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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૪ बबहार - ४ / १२२ (१२२) दो आयरिय उवज्झाया एगयओ विहरति नो हुं कप्पइ अण्णमण्णमणुवसंपचित्ताणं विहरितए कम्पइ हं अहाराइणियाए अन्नमन्नं उबसंपजित्ताणं चिहरितए । २८/-29 (१२३) बहवे भिक्खुणो एगयओ विहरंति नो एवं कप्पइ अण्णमण्णमणुवसंपरित्ताणं विहरित कप्पड़ हं अहाराइणियाए अन्नमन्नं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए । २९।-29 (१२४) बहवे गणावच्छेइया एगयओ विहरति नो हं कप्पइ अण्णमण्णमणुवंसपञ्जित्ताणं विहरित्तए कप्पड़ हं अहाराइणियाए अण्णमण्णं उवसंपत्रित्ताणं विहरित्तए । ३०/-30 (१२५) बहवे आयरिय-उवज्झाया एगयओ विहरति नो हं कप्पइ अण्णमण्णमणुवसंपचित्ताणं विहरित्तए कप्पइ हं अहाराइणियाए अण्णमण्णं उवसंपत्रित्ताणं विहरित्तए । ३१/- 31 (१२६) यहवे भिक्खुणो वहवे गणावच्छेइया बहवे आयरिय-उवज्झाया एगयओ विहरति नो हं कप्पइ अण्णमण्णमणुवसंपजित्ताणं विहरित्तए कम्पइ हं अहाराइणियाए अण्णमण्णं उवसंपचित्ताणं विहरित्तए । ३२/- 32 चउत्यो उद्देसो समसो पंचमो - उद्देसो (१२७) नो कप्पइ पवत्तिणीए अप्पबिइयाए हेमंतगिम्हासु चारए 1961 (१२८) कप्पड़ पवत्तिणीए अप्पतइयाए हेमंतगिम्हासु चारए । २1-2 (१२९) नौ कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पतइयाए हेमंतगिम्हासु चारए । ३+३ (१३०) कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पचउत्थाए हेमंतगिम्हामु घारए ।४।-4 (१३१) नो कप्पइ पवत्तिणीए अप्पतइयाए वासावासं वत्यए । ५। -5 (१३२) कप्पड़ पवत्तिणीए अप्पचउत्याए वासावासं वत्यए । ६ +6 (१३३) नो कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पचउत्याए यासावासं यत्यए 191-7 (१३४) कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पपंचमाए वासावासं बल्यए १८ - ( १३५ ) से गामंसि वा जाव सत्रिवेसंसि वा बहूणं पवत्तिणीणं अप्पतइयाणं बहूणं गणावच्छेइणीणं अप्पचउत्थाणं कप्पइ हेमंतगिम्हासु चारए अण्णमण्णनीसाए ।९/-9 ( १३६ ) से गामंसि या जाब सन्निवेसंसि वा बहूणं पवत्तिणीणं अप्पचउत्याणं बहूणं गणावच्छेइणीणं अप्पपंचमाणं कप्पड़ वासावासं वत्यए अण्णमण्णनीसाए 1901-10 (१३७) गामानुगामं दूइनमाणी निग्गंधी य जं पुरओ काउं विहरइ सा आहच वीसंभेज्जा अस्थियाई थकाइ अण्णा उवसंपजणारिहा सा उवसंपजियव्वा नत्थियाई त्य काइ अण्णा उवसंपज्रणारिहा तीसे य अप्यणो कप्पाए असमत्ते कप्पइ से एगराइयाए पडिमाए जष्णं-जणं दिसं अण्णाओ साहम्मिणीओ विहरति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्यए कप्पर से तत्व कारणवत्तियं घत्यए तंसि च णं कारणंसि निद्वियंसि परा यएज्जा -साहि अजे एगरायं वा दुरायं या एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्यए नो से कप्पड़ परं एगरायाओ चा दुराया ओवा वत्वए जं तत्व परं एगरायाओ वा दुराचाओ वा वसई से संतरा छेए वा परिहारे वा 1991-11 (१३८) वासावासं पजोसविया निग्गंधी य जं पुरओ काउं विहरइ सा आहच वीसंमेजा अस्थियाई त्य काइ अण्णा उवसंपजणारिहा सा उवसंपज्जियव्वा नत्थियाई स्थ काइ अण्णा उवसंपणारिहा तीसे य अप्पणो कप्पाए असमत्ते कप्पड़ से एगराइबाए पडिमाए जणं जणं दिसं अण्णाओ साहम्मिणीओ विहरति तण्णं-तण्णं दिसं उबलित्तए नो से कप्पइ तत्व विहारवत्तियं For Private And Personal Use Only
SR No.009764
Book TitleAgam 36 Vavahara Chheysutt 03 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages38
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 36, & agam_vyavahara
File Size1 MB
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