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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - उवासगदसाओ १/१६ ममारणंतिय जाव कालं अणवकंखमाणे विहरइ तए णं तस्स आणंदस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ सुभेणं अज्झवसाणेणं सुभेणं परिणामेणं लेसाहिं विसुन्झमाणीहिं तदावरणिज्जाणं कप्माणं खओवसमेणं ओहिनाणे समुप्पण्णे-पुरस्थिमे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाई खेत्तं जाणि पासइ दक्खणे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाई खेत्तं जाणइ पासइ पञ्चत्यिमे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाई खेत जाणइ पासइ] उत्तरे णं जाव चुल्लहिमंलवंत वासधरपव्ययं जाणइ पासइ उड्ढे जाय सोहम कप्पं जाणइ पासइ अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुतं नरयं चउरासीतिवाससहस्सद्धितियं जाणइ पासइ ।१४।-14 (१७) तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए परिसा निग्गया जाव पडिगया तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेडे अंतेवासी इंदभूई नामं अणगारे गोयमसगोत्ते णं सत्तुस्सेहे समचउरसंसंठाणणसंठिए वज़रिसएनारायणसंघयणे कणगपुलगनिघसपम्हगोरे उग्गत दिरातवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंमचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से छटुंठेणं अणिक्खित्तेणं तवोकप्मेणं संजमेणंतवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ तएणं से भगवं गोयमे छट्टक्खमणपारणगंसि पढ़माए पोरिसीए सज्झायं करेइ बिइयाए पोरिसीए झाणं शियाई तइयाए परिसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेई पडिलेहेत्ता भायणवत्याई पडिलेहेइ पडिलेहेता भायणाई पगाइ पमजित्ता भायणाइं उगाहेइं उगाहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागछइ उवागछित्ता समणं भगवं महावीर बंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामिणं भंते तुम्भेहिं अधणुण्णाए समाणे छट्टक्खपणपारणगंसि वाणियगामे नयो उच्च-नीच-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडितए अहासुहं देवाणुप्पिया मा पडिबंधं करेह तए णं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अभYण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ दुइपलासाओ घेइयाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता अतुरियमचवलमसंभंते जुगंतरपलोणाए दिट्ठीए पुरओ इरियं सोतेमाणेसोहेमाणे जेणेव वाणिवगामे नपरे तेणेव उवागच्छइ उवागछित्ता वाणियगामे नयरे उच्च-नीयमझिमाई कुलाई परसपुदाणस्स भिक्खायरियं अडइ तए णं से भगवं गोयमे वाणियगामे नयरे उद्य-नीय-मज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे अहापजतं भतपाणं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेत्ता वाणियगामाओ नयराओपडिणि गच्छइ पडिणिग्गच्छित्ता कोल्लायस्स सण्णिवेसस्स अदरसामंतेणं वीईवयमाणे बहुजणसदं निसामेइ बहजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं मासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ-एवं खलु देवाणुपिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी आनंदे नामं समणोवासए पोसहप्तालाए अपच्छिम [मारणंतिय-संलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए] कालं अणवखंमाणे विहरई तए णं तस्स गोयमस्स बहुजणस्स अंतिए एयमटुं सोच्चा निसम्म् अयमेयारूवे अन्झत्यिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपजिस्था-तं गच्छामिण आणंदं समणोवासयं पासामि-एवं संपेहेइ संपेहेत्ता जेणेव कोल्लाए सण्णिवेसे जेणेव पोसहसाला जेणेव आणंदे समणोवासए तेणेव उवागच्छइ तए णं से आरंदे समणोवासए भगवं गोयमं एजमाणं पासइ पासित्ता हट्टतुट्ट-जाव हियए भगवं गोयमं वंदइ नमसइबंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीएवं खलु भंते अहं इमेणं ओरालेणं जाव किसे धमणिसंतए जाए नो संचाएमि देवाणुप्पियस्स अंतिय पाउमवित्ता णं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादे सु अभिवंदितए तुझे णं मंते इच्छाक्कारेणं For Private And Personal Use Only
SR No.009733
Book TitleAgam 07 Uvasagdasao Angsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 07, & agam_upasakdasha
File Size2 MB
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