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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रायपसेजियं ३४ उवसोभमाणा चिठ्ठति तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्य तत्थ देसे तहिं तहिं बहचे हयसंघाडा जाव उस संघाडा सव्वरयणामया अच्छा जाब पडिलवा [तीसे णं पउमवरबेइयाए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं वहवे हयपतीओ तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्य तस्य देसे तर्हि बहवे हयवीही ओ तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्य तत्य देसे तहिं तहि बहूई हवमिहुण्णाई तीसे णं पउमवरवेश्याए तत्थ तत्य देसे तहिं तहि बहवे पउमलवाओ] से केणट्ट्टेणं भंते एवं बुच्चइ - पउभवरवेझ्या परमबरवेश्या गोयमा पउमावेश्याए णं तत्य तत्य देसे तहिं तहिं वेइयासु बेइवावाहासु य वेइयफलएसु य वेइयपुतरेषु य खंभेएस खंभवाहासुखंभसीसेसु खंभपुतरेस सूईसु सूईमुखे सूईफलएस सूईपुडंतरेसु पक्खेषु पक्खबाहासु पक्खपेरतेसु पक्पुंडतरेसु बहुबाई उप्पलाई पउमाई कुमुयाई नलिणाई सुभगाई सोगंधियाई पोंडरीयाई महापोंडरीयाई सयवत्ताई सहस्वत्ताई सब्बरवणामाई अच्छाई पडिवाई महया वासिकूकछत्तसमाणाई पन्नत्ताई समणाउस से एएगं अगं गोयमा एवं वुइ- पउमचरवेइया पउमचरवेइया, पउमवावेइया णं भंते किं सासवा असासवा गोयमा सिय सासया मित्र असासवा सेकेणणं भंते एवं बुच्चइ - सिय सासया सिव असासवा गोयमा दव्वत्याए सासवा वण्णपचेवेहिं गंधपञ्जवेहिं रसपजवेहिं फासपजवेहिं असासवा से एएणणं गोत्रमा एवं बुच्चइ-सिय सासवा सिया असासचा पउमवरवेइया णं भंते कालओ केबचिरं होइ गोयमा न कचाति नासि न कवाति नत्थि नं कयाति न भविस्सइ भुविं च भवइ य भविररु य धुवा नियया साराया अक्खया अव्वया अवडिया निच्चा पचमवरबेइया सा णं पउमवरवेइया एगेणं वनसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता से गं चनसंडे देसुणाई दो जोयणाई चक्कवालविक्खंभेणं उववारिया-लेणसमे परिक्खेवेणं वणसंडवण्णओ भाणियव्वो जाव विहरति तस्स णं उववारिवा-लेणस्स चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पन्नता वण्णओ तोरणा झया छत्ताइच्छता तस्स णं उवबारियालयणस्स उचरिं बहुसमरमणिजे भूमिभागे पन्नत्ते जाव मणीणं फासो | ३ ४ | 34 (३५) तस्स णं बहुसमरमस्स भूमिभागस्स बहुमणिज्जदेसभाए एत्थ णं महेंगे मूलपासायवडेंस पत्र सेणं मूलपासायवडेंसते पंच जोयणसयाई उड्ढ उच्चत्तेणं अड्ढाइलाई जोयणसयाई विक्खंभेणं अग्गयमूसिय दण्णओ भूमिभागो उल्लोओ सीहासगं सपरिवारं भाणिवव्वं अट्ठ मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता से णं मूलपासायवडेंसगे अण्णेहिं चउहिं पासायवडेंसएहिं नयद्धचतप्पमाणपेतेहि सव्वओ समंता संपरिखित्ते ते णं पासाववडेंसगा अड्ढाइलाई जोयणसबाई उड्ढ उच्चत्तैणं पणवीसं जोवणसयं विक्खंभेणं अद्भुग्गयपूसिय जाव वण्णओ भूमिभागो उल्लोओ सीहासणं सपरिवार भाणियव्वं अट्ठ मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता ते पासायवडेंसया अण्णेहिं चउहिं पासायवडेंसएहिं तयद्दुच्चत्तप्यमाणमेत्तेहिं सव्वओ समंता संपरिखित्ता ते णं पासावडेंसबा पणवीसं जोयणसवं उड्ढं उच्चतेणं बावद्धिं जोयणाई अद्धजोयणं च विक्खमेणं अद्भुग्गयमूसिया वण्णओ भूमिभागो उल्लोओ सीहासणं सपरिवारं भाणियव्वं अट्ठ मंगलगा झया छत्तातिच्छत्ता ते णं पासायवडेंसगा अण्णेहिं चउहिं पासाववडेंसएहिं तदद्भुचत्तप्पमाणमेतेहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता ते णं पासाववडेंसगा बावद्धिं जोयणाई अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेगं एक्कतीसं जोयणाई कोसं च विक्खणं वण्णओ उल्लोओ सीहासणं अपरिवारं अट्ठट्ट मंगलगा झया छत्तातिछत्ता ते णं पासायवडेंसया अण्णेहिं चउहिं पासायवडेंसगेहिं तदद्भुछतप्पमाणमेत्तेहिं सव्वतो समंता संपरि For Private And Personal Use Only
SR No.009739
Book TitleAgam 13 Raipaseniyam Uvangsutt 02 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 13, & agam_rajprashniya
File Size2 MB
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