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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विवागतुर्य - १/६/२९ चारगपालस्स बहवे वेणुलवाणं यवेत्तलयाण यचिंचालयाण य छियाण य कसाण य वायरासीण य पुंजाय निगरा य संनिक्खित्ता चिट्ठति तस्सणं दुजोहणस्स चारगपालस्स बहवे सिलाण यलउडाणय मोग्गराण य कणंगरण य पुंजा य निगरा य संनिम्खित्ता चिट्ठति तस्स णंदुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे तंतीण य दरत्ताण य वागरण य यालयसुतरज्जूण य पुंजा य जाव चिटुंति तस्स णं दुञोहणस्स चारगापलस्स यहवे असिपत्ताण य करपत्ताण य खुरपत्ताणं य कलंब- चीरपत्ताण य पुंजा य जाब चिट्टति तस्स णं दुजोहणस्स चारगपालस्स बहवे लोहखीलाण य कडसक्कारण य चमपट्टाण य अलीपट्टाण य पुंजायजाव चिट्ठति तस्स णं दुञोहपास्स चारगपालस्स बहवे सूईणय डंभणाणय कोट्टिल्लाणं य पंजाय जाव चिट्ठति तस्सणं दुनोहणस्स चारगपालस्स बहवे सत्थाण य पिप्पलाण य कुहाडाण य नहच्छेयणाण य दभाण य पुंजा य जाव चिट्ठति तए णं से दुजोहणे चारगपाले सीहरहस्स रपणो वहवे चौरे य पारदारिए य गंठिपए व रायावकारी य अणहारए य बालघायए य विस्संभधावए या जूइगरे य संडपट्टे य पुरिसेहिं गिण्हावेइ गिण्हावेत्ता उत्ताणए पाडेइ लोहदंडेणं मुहं विहाडेइ विहाडेता अप्पेगइए तत्ततंब पजेइ अप्पेगइए तउयं पजेइ जाव अप्पेगइए खारतेल्लं पओइ अप्पेगइयाणं तेणं चेव अभिसेगं करेइ अप्पेगइए उत्ताणए पाडेइ पाडेता आसमुत्तं पजेइ अप्पेगइए हत्यिमुत्तं पजेइ जाव एलमुत्तं पज्जेइ अपंगइए हेट्ठामुहए पाडेइ छडछडस्स बम्मावेइ वमावेत्ता अप्पेगइए तेणं चेलव ओवीलं दलयइ अप्पेगइए हत्थंडुयाइं बंधावेइ अप्पेगइए पायंडुए वंधावेइ अप्पेगइए हडिबंधणं करेइ अप्पेगइए नियलबंधणं करेइ अप्पेगइएसंकोडियमोडियए करेइ अप्पेगइए संकलबंधणं करेइ अप्पेगइए हत्यछिण्णए करेइ जाव सत्योवाडियए करेइ अप्पेगइए वेणुलयाहि य जाव वायरासिहि व हणावेइ अप्पेगइए उत्ताणए कारवेइ कारवेत्ता डरे सिलं दलावेइ दलावेत्ता तओ लउडंछुहावेइछुहावेत्तापुरिसेहिं उक्कंपायेइ अप्पेगइए तंतीहि य जाव सुत्तरहि य हत्थेसु य पाएसु य बंधावेइ अगडंसि ओचूलं बोलगं पञ्जेइ अप्पेगइए असिपत्तेहि य जाव कलंबचीरपत्तेहि य पच्छायेइ पच्छावेत्ताखारतेल्लेणं अब्भंगावेइ अप्पेगइयाणं निलाडेसुंय अवदूसुय कोप्परेसु यजाणूसु खलुएसुय लोहकीलए य कडसक्कराओ य दवायेइ अलिए मंजाबेइ अप्पेगइए सूईओय डंभणाणि य हत्यंगुलियासु य पायंगुलियासु य कोट्टिलाएहिंआउडावेइ आउडावेत्ता भूमिकंइयावेइ अप्पेगइए सत्थेहि य जाव नहच्छेयणेहि यअंगं पच्छावेइ दभेहि य कुसेहि य उल्लयद्धेहि य वेढावेइ आयवंसि दलयइ दलइत्तासुक्के समाणे चडचडस्स उप्पाडेइतए णं से दुजोहणे चारगपाले एयकम्मे जाव एयसमायारे सुवहुं पावकम्मं समञ्जिणित्ता एगतीसं वाससयाई परमाउई पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीससागरोवमडिइएसु नेरइएसु नेरइत्ताए उव्यण्णे २५/-26 (३०) से णं तओ अनंतरं उच्चट्टित्ता इहेब महुराए नयरीए सिरिदामस्स रण्णो बंधुसिरीए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णे तएणं बंधुसिरी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुत्राणंजाव दारगं पयाया तएणं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहे इमं एयारूवंनामधेशं करेंति-होउ अम्हं दारगे नंदिवद्धणे नामेणं तएणं से नंदिवणे कुमारे पंचधाईपरिवुडे जाव परिवड्ढइ तएणं से नंदिवद्धणे कुमारे उम्मुक्कबालभावे विहरइ जाव जुव-राया जाए याविहोत्था तएणं से नंदिवद्धणे कुमारे रजे यजाव अंतेडरे य मुछिए गिद्धे गदिए अज्झोववण्णे इच्छइ सिरिदामं रायं जीवियाओ ववरोवेत्ता सयमेव रज्जसिरि कारेमाणे पालेमाणे विहरित्तए तए णं से नंदिवद्धणे कुमारे सिरिदामस्स रण्णो For Private And Personal Use Only
SR No.009737
Book TitleAgam 11 Vivagsuyam Angsutt 11 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages50
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 11, & agam_vipakshrut
File Size1 MB
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