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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ जीवाजीवाभिगम - ३/१०/१४५ ववगयखाणुकंटकहीरसक्करतणकयवरअसुइपूइयदुख्मिगंधमचोक्खवजिए णं एगोरूपदीवे पत्रत्ते समणाउसो अस्थि णं मंते एगुरुयदीवे दीवे दंसाइ या मसगाइ वा पिसुगाइ वा जूवाइ या लिक्खाइ वा ढिंकुणाइ वा नो तिणडे समढे ववगयदंसमसगपिसुतजूतलिक्खढिंकुणपरिवजिए णं एगुरुयदीवे पन्नत्ते समणाउसो अस्थि णं भंते एगुरुयदीवे अहीइ वा अवगराइ वा मोहरगाइ वा हंता अस्थि नो चेवणं ते अन्नमत्रस्स तेसिं वा मणुयाणं किंचि आवाहं वा पवाहं वा छविच्छेयं वा पकरेंति पगइभद्दगाणं ते वालगणा पन्नत्ता समणाउसो अस्थि णं भंते एगुरुयदीवे गहदंडाइ वा गहमुसलाइ वा गहगजियाइ वा गहजुद्धाइ वा गहसंघाडगाइ वा गहअवतव्याइ वा अभाइ वा अमरुक्खाइ वा संझाइ वा गंधवनगराइ वा गजियाइ वा विजुयाइवा उकापायाइ वा दिसादाहाइवा निग्याताइवा पंसुविट्ठीति वाजूवागाइ वाजकालित्ताइवा धूपियाइ वा महियाइवा रउपधायाइवा चंदोवरागाइ या सूरोवरागाइ वा चंदपरिवेसाइ वा सूरपरिवेसाइ वा पडिचंदाइ वा पडिसूराइ वा इंदधणूडू वा उदगपच्छाइ वा अमोहाइ वा कविहसियाइ वा पाईणवायाइ वापड़ीणवायाइ वा जाव सुद्धवावाइवा गामदाहाइवा नगरदाहाइवा जाव सणिवेसदाहाइ वा पाणक्खयजणक्खयकुलसखयधणक्खयवसणूतमणारियाइ वा नो इण समढे अस्थिणं भंते एगुरुयदीवे दीये डिवाइ वाडमराइ वा कलहाइ वा बोलाइ वा खाराइ या वेराइ वा विरुद्धरजाइ वा नो इणडे समठे बवगयडिंबडमरकलहबोलखारवेरविरुद्धरजविवजिया णं ते पण्यगणा पत्रत्ता समणाउसो अस्थि णं भंते एगुरुयदीवे दीवे महाजुद्धाइ वा महासंगामाइ वा महासत्थपडणाइ वा महापुरिसपहाणाइ वा महारुधिरपडणाइ वा नागावाणाइ वा खेणवाणाइ वा तामसवाणाइ वा दुभूइयाइवा कुलरोगागइवा गामरोगाइ वा नगररोगाइ वा मंडलरोगाइ वा सीसवेरणाइवाअच्छिवेयणाइवा कग्णवेयणाई या नक्खयेयणाइ वा नक्कवेयणाइ वा दंतवेयणाइवा कासाइवा तासाइ वा सोसाइवा जराइ या दाहाइवा कच्छूइ वा कुवाइ वा दगोवराइ वाइअरिसाइ वा अजीरगाइ वा मगंदलाइ वा इंदागहाइ वा खंदग्गहाइ वा कुमारग्गहाइ वा नागरगहाइ वा जक्खग्गहाइ वा भूयग्गहाइ वा उव्वेवगहाइ वा धनुग्गहाइ वा एगाहियाइ वा बेयाहियाइ वा तेयाहियाइ वा चाउत्थगाहियाइ वाहियवसूलाइ वा मत्थगसूलाइ वा पाससूलाइ वा तुच्छिसूलाइ वा जोणिसूलाइ वा गाममारीद वाजाय सत्रिवेसमारीइ वा पाणक्खय जाय वसणभूतमणायरिय वा नो इगट्टे समटे ववगयरोगायंका णं ते मणुयगणा पन्नत्ता समणाउसो अस्थि णं भंते एगुरुवदीवे दीवे अइयासाइ वा मंदबासाइ वा सुयुट्ठीय वा मंदबुट्ठीय वा उदवाहाइ वा पवाहाइ वा दगुब्मेयाइ वा दगुप्पीलाइ वा गापवाहाइ वा जाव सत्रिवेसवाहाइ वा पाणक्खय जाव वसणभूतमणारियाइ वा नो इणढे समढे यवगयदगोवद्दवा णं ते मणुयगणा पनत्ता समणाउसो अस्थि णं भंते एगुरुयदीवे अयागराइ वा तंबागराइ वाजाव वसुहाराइवा, हिरण्ण वासाइवाजाव चुण्णवासाइवा खीरवट्ठीति वा वणवुट्ठीति वा सुवण्णबुडीति वा तहेव जाव चुण्णवुट्ठीति वा सुकालाइ वा दुक्कालाइ वा सलुभिक्खाइ वा दुभिक्खाइ या अप्पग्धाइ वा महग्धाइ वा कयाइ वा विक्कयाइ वा अण्णिहीइ वा संचायाइ वा निधीइ वा निहाणाइ वा चिरपोराणाइ वा पहीणसामियाइ वा पहीणतेउयाइ वा पहीणगोतागराई जाइं इमाइं गामागरण गरखेडकब्बडमडंबदोण-मुहपट्टणासमसंवाहसन्निवेसेसु सिंघाड जाब बणगिहेसु सन्निक्खित्ताई चिट्ठति नो इणट्टे समढे एगुरुयदीचे णं भंते दीवे मणुयाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता गोयमा जहन्त्रेणं पलिओवमस्स असंखेचइभागं असंखेजतिभागेणं For Private And Personal Use Only
SR No.009740
Book TitleAgam 14 Jivajivabhigama Uvangsutt 03 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages162
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size3 MB
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