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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (१६) www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ (१६) दाहिण कुछी पुरिसस्स होइ यामा उ इत्थियाए उ । उपयंतरं नपुंसे तिरिए अद्वेष वरिसाई 11911-16 (१७) इमो खलु जीवो अम्मा-पिउसंजोगे माऊओयं पिउसुक्कं तं तदुभय-संसंग कलुसं किब्बिसं तप्पढमयाए आहारं आहारिता गब्मत्ताए वक्कमइ 19-1. (१८) सत्ताहं कललं होइ सत्ताहं होइ अब्बुयं । अब्बुया जायए ऐसी पेसीओ विघणं भवे 19911-17 (१९) तो पढमे मासे करिसूर्ण पलं जायइ बीए मासे पेसी संजायए घणा तईए मासे माऊए डोहलं जणइ चउत्थे मासे माऊए अंगाई पीणेइ पंचमे मासे पंच पिंडियाओं पाणि पाणि पायं सिरं वेव निव्वत्तेइ छट्टे पासे पित्तसोणियं उवचिणेइ- अंगोवंगं च निव्यत्तेइ-सत्तमे मासे सत्त सिरासयाई पंच पेसीसयाई नव धमणीओ नवनउयं च रोमकूदसयसहस्साई ९९००००० निव्वत्तेइ विणा केस-मंसुणा सह केस - मंसुणा अडडाओ रोमकूबकोडीओ निव्यत्तेइ ३५०००००० अट्टमे मासे वित्तीकप्पो हवइ 121-2 (२०) जीवस्स णं मंते गब्बगयस्स समाणस्स अत्थि उच्चारे इ वा पासवणे इ वा खेले इवा सिंघाणे इ वा वंते इ वा पित्ते इ वा सुक्के इ वा सोणिए इ वा नो इणडे समठ्ठे से केणट्टेणं मंते एवं वुच्चर - जीवस्स णं गगयस्स समाणस्स नत्थि उच्चारे इ वा जाव सोणिए इ वा गोथमा जीवे णं गबअभगए समाणे जं आहारमाहारेइ तं चिणाइ सोइंदियत्ताए चक्खुइंदियत्ताए घाणिदियत्ताए जिम्मिदियत्ताए फासिंदियत्ताए अट्ठि-अट्ठिमिंज केस-मंसु-रोम - नहत्ताए से एएणं अद्वेणं गोयमा एवं वृच्चइ - जीवस्स णं गमनयस्स समाणस्स नत्थि उच्चारे इ वा जाव सोणिए इ वा 1३1-3 (२१) जीवे णं मंते गए समाणे पहू मुहेणं कावलियं आहारं आहारितए गोयमा नो इसपट्टे से केाणं मंते एवं दुबइ-जीवे णं गव्यगए समाणे नो पहू मुहेणं कायलियं आहारं आहारितए गोयमा जीवे णं ममगए समाणे सव्वओ आहरेइ सव्यओ परिणामेइ सव्दओ ऊससइ सव्वओ नीससइ अभिक्खणं आहारे अभिक्खणं ऊससइ अभिक्खणं नीससइ आहच आहारेइ आच पररिणामेइ आहा ऊससइ आहह्य नीससइ से भाउजीवसहरणी पुत्तजीवरसहरणी माउजीवगडिबद्धा पुत्तजीवंफुडा तम्हा आहारेइ तम्हा परिणामेइ अवरा वि य णं पुत्तजीवपडिबद्धा माउजीवकुडा तम्हा चिणाइ तम्हा उवचिणाइ से एएणं अद्वेणं गोयमा एवं बुधइ-जीवे णं गढ़मगए समाणे नो पहू मुहेणं कावलियं आहारं आहारेत्तए |४| -4 (२२) जीवे णं भंते गव्मगए समाणे किमाहारं आहारेइ गोयमा जं से माया नाणाविहाओ रसविगईओ तित्त-कय- कसायंबिल - महुराई दव्याई आहारेइ तओ एगदेसेणं ओयमाहारेइ तस्स फलबिंटसरिसा उप्पलनालोदमा भवइ नाभी । रसहरणी जणणीए सवाइ नाभीए पडिबद्धा नाभीए ताओ गब्ध ओयं आइयइ अण्हयंतीए ओयाए तीए गढ़मो विवड्ढई जाय जाओ ति । ५125 (२३) कइ णं भंते पाउअंगा पत्रत्ता गोयमा तओ माउअंगा पत्रत्ता तं जहा-मंसे सोणिए मत्थुलुंगे कइ णं भंते पिउअंगा पन्नत्ता गोयमा तओ पिउअंगा पत्रत्ता तं जहा अट्ठि अट्ठमिंजा केससु-रोम - नहा |६ (२४) जीवे णं भंते गब्भगए समाणे नरएस उववज्जिज्जा गोयमा अत्येगइए उवबजा अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा से केणट्टेणं मंते एवं दुबइ जीवे णं गव्यगए समाणे नरएसु अत्येगइए उबवजेचा अत्येगइए नो उवयजेज्जा गोयमा जे णं जीवे गव्मगए समाणे सनी पंचिदिए सव्याहिं For Private And Personal Use Only
SR No.009754
Book TitleAgam 28 Tandulveyaliyam Painnagsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages26
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 28, & agam_tandulvaicharik
File Size1 MB
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