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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वखाते - २ पुकूखलसंवट्टगंसि महामेहंसि सत्तरतं निवतितंसि समाणंसि एत्य णं खीरमेहे नामं महामे पाउङ्मविरसइ-भरप्पमाणमेत्ते आयामेणं तदणुरूवं च णं विक्खंभबाहल्लेणं तए णं से खीरमेहे नाम महामहे खिप्पामैव पतणतणाइस्सइ खिप्पामेव जुग मुसल मुट्ठि सत्तरतं चासं वासिस्सइ जेणं मरहस्स वासस्स भूमिए वण्णं गंधं रसं फासं च जणइस्सइ तंसि च णं खीर मेहंसि सत्तरतं निवतितंसि समाणंसि एत्थ णं प्रयमेहे नामं महामेहे पाउब्भविस्सइ-भरहप्पमाणमेत्ते आयामेणं तदणुरूदं घ जं विक्खभ बाहल्लेणं तए णं से घयमेहे महामेहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ जाव यासं वासिस्सइ जेणं मरहस्स वासस्त भूमीए सिणेहभावं जगइस्सइ तंसिं च णं घयमेहंसि सत्तरत्तं निवतितंसि समाणंसि एत्य णं अमयमेहे नामं महा मेहे पाउय्भविस्सइ-भरहप्पमाणमेत्ते आयामेणं जाव वासं वासिस्सइ जेणं मरहे वासे रुक्ख गुच्छ गुम-लय-बलि-तण पव्दग हरित - ओसहि-पबालंकुरमाईए तणवणरसइकाइए जणइस्सइ तंसि च णं अमयमेहंसि सत्तरत्तं निवतिर्तसि समाणंसि एत्थ णं रसमेहे नामं महामेहे पाउदमविस्सइ-भरहप्पमाणमेते आयामेणं जाव वासं वासिस्सइ जेणं तेसिं बहूणं रुक्ख-गुच्छ-गुम्मलय-वल्लि-तण-पव्वम-हरित-ओसहि-पयातंमादीणं तित्त- कडुय कसाय- अंबिल- महुरे पंचविहे रसविसेसे जणइस्सइ तए णं भरहे वासे भविस्सइ परूढरुख-गुच्छ गुम्म-लय-चल्लि-तणपव्यगहरिय-ओसहिए उवचियतय- पत्त- पवालंकुर पुफ-फलसमुइएसुहोवभोगे यावि भविस्सइ । ३९।-38 (५२) तए णं ते मणुया भरहं वासं परुढरुक्ख गुच्छ गुम्भ-लय-बल्लि -२ -तण-पव्वय-हरियओसहीयं उवचियतय- पत्त-पवालंकुर - पुष्प फलसमुइयं सुहोवभोगं जायं चावि पासिहिंति पासित्ता बिलेर्हितो निद्धाइस्संति निद्धाइत्ता हट्ठतुट्ठा अण्णमण्णं सद्दाविस्संति सद्दावित्ता एवं वदिस्संति- जाते देवापिया भरहे वासे परूद्धरुक्ख गुच्छ गुम्म -लय- वल्लि तण-पव्यय - हरिय- जाव सुहोयभोगे तं जे देवाणुपिया अहं केइ अञ्जप्पभिइ असुभं कुणिमं आहारं आहारिस्सइ से णं अणेगाहिं छायाहिं वज्रणित्तिकट्टु संठिति ठवेरसंतिठवेत्ता भरहे यासे सुहंसुहेणं अभिरममाणा (२) विहरिस्संति ॥४० 38 (५३) तीसे णं भंते समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइगोयमा बहुसमरमणिजे भूमिभागे मविस्सा से जहानामए आलिंगपुक्खरेइ या जाय नाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहि तोहि य उवसोभिए तं जहा - कित्तिमेहिं चैव अकित्तिमेर्हि चेव तीसे णं भंते समाए मणुयाणं केरिसए आगारभावपडीयारे भविस्सइ गोयमा तैसि णं मणुयाणं छव्विहे संघयणे छव्विहे संठाणे बहूईओ रयणीओ उडुढं उच्चतेणं जहणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं साइरेगं बाससयं आउयं पालेहिंति पालेत्ता अप्पेगइया निरयगामी अप्पेगइया तिरियगामी जाव देवगामी न सिज्झति तीसे जं समाए एक्कबीसाए वाससहस्सेहिं काले बीइक्कते अनंतेहिं यण्णपञ्जवेहिं जाव अनंतगुणपरिबढीए परिवदेमाणे परिवड्ढेमाणे एत्य णं दुसमसूसमाणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो तीसे णं भंते समाए मरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ गोयमा बहुसमरमणि भूमिभागे भविस्सइ से जहानामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव नानाविहपंचवण्णेहिं मणीहिं तणेहि य उवसोमिए तं जहा- कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहिं चेव तेसि णं भंते मणुयाणं केरिसए आगारभाव पडोयारे भविस्सइ गोयमा तेसि णं मणुयाणं छब्बिहे संघयणे छन्विहे संठाणे बहूई धणूई उद्धं उद्यतेणं जहणेणं अंतोमुहुतं उक्कोसेणं पुव्वकोडिं आउयं पालेर्हितिं पालेत्ता अप्पेगइया निरयगामी जाव अंतं करेहिंति तीसे णं समाए तओ वंसा समुप्पज्जिस्संति तं जहा - तिस्थगरवंसे चक्कवट्टिवंसे दसारवंसे तीसे णं समाए तेवीसं तियगरा एक्कारस चक्कवट्टी नव बलदेवा नव For Private And Personal Use Only २१
SR No.009744
Book TitleAgam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages130
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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