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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सदसो-१६ (१०८७) जे भिक्खू दुगुंछियकुलेसु वसहिं पडिग्गाहेति पडिग्गाहेंतं वा सातिअति।२९।-29 (१०४८) जे मिक्खू,गुंछियकुलेसुसज्झायं उद्दिसति उद्दिसंतं वा सातिञ्जति ।३०।-30 (१०८९) जेभिक्खूगुंछियकुलेसुसज्झायं वाएति वाएतं वा सातिजति।३31-31 (७०९०) जे भिक्खू दुगुछियकुलेसु सज्झायं पडिच्छति पडिछंतं वा सातिअति ३२32 (१०९१) जे भिक्खू असणं वा जाव पुढवीए निखिवति निखिवंतं वा सा०३३।-33 (१०९२) जे भिक्खू असणं वाजाव संथारए निक्खियति निखिवंतं वा सा० १३४६34 (१०९३) जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा येहासे निक्खिवंतं वा सातिञ्जति।३५/-35 (१०९४)जे मिक्ख अण्णउत्थिएहिवागारथिएहिंवा सद्धिं भजति भंजंतवासा०1३138 (१०१५) जे मिक्खू अण्णउत्यिएहिं वा गारत्यिएहि वा सद्धिं आवेदिय-परिवेढिए मुंजति मुंजतं वा सातिजति ।३७१-37 (१०९५) जे भिक्खू आयरिय-उवज्झायणं सेजा-संधारयं पाएणं संघहेता हत्येणं अणणुण्णावेत्ता घारयमाणो गच्छति गच्छंतं वा सातिजति ।३८438 (१०१७) जे मिक्खू पमाणातिरित्तं वा गणणातिरितं वा उयहिं धरेति धरेत वा०३९।-39 (१०९८) जे भिक्खू अनंतरहियाए पुढवीए उच्चार-पासवणं परिष्ठवेति परिट्टवेतं वा सातिजति ।।०1-40 (१०९९) जे भिक्खू ससिणिखाए पुढवीए उचार-पासवणं० सातिजति।४१141 (११००) जे भिक्खु ससरक्खाए पुटवीए उधार-पासवर्ण० सातिनाति।४२॥42 (११०१) जे भिक्खू मट्टियाकडाए पुटवीए उच्चार-पासवणं० सातिञ्जति ।४-43 (११०२) जे भिक्खूचित्तमंताएपुढवीएउच्चार-पासवणंपरिट्ठवेतिपरिट्ठवेंतवा०४४|-44 (११०३) जे भिक्खूचित्तमंताए सिलाए उधार-पासदणं परिवेतिपरिहवेंतवा० १४५45 (११०४) जे मिक्खूचित्तमंताए लेलूए उच्चार-पासवणं परिवेति परिहवेंतं बा० १४६:48 (११०५) जे मिक्खू कोलावासंसि वा दारुए जीवपइदिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सओस्से सउत्तिंग-पणग-दग-मष्ट्रिय-मक्कडा-संताणए उच्चार-पासवणं० सातिजति।४1-47 (११०६) जे मिक्खू पूर्णसि वा गिहेलुयंसि या उसुयासि वा कामजलंसि वा अग्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतरिक्खजायंसि दुबद्धे दुनिक्खित्ते अणिकंपे चलावले उधारपासवणं परिवेति परिहवेंतं या सातिजति।४८1-48 (११०७) जे मिक्खू कुलियंसि वा पिर्तिसि वा सिलसि वा लेटुंसि वा अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि जाव उच्चारपासवणं परिवेति परिहवेंतं वा सातिन्जति ।।९।-40 (१०८) जे भिक्खु खंधंसि वा फलिहंसि वा मंचंसि वा मंडवंसि वा मालंसि वा पासायंसि वा हम्मतलंसि वा अण्णयरंसि या तहप्पगारंसि जाव उम्रार-पासवणं परिहवेति परिहवेंतं या सातिअति सेवमाणे आवाचाउप्पासिय परिहारहाण उपातियं ।५०1-30 .सोलसपो उद्देसो समत्तो. | सत्तरसमो-उद्देसो (११०१) जे भिक्खू कोउहल्लपडियाए अण्णयरं तसपाणजाति तणपासएण वा मुंजपासएण वा कट्ठपासएण वा चम्मपासएण वा वेत्तपासएण वा रज्जुपासएण वा सुत्तपासएण वा बंधति For Private And Personal Use Only
SR No.009762
Book TitleAgam 34 Nisiha Chheysutt 01 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages90
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 34, & agam_nishith
File Size2 MB
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