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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८२ पन्नषणा - 1/4/347 जोणिएहितो उववजंति, जदि यलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहिती उवयनंति किं चउप्पय०. परिसप्प० गोयमा चउप्पयथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहितो वि उववज्रति परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो विउववजंति, जदि चउप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उवयजंति किं सम्मुच्छिमेहितो० गब्भवक्कंतिएहितो० गोयमा सम्मुच्छिमचउप्पयथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहितो वि उववर्जति गमवक्कंतियचउप्पएहितो वि उववद्धति, जदि सम्मुछिमचउप्पएहिंतो उववजंति किं पज्जत्तग० अपज्जत्तग० गोयमा पजत्तएहितो उववनंति नो अपजतगसम्मुच्छिमवउप्पययलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उवयजंति, जदि गमवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति किं संखेज्जवासाउग० असंखेजवासाउयग० गोयमा संखेज्जवासाउएहितो उववजंति नो असंखेनवासउएहितो उववनंति, जदि संखेज्जवासउयगड्भवतियचउपयथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववनंति किं पजत्तगसंखेजवासाउयगमवक्कंतिवचउप्पयथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहितो उवयजंति अपनत्तगसंखेनवासाउयगमवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववञ्जति गोयमा पञ्जत्तएहितो उववद्धति नो अपज्जत्तयसंखेज्जवासउएहितो उववनंति, जदि परिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहितो उववनंति किं उरपरिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहितो उदवनंति भुयपरिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहितो उववनंति गोयमा दोहितो वि उव- रजति जदि उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उवयज्जति किं सम्मुच्छिमउरपरिसप्पथलयरपंवेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति गम्भवकूकंतियउरपरिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उवयजंति गोयमा सम्मुच्छिमेहितो वि उववञ्जति गब्मवर्कतिएहितो यि उववर्जति जदि सम्मुच्छिमउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववनंति किं पज्जत्तरोहितो उववर्जति अपज्जत्तरोहितो उववनंति गोयमा पज्जत्तगसम्मुच्छिमेहिंतो उववनंति नो अपज्जत्तगसम्मुच्छिमउरपरिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववर्जति जदि गमवक्कंतियउरपरिसप्पयलयरपंचेदियतिरिस्खजोणिएहितो उवयज्जति किं पञ्जत्तएहितो अपज्जत्तएहितो गोयमा पजत्तगभवकर्कतिएहिंतो उववनंति नो अपनत्तगगमवककंतियउरपरिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहितो उववनंति, जदि भुयपरिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहितो उववजंति किं सम्मुच्छिमुयपरिसप्पथलयरपं.दियतिरिक्खजोणिएहिंतो उवयजंति गमवक्कंतियमुयपरिसप्पघलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववर्जति गोयमा दोहितो यि उववजंति, जदि सम्पच्छिमभुयपरिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहितो उववजंति किं पञ्जत्तयसम्मुच्छिममुयपरिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति अपनत्तय सम्मच्छितिमभयपरिसप्पधलयरपंचेंदियतिरिखजोणिएहितो उववजंति गोयमा पजत्तएहितो उवक्त्रंति नो अपञ्जत्तएहिंतो उववजंति जदि गट्मवक्कंतियमुयपरिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववञ्जति किं पज्जत्तएहितो उववज्रति अपञ्जत्तएहितो उववनंति गोयमा पञ्जत्तएहितो उयवनंति नो अपञ्जत्तएहिंतो उववङति, जदि खहयरपंचेंदियतिरिखजोणिएहिंतो उववखंति किं सम्मच्छिमखहयरपंचेंदियतिरितक्खजोणिएहितो उववजंति गमवक्कंतियखहयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहितो उवयजति गोयमा दोहितो वि उववजंति, जदि सम्मच्छिमखहयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहितो उववनंति किं पनत्तएहिंतो उवयजंति अपनत्तएहितो गोयमा पजत्तएहितो उववजंति नो अपज्जत्तएहिंतो उववजंति, For Private And Personal Use Only
SR No.009741
Book TitleAgam 15 Pannavana Uvangsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages210
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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