहुस्सुए बभागमे तेण सद्धि नायविहिं एत्तए तत्य से पुबागमणेणं पुब्बाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउत्ते मिलिंगसूवे कप्पइ से चाउलोदणे पडिग्गाहेत्तए नो से कप्पइ भिलिंगसूवे पडिग्गाहेत्तए । तत्थ से पुव्वागपणेणं पुब्बाउत्ते भिलिंगसूवे पच्छाउत्ते चाउलोदणे कप्पइ से भिलिंगसूवे पडिग्गाहेत्तए नो से कप्पइ चाउलोदणे पडिग्गाहेत्तए तत्य से पुच्चागमणेणं दो वि पुवायउत्ते कप्पइ से दो वि पडिग्गाहेत्तए तत्थ से पुवागमणेणं दो वि पञ्चाउते नो से कप्पइ दो विपडिग्गाहेत्तए ।91-1 (१४९) आयरिय-उवज्झायस्स गणंसि पंच अइसेसा पन्नत्ता तं जहा-आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स पाए निगिन्झिव-निगिन्झिय पफोडेपाणे या पमञ्जमाणे वा नातिक्कमति आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स उच्चार-पासवणं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा नातिक्कमति आयरिय-उवज्झाए पमू वेयावडियं इच्छाए कोजा इच्छाए नो करेजा आयरियउक्झाए अंतो उवस्सयस्स एगरायं वा दुरायं या वसमाणे नातिक्कमति आयरिय-उवज्झाए बाहिं उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं या वसमाणे नातिक्कमति।२1-2 (१५०) गणायच्छेइयस्स गणंसि दो अइसेसा पत्रत्ता तं जहा गणावच्छेइए अंतो उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा यसमाणे नातिक्कमति गणावच्छेइए बाहिं उवस्सयस्स एगाणिए एगरावं वा दुरायं वा वसमाणे नातिककमति ३१3 (१५१) से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा एगवगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए नो कप्पइ बहूणं अगडसुयाणं एगयओ वस्थए अस्थियाई त्य केइ आयारपकप्पधरे नस्थियाइं त्य केइछेए वा परिहारे वा नत्थियाई स्थ केइ आयार पकप्पधरे से संतरा छेए वा परिहारे वा।।।4 (९५२) से गामंसि वा जाव सनिवेसंसि या अभिनिव्वगडाए अभिनिदुवाराए अपिनिकलमण-पर्वसाए नो कप्पइ बहूण वि अगडसुयाणं एगयओ वस्थए अस्थियाई त्य केइ आयारपकप्पधरे जे तत्तियं रयणि संवसइ नत्थियाई त्य केइ छए या परिहारे वा नत्थियाइं त्य केइ आयारपकप्पधरे जे तत्तियं स्वणि संवसइ सब्वेसि तेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा ।५।-5 For Private And Personal Use Only
SR No.009764
Book TitleAgam 36 Vavahara Chheysutt 03 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages38
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 36, & agam_vyavahara
File Size1 MB
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