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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अम्बयण-४ बहुजणस्स दारए यजाय डिभियाओय अप्पेगइयाओ अय्मंगेइजावण्णादेइ अप्पेगइयाणं पाए रयइ अप्पेगइयाणंओढेरयइ अप्पेगइयाणं अच्छीणि अंजेइ अप्पेगइयाणं उसुएकोइ अप्पेगइयाणं तिलए करेइ अप्पेगइ-याओ दिगिदलइ करेइ अप्पेगइयाणं पंतियाओ करेइ अप्पेगइयाई छिजाई करेइ अप्पेगइया घण्ण- एणं समालमइ अप्पेगइया चुण्णएणं समालमइ अप्पेगइयाणं खेलणगाईदलयइ अप्पेगइयाणं खज्जलगाइंदलयइ अप्पेगइयाओ खीरभोयणं मुंजायेइ अप्पेगइयाणं पुप्फाई ओमुयइ अप्पेगइयाओपाएसु ठवेइ अप्पेगइयाओ जंघासु ठवेइएवं-ऊरुसु उच्छंगे कडीएपिट्टीए पिट्टे उरसि खंधे सीसे य करयलपुडेणं गहाय हलउलेमाणी-हलउलेमाणी आगायमाणी आयायमाणी परिगायमाणी-परि- गायमाणी पुत्तपिवासं च धूयपिवासं च नत्तुयपिवासं च नत्तिपिवासं च पचणुभवमाणी विहरइ तए णं तओ सुब्बयाओ अजाओ सुमई अझं एवं वयासी-अम्हे णं देवाणुप्पिए समणीओ निगंथीओ इरियासमियाओ जाव गुत्तभयारिणीओ नो खलु अम्हं कप्पइ धाइकम करेतए तुमं च णं देवाणुप्पिए बहुजणस्स चेडरूवेसु मुछिया जाव नत्तिपिवासं वा पचणुभवमाणी विहरसि तं णं तुम देवाणुप्पिए एपस्स ठाणस्स आलोएहि जाव पायच्छित्तं पडिवाहि तए णं सा सुभद्दा अजा सुव्बयाणं अजाणं एयमटुं नो आदाइ नो परिजाणइ अणाढायमाणी अपरिजाणमाणी विहरइ तए णं ताओ समणीओ निग्गंधीओ सुभई अनं हीलेंति निंदंति खिसंति गरहंति अभिक्खणं-अभिक्खिणं एयपढें निवारंति तए णं तीसे सुमदाए अजाए समणीहिं निग्गंधीहिं होलिजमामीए जाव अभिक्खंणं-अभिक्खणं एयमष्टुं निवारिञ्जमाणीए अयमेयासवे० संकप्पे समुपजिस्था-जया णं अहं अगारवासं आवासापि तया णं आहे अप्पवसा जप्पमिइं च णं अहं० पव्यइया तप्पमिदं च णं अहं परवसा पुचि च मम समणीओ निग्गंथीओ आढेति परिजाणेति इयाणि नो आति नो परिजाणंति तं सेयं खलु मे कलं पाउप्पभायाए रयणीए जाव जलते सुव्वयाणं अजाणं अंतियाओ पडि-निक्खभित्ता पाडिएक्कं उबस्सयं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए-एवं संपेहेइ संपेहेत्ता कल्लं पाउप्प- मायए रयणीए जाव उवसंपजित्ताणं विहरइतएशंसा सुमद्दा अजा अजाहिं अणोहट्टिया अणिवारिया सच्छंदमई बहुजणस्स चेडरूयेसु मुच्छिया जाव अध्मगणंच जाव नतिपिवासं च पच्चणुभवमाणी विहरइ । तएशंसा सुभद्दा अजा पासत्या पासत्यविहारी ओसण्णा ओसण्णविहारी कुसीला कुसीलविहारी संसत्ता संसत्तविहारी अहाछंदा अहाछंदविहारी बहूई यासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झोसेत्ता तीप्तं भत्ताइंअणसणाएछेदेत्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयअपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे बहुपुत्तियाविमाणे उबवायसमाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिया अंगुलस्स असंखेजइभागमेत्ताए ओगाहणाए बहुपुत्तियदेवित्ताए उववण्णा तएणंसा बहुपुत्तिया देवी अहुणोववण्णमेत्ता समाणी पंचविहए पजत्तीएजाय भासमणपज्जत्तीए पजत्तभावं गया एवं खलु गोयमा बहुपुत्तियाए देवीए सा दिल्या देविड्ढी जाव अभिप्तमपणागए से केणटेणं मंते एवं वुच्चइ-बहुपुत्तिया देवी बहुपुत्तिया देवी गोयमा बहपुत्तिया णं देवा जाहे-जाहे सकस्स देविंदस्स देवरपणो उवस्थाणियं करेइ ताहे-ताहे वहवे दारए य जाय हिंभियाओ य विउब्बइ विउव्बित्ता जेणेव सकके देविंदे देवराया तेणेय उयागच्छद उवागच्छित्ता सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो दिव्वं देविड्ढि दिव्वं देव इं दिव्यं देयाणुमा उवदंसेइ से तेणडेणं गोयमा एवं बुच्चइ-बहुपुत्तिया देवी बहुपुत्तिया देवी, बहुपुत्तियाए णं देवीए चत्तारि पलिओवमाई ठिई पत्नत्ता, बहुपुत्तिया णं भंते देवी ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं For Private And Personal Use Only
SR No.009747
Book TitleAgam 21 Puffiyanam Uvangsutt 10 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages22
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 21, & agam_pushpika
File Size1 MB
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