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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५४ पन्नवणा - १७ उक्कोसमदपत्ता वणेणं उववेया जाव फासेणं आसायणि वीसायणिजा पीणणिज्जा विहणिका दीवणिज्जा दप्पणिया मयणिद्धा सर्विदिय-गायपल्हायणिजा पवेतारूवा गोयमा नो इणढे सम्हे पहलेस्सा णं एत्तो इत्तरिया चेव जाव मणामतरिया चेव आसाएणं पवत्ता, सुकलेस्सा णं मंते केरिसियाआसाएणपन्नत्ता गोयमा से जहानामए-गुलेइ वाखंडेइया सक्कराइयामच्छंडियाइवा पप्पडमोदए इ वा भिसकंदे इ वा पुप्फत्तराइ वा पउमुत्तराइ वा आदसिया इ वा सिद्धस्थिया इ वा आगासफलिओयमाइ वा अणोवमा इ वा भवेतारूवा गोयपा नो इणढे समढे सुक्कलेस्सा णं एत्तो इट्टतरिया चेव जाव मणामतरिया चेव आसाएणंपन्नत्ता ।२२७१-227 (१६६) कतिणभंते लेस्साओ दुमिगंधाओ पत्रत्ताओ गोयमातोलेस्साओ० किण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा कति णं भंते लेस्साओ सुमिगंधाओ पनत्ताओ गोयमा तओ लेस्साओ० तेउलेस्सा पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सा, एवं तओ अविसुद्धाओ तओ विसुद्धाओ तओ अप्पसत्याओ तओ पसत्याओ तओ संकिलिट्ठाओ तओ असंकिलिट्ठाओ तओ सीयलुक्खाओ तओ निधुण्हाओ तओ टुग्गइगामिणीओ तओसुगइगापिणीओ।२२८1-228 (४१७) कण्हलेस्सा णं भंते कतिविधं परिणामं परिणमति गोयम तिविहं वा नवविहं वा सत्तावीसतियिहं वा एक्कासीतिविहं वा वेतेयालसतविहं वा बहुं वा बहुविहं वा परिणामंपरणमति एवं जाव सुकलेसा कण्हलेस्सा णं भंते कतिपदेसिया पत्रत्ता गोयमा अनंतपदेसिया पन्नत्ता एवं जाव सुकलेस्सा, कण्हलेस्सा णं भंते कइपएसोगाढा पन्नत्ता गोयमा असंखेजपएसोगाढा पत्रत्ता एवंजाब सुकलेस्सा, कण्हलेस्साए णभंते केवतियाओ वग्गणाओ पनत्ताओ गोयमा अनंताओ वग्गणाओ पन्नत्ताओ एवं जाव सुक्कलेस्साए ।२२९/229 (44) केयतिया णं मंते कण्हतेस्साठाणा पन्नत्ता गोयपा असंखेशा कण्हलेस्साठाणा पनत्ता एवं जाव सुक्कलेस्साए, एतेसि णं भंते कण्हलेस्साठाणाणं जाय सुक्कलेस्साठाणाण य जहष्णगाणं दवट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठ-पएसट्टयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा गोयमा सव्वत्योया जहण्णगा काउलेस्साठाणा दबट्ठयाए, जहण्णगा नीललेस्साठाणा दबट्ठयाए असंखेनगुणा, जहण्णगा कण्हलेसाठाणा दबट्ठयाए असंखेनगुणा जहण्णअणगा तेउलेस्साठाणा दवट्ठयाए असंखेनगुणा जहण्णगा पम्हलेसाठाणा दबट्टयाए असंखेजगुणा जहण्णगा सुक्कलेसाठाणा पव्वट्ठयाए असंखेनगुणा, पदेसट्टयाए-सव्वत्योवा जहण्णगा काउलेस्साठाणा पएसद्वयाए जहाणगा नीललेस्सटाणा पएसट्टयाए असंखेनगुणा जहणगा कण्हलेस्साठाणा पएसट्ठयाए असंखेनगुणा जहण्णमा तेउलेस्सट्ठाणा पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा जहण्णगा पम्हलेस्सट्टामा पएसट्टयाए असंखेनगुणा जहण्णगा सुक्कलेस्साठाणा पदेसट्याए असंखेनगुणा, दव्वट्ठ-पदेसट्टयाए-सव्बत्योवा जहष्णगा काउलेस्सट्ठाणा दवट्ठयाए जहण्णमा नीललेस्सट्टाणा दवट्ठयाए असंखेनगुणा एवं कण्हलेस्सट्ठाणातेउलेस्सट्ठाणा पम्हलेस्सद्वाणा जहण्णगा सुक्कलेस्सहाणा दबट्टयाए असंखेनगुणा, जहण्णएहितो सुक्कलेस्सट्ठाणेहितो दबट्टयाए जहण्णगा काउलेस्सटाणा पदेसद्वयाए अनंतगुणा, जहण्णगा नीललेस्सटाणा पएसट्टयाए असंखेनगुणा एवं जाव सुक्कलेस्सट्ठाणा, एतेसि णं भंते कण्हलेस्सहाणाणं जाव सुक्कलेस्सट्ठाणाण य उक्कोसगाणं दब्वट्ठयाए पएसट्टयाए दव्य-पएसष्ठयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा० गोयमा सव्वत्थोवा उक्कोसगा काउलेस्सद्वाणा दवट्ठयाए, उक्कोसगा नीललेस्सहाया For Private And Personal Use Only
SR No.009741
Book TitleAgam 15 Pannavana Uvangsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages210
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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