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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनापणं-५ ३७ चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था-अहो णं इमे पुरिसे अणारिए अणारियबुद्धी अणारियाई पावाई कम्माई समाचरति जे णं ममं जेटुं पुतं साओ गिहाओ नीणेइ नीणेता मम अगओ घाएइ धाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेइ करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ अद्दहेत्ता ममं गायं पंसेण च सोणिएण करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ अद्दहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण व आइंचइ जे णं मम मन्झिमं पुतं साओ गिहाओ नीणेइ नीणेता मम अग्गओ घाएइ घाएत्ता सत्त मंसमोल्ले करेइ करेत्ता आदाणभरियसि कडाहपंसि अइहेइ अद्दहेत्ता ममं गाय मंसेणय सो-मिएणय आइंचइ जे णं ममं कणीयसं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेइ नीणेता मम अग्गओ घाए घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेइ करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अइहेइ अद्दहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ जाओ वि य णं इमाओ ममं छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ छ हिरण्णकोडीओ वढिपुत्ताओ छ हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ ताओ वि य णं इच्छइ मर्म साओ गिहाओ नीणेत्ता आलभियाए नयरीए सिंघाडग-तिय-चउक-चच्चरचउम्मुहू-पहापहपहेसु सव्वओ समंता विपरितए तं,सेयं खलु ममं एयं पुरिसं गिहित्तए त्ति कट्ट उद्धाविए से विय य आगासे उप्पइए पए विय खंभे आसाइए महया-महया सद्देणं कोलाहले कए तए णं सा बहुला भारिया चुल्लसयगं सपणोदासयं एवं वयासी-नो खलु केइ पुरिसे तब जेठ्ठपत्तं साओ गिहाओ नीणेइ नीणेता तव अग्गओ घाएइ नो खलु केइ पुरिसे तव मन्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेइ नीणेत्ता तब आगओ पाएइ नो खलु केइ पुरिसे तव कणीयसं पुतं साओ गिहाओ नीणेइ नांगेत्ता तब अग्गओ घाएइ नो खलु देवाणुप्पिया तुझं के वि पुरिसे वि छ हिरण्णकोडीओ निहाणपतत्ताओ छ हिरणकोडीओ वढिपउत्ताओए छ हिरण्णकोडीओ पवित्यरपउत्ताओ साओ गिहाओ नीणेत्ता आलभियाए नयरीए सिंघाडग-जाव महापहपहेतु सब्बओ समंता विप्पइरइ एस णं केइ पुरिस तव उवसग्गं करेइ एस णं तुमे विदरिसणे दिढे तं गं तुभ इयाणि भागवए भगनियमे मगणपोसहे विहरसि तंणं तुम पिया एयरत ठाणस्स आलोएहिं पडिककमाहि निंदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहिं अकरणयाए अय्मुडाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकमं पडिवजाहि तए णं से चुल्लसयए समणोवासए बहुलाए भारियाए तह त्ति एयमढे विणएणं पडिसुणेइ पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स विउष्टइ विसोहेइ अकरणयाए अभुढेइ अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवजइ तए णं से चुल्लसपए समणोवासए पदम उवासगपडिमं उपसंपज्जित्ता णं विहरइतए णं से चुल्लसयए समणोवासए पढम उवासगपडिम आहासुतं अहाकप्पं अहामग्गं अहातचं सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ तए णं से चुल्सयए समणोवासए दोच्चं उवासगपडिपं एवं तचं चउत्थं पंचमं छटुं सत्तमं अट्ठमं नवयं दसमं एक्कारसमं उवासपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामागं अहातचं सम्मकाएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइकित्तेइ आराहेइतए णं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निमसे अविचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए तए णं तस्स चुप्लसयगस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकपे समुप्पञ्जित्या-एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं जाव किसे धमणिसंतए जाए तं अस्थि ता मे उहाणे कम्मे बले दीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-घिइ-संवेगे जाव य मे धम्मायरिए धम्मीयएसए समणे भगवं महावीरे जिणे For Private And Personal Use Only
SR No.009733
Book TitleAgam 07 Uvasagdasao Angsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 07, & agam_upasakdasha
File Size2 MB
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