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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मरणतमाहि - (१९०) ||१६011 ॥१६॥ ॥१२॥ ॥१६३॥ ॥१६४॥ ।।१६५॥ ।।१६६॥ ॥१६७॥ ||१६८॥ (१०) परिणामजोगसुद्धा उवहिविवेगंच गणविप्तग्गे य। सेज्जाइउवस्सयवजणंच विगईविवेगंच (११) उगम-उप्पायण-एसणाविसुद्धिं च परिहरणसुडिं। सन्निहिसनिचयम्मिय तव-वेयावसकरणेय (१६२) एवं कोतु सोहिं नवसारयसलिल-नहतलसमावा। कम-काल-दव्य-पशव-अत्तं-परजोगकरणे य (१६३) तोते कयसोहीया पच्छिते फासिए जहाधाम। पुप्फावकिन्नगम्मियतवमिजुत्ता महासत्ता (१६) तो इंदियपरिकम्मं करेंति विसयसुहनिग्गहसमत्या। जयणाए अप्पमत्ता राग-दोसे पयणयंता (१६५) पुवकारियजोगा समाहिकामावि मरणकालम्मि। न भवंति परीसहसहा विसयसुहपमोइयऽप्पाणो (११६) इंदियसुहसाउलओ घोरपरीसहपराइयपरज्झो। अकयपरिकम्म कीवो मुजाइ आराहणाकाले (११७) बाहति इंदियाईपुब्बि दुत्रियमियप्पयाराई। अकयपरिकमकीवं मरणे सुयसंपउत्तं पि (१६८) आगममयप्पभावियसुहलोलुयापइहस्स । जई विमरणे समाही होऊ नसा होइ बहुयाणं (१५९) असमतसुओ वि मुणीपुयि सुकयपरिकम्मपरिहत्यो। संजम-नियमपत्रं सुहमवहिओ समाणेइ (१७०) नचयंतिकिंचि काउं पुबि सुकयपरिकम्मजोगस्स। खोहं परीसहचमूधिईबलपराइया मरणे (१७१) तोते वि पुखधरणाजयणाए जोगसंगहविहीहिं। तो ते करेंति सण-चरित-सुइभावणाहेउं (१७२) जापुब्वभाविया किर होइ सुई चरण-दंसणे बहुहा। सा होइ बीयभूया कयपरिकम्मस्स मरणम्मि (१७३) तं फासेहि चरितंतुमंपि सुहसीलयं पमोत्तूणं। सव्वं परीसहचमुंअहियासेतो घिइबलेणं (१०४) सद्दे सवे गंधे रसे य फासे य सुविहिय जिणेहि। सव्येसु कसाएसुप निग्गहपरमो सया होहि (१७५) सवेरसे पणीए नियूठेऊण पंत-तुक्खेहि। अनयरेणुवहाणेण संलिहे अप्पगं कमसो (१७६) संलहणाय विहाअभितरियाय बाहिरा चेव अभितरिय कसाए बाहिरिया होइ पसरीरे (१७७) उग्गम-उप्पायण-एसणाविसुद्धेण अन्न-पानेणं। मिय-विरस-लुक्ख-लूहेण दुब्बलं कुणसु अप्पाणं ॥१६९॥ 11१७०।। ॥१७१। ॥१७२॥ ॥१७३॥ १७४॥ ॥१७५॥ ||१७६॥ ||१७७॥ For Private And Personal Use Only
SR No.009760
Book TitleAgam 33A Maransamahi Painnagsutt 10A Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages51
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 33, & agam_maransamadhi
File Size1 MB
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