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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निसीहं - ४२२१ (२२१) जे भिक्खू पोराणाई अहिगरणाई खामिय विओसवियाई पुणो उदीरेति उदीरेंतं वा सातिजति।२५1-28 (२२२) जे भिक्खू मुहं विप्फालिय-विष्फालिय हसति हसंतं वा सातिनाति ।२६।-27 (२२३) जे भिक्खूपासत्यस्स संघाडयं देति देंतं वा सातिजति।२७/28 (२२४) जे भिक्खू पासत्यस्स संघाडयं पडिच्छति पडिछतं वा सातिमति।२८1-29 (२२५) जे भिक्खू ओसन्नस्स संघाडयं देति देत वा सातिजति ।२९:30 (२२६) जे भिक्खू ओसन्नस्स संघाडयं पहिच्छति पडिच्छंतं वा सातिजति।३०।-31 (२२०) जे भिक्खू कुसीलस्स संघाडयं देति देंतं वा सातिजति ।३१।-32 (२२८) जेभिक्खूकुसीलस्स संघाडयं पडिच्छति पडिच्छंतं वा सातिजति।३२133 (२२१) जे भिक्खू नितियस्स संघाइयं देति देंतं वा सातिजति ।३३-34 (२३०) जे भिक्खूनितियस्स संघाइयं पइिच्छंतिपडिच्छतं या सातिजति।३४५35 (२३१) जे भिक्खू संसत्तस्स संघाडयं देति देंतं वा सातिजति ।३५38 (२३२) जे भिक्खू संसत्तस्स संघाडयं पडिच्छत्ति पडिच्छतं वा सातिजति] ३६1.37 (२३३) जे भिक्खू उदओल्लेण हत्येण वा पत्तेण वा दव्वीए वा मायणेण वा असनं वा पाणं वा खाइसं दा साइमं वा पडिगाहेति पडिग्गाहेंतं वा सातिञ्जति।३७138 (२३४) एवं एकवीसं हत्या भाणियव्वाजे भिक्खू ससिणिद्धेण वा ससरखेण वा पट्टिया संसडेण वा ऊससंडेण वा लोणसंसटेणं वा हरियालसंसडेण या गेरुयसंसट्टेण वा सेढियसंसद्वेण वा हिंगुलुसंसटेण वा अंजणसंप्तद्वेण वा लोसंसद्वेण या कुक्कससंसट्टेण वा पिट्ठसंसष्टेण वा कंदसंसट्टेण वा मूलसंसदेण वा सिंगबेरसंसट्टेण वा पुष्पकसंसद्वेण वा उकुट्टसंसडेण हत्येण या मत्तेण वा दबीए वा मायणेण वा असनं या पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गहेति पडिगाहेंतं वा सातिजति।३८1-39 (२३५)जे भिक्य गामारक्खियं अतीकोति अत्तीकरेंतं वा सातिञ्जति ।३९1-40 (२३६) जे भिक्खू गापारक्खियं अच्चीकरेति अच्चीकरेंतं वा सातिज्नति ।४०1-41 (२७) जे भिक्खू गामारक्खियं अत्थीकरेति अस्थीकरेंत वा सातिजति।४१1-42 (२३८) जे भिक्खू देसारक्खियं अत्तीकरेति अत्तीकोतं वा सातिद्धति।४२१. (२३)जे भिक्खू देसारक्खियं अचीकरेति अच्चीकरेंतं वा सातिजति ।।३।(२४०) जे भिक्खू देसारखियं अस्थीकरेति अस्थीकरेंतं वा सातिञ्जति।४। (२४१) जेभिक्खू सीमारक्खियं अत्तीकरेति अत्तीकरेंतं वा सातिझति।४५।-49 (२४२) जे भिक्खू सीमारक्खियं अचीकरेति अच्चीकरेंते वा सातिजति।४६/44 (२४३) जे भिक्खू सीमारक्खियं अस्वीकरेति अस्थी करेंतं वा सातिजति।11-45 (२४४) जे भिक्खू रण्णारक्खियं अत्तीकरेति अतीकरेंतं वा सातिजति।४८148 {२४५) जे भिक्खू रणारक्खियं अच्चीकरेति अच्चीकरेंतं वा सातिजति ।१९:47 (२४६) जे भिक्खू रण्णारक्खियं अस्थीकरेति अस्थीकरेंत वा सातिजति ।५०148 (२४७) जे भिक्खू सव्वारक्खियं अत्तीकरेति अतीकरेंतं वा सातिझति । (२४८) जे भिक्खू सव्वारक्खियं अच्चीकरेति अधीकरेंतं वा सातिमति।२।(२४१) जे भिक्खू सव्वारक्खियं अस्थीकरेति अस्थीकरतंया सातिझति ५३!(२५०) जे भिक्खू अन्नपन्नस्स पाए आमज्जेन वा पपज्जेन वा आपजंतं वा पपन्नंतं वा For Private And Personal Use Only
SR No.009762
Book TitleAgam 34 Nisiha Chheysutt 01 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages90
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 34, & agam_nishith
File Size2 MB
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