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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ववहार - ४/१०३ उवझायाणं अप्पबियाणं बहूणं गणावच्छेइयाणं अप्पतइयाणं कप्पइ हेमंतगिम्हासु चरितए अन्नमन्ननिस्साए (१०४) से गामंसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा रावहाणीए वा खेडंसि वा कब्बडंसि वा पडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आसमंसि वा संवाहंसि वा सत्रिवेससि वा बहूणं आयरियंउबन्झायणं अप्पतइयाणं बहूणं गणावळेइयाणं अप्पचउत्थाणं कप्पइ वासावासं वथए अण्णमण्णनिस्साए।१०-10 (१०५) गामाणुगामं दूइजमाणो भिक्खू य जं पुरओ कट्ट विहरइ से य आहघ वीसंभेजा अस्थियाई स्थ अण्णे केइ उवसंपज्जणारिहे से उवसंपजिपव्वे नत्थियाई स्य अण्णे के उवसंपनणारिहे अप्पणो य से कपाए असमत्ते एवं से कपइ एगराइयाए पडिमाए जण्णं-जाणं दिसं अन्ने साहम्भिया विहरति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वस्थए कप्पड़ से तत्य कारणवत्तियं वत्यए तसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परो वएशा-वसाहि अज्जो एगरायं वा दुरायं वा एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वस्थए नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओबावस्थएजंतत्थपरंएगरायाओवादुरायाओवावसइसे संतराछेए वापरिहारेवा।११1-11 (१०६) घासावासं पञोसविओ भिक्खू जं पुरओ कटु विहरइ से य आहच वीसंपेजा अस्थियाइंस्थअण्णे केइ उवसंपजाणारिहे से उवसंपजिचव्वे नस्थिवाइं स्थ अण्णे के उपसंपनणारिहे अप्पणो य से कप्पाए असमते एवं से कपड़ एगराइयाए पडिमाए जणं-जण्णं दिसं अण्ण साहभिया विहांति तपण-तण्णं दिसं उवलित्तए नो से कपइ तत्थ विहारवत्तियं वत्यए कप्पड़ से तत्य कारणवत्तियं वथए तसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परो वएजा-वसाहि अञ्जो एगरावं वा दुरायं वा एवं से कपइ एगरायं वा दुरायं वा वस्थए नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वस्यए जंतत्थ परं एगरायाओया दुरायाओ वा वसइ से संतरा छेए वा परिहारे वा।१२।-12 (१०७) आयरिय-उवज्झाए गिलायमाणे अण्णयां वएज्जा-अजो ममंसि णं कालगयंसि समाणंसि अयं समुक्कसियव्वे से य समुक्कसणारिहे समुक्कसिवब्बे से य नो समुक्कसणारिहे नो समुक्कसियब्वे अस्थियाई त्य अण्णे केइ समुक्कसणारिहे से समुक्कसियव्ये नत्थियाई स्य अण्णे केइ समुक्कसणारिहे से चेव समुक्कसियव्ये तंसि च णं समुक्किट्ठसि परो वएज्जादुस्समुक्किट्ठ ते अज्जो निखिवाहि तस्स णं निखिवमाणस्स नत्यि केइ छेए वा परिहारे वा जे तं साहम्मिया अहाकपेणं नो उडाए विहरति सव्वेसिंतेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा।१३|-13 (१०८) आयरिय-उवज्झाए ओहायमाणे अण्णयां वएजा-अञ्जो ममंसि णं ओहावियंसि सपाणंसि अयं समककसियध्वे से य समककसणारिहे समककसियध्वे से य नो समककसणारिहे नो समुक्कसियव्वे अस्थियाई त्य अण्णे केइ समुक्कसणारिहे से समुक्कसियव्वे नस्थियाइं त्य अण्णे केइ समुक्कसणारिहे से चेव समुक्कसियब्वे तंसि च णं समुक्किट्ठसि परो वएज्जादुस्समुकिकट्ठ ते अजो निक्खिवाहि तस्स णं निक्खिवमाणस्स नत्थि केई छेए वा परिहारे वा जे तं साहम्मिया अहाकप्पेणं नो उहाए विहरति सब्वेसिंतेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा।१४1-14 (१०२) आपरिय-उवज्झाए सरमाणे परं चउरावाओ पंचरायाओ कप्पागं भिक्खु नो उवडावेइ अस्थियाइत्व से केइ माणणिज्जे कप्पाए नत्यि से केइ छेए वा परिहारे वा नत्थियाइं त्य से केइमाणणिजे कापाए से संतरा छेए वा परिहारे वा 1941-15 (११०) आयरिय-उवज्झाए असरमाणे परं चउरायाओ पंचरायाओ कप्पागं भिक्खू नो For Private And Personal Use Only
SR No.009764
Book TitleAgam 36 Vavahara Chheysutt 03 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages38
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 36, & agam_vyavahara
File Size1 MB
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