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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नायाधम्मकहाओ - १/-/२/५२ कज्जाओ अप्पाणं मोयावेइ मेयावेता चारगसालाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव अलंका- रियसभा तेणेव ज्यागाइ उदागच्छित्ता अलंकारियकम्पं कारवेइ जेणेव पोक्खरिणि तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अहधोयमट्टियं गेण्हड गेण्हित्ता पोक्खरिणी ओगाहइ ओगाहिता जलमजणं करेइ करेत्ता हाए कयबलिकम्मे (कच-कोउय-मंगल-पायच्छिते सव्यालंकारविभूसिए। रायगिहं नगरं अनुष्पविसइ अनुष्पविसित्ता रायगिहरस नगरस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव सए गिहे तेणेव पहरेत्य गमणाए तए णं तं धणं सत्यवाहं एमाणं पासित्ता रायगिहे नयरे बहवे नगरनिगम-सेट्ठि-सत्थवाह-पभिइओ आढति परिजाणंति सक्कारेति सम्मार्णेति अमुट्ठेति सरीरकुसलं पुच्छंति तए णं से धणे सत्थवाहे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ जावि य से तत्थ बाहिरिया परिसा भवइ तंजहा- दासा इ वा पेस्सा इ वा भयगा इ वा भाइलगा इ वा साविव णं धणं सत्थवाहं एजमाणं पासइ पायवडिया खेमकुलसं पुच्छइ जावि य से तत्थ अव्भंतरिया परिसा भवइ तंजा पाया इ वा पिया इ वा भाया इ वा भइणी इ वा सावि य णं धणं सत्यवाहं एजमागं पासइ आसणाओ अभुट्ठे कंटाकटिचं अववासिय बाह-प्पभोक्खणं करेइ तए णं या भद्दा धणं सत्यवाह एमाणं पास पासित्ता नो आढाइ नो परिजायइ अणाढायमाणी अपरिजाणमाणी तुसिणीया परम्पुही संइ तए णं से धणे सत्थवाहे मद्दं भारिवं एवं बबासी किण्णं तुझं देवाणु-पिए न तुट्टी वा न हरिसो वा नाणंदो वा जं मए सएणं अत्थसारणं रायकज्जाओ अप्पा चिमोइए तए णं सा भद्दा धणं सत्यवाहं एवं वयासी कहं णं देवाणुपिया मम तुट्ठी वा [ हरिसो वा ] आणंदो वा भविस्सइ जेणं तुमं मम पुत्तधायगस्स | पुत्तमारगस्स अरिस्स वेरियस्स पडणीयस्स] पच्चामित्तस्स ताओं विपुलाओ असण-पाण- खाइम साइमाओ संविलभागं करेसि तए णं से धणे सत्यवाहे मद्द भारिथं एवं व्यासी नो खलु दवाणुप्पिए धम्मो त्ति वा तवोत्ति वा कय-पड़िकया ३ वा लांगजत्ता इ वा नायए इ वा घाडियए इ वा सहाए इ वा सुहि त्ति वा विजयम्स तक्करस्स ताओ विपुलाओ असण- पाण-खाइम साइमाओ संविभागे कए नण्णत्थ सरीरचिंताए, तए णं सा भद्दा धणं सत्यवाणं एवं बुत्ता समाणी हट्ट - चित्तमाणंदिया जाव हरिसवस विसप्पमाणहियया आसणाओ अ अट्टेत्ता कंठाकंठि अवयासेइ खेमकुशलं पुच्छइ पुच्छित्ता व्हाया कियबलिकम्मा कच- कोउय-मंगल) - पायच्छित्ता विपुलाई भोगभोगाई भुंजमाणी बिहरइ तए णं से चिजए तक्करे चारगसालाए तेहिं बंधेहि य वहेहि य कसप्पहारेहि यछिवापहारेहि य लयापहारेहि य] तण्हाए व छुहाए य परज्झमाणे कालमासे कालं किच्चा नरएसु नेरइयत्ताए उववण्णे से णं तत्य नेरइए जाए काले कालो मासे [ गंभीरलीमहरिसे भीसे उत्तासणए परमकण्हे वण्णेणं सेणं तत्थ निघं भीए निच तत्थे निच्चं तसिए निचं परमऽसुहसंबद्धं नरगगति ] वेयणं पचणुभवमाणे विहरइ से णं तओ उव्वट्टित्ता अणादीयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरतं संसारकंतारं अनुपरियट्टिएसइ एवामेव जंबू जो णं अम्हं निग्गंथो वा निग्गंधी वा आयरिय उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारिय पव्वइए समाणे विपुलमणि-पोत्तिय-धण-कणगरयणसारेणं लुग्भइ सो वि एवं चेव ।४७1-41 (५३) तेणं कालेणं तेणं समएणं घेरा भगवंतो जाइसंपन्ना जाव पुव्वाणुपुविं चरमाणा [गामाणुगामं दूइजमाणा सुहंसुहेणं विहरमाणा ] जेणेव रायगिहे नयरे जेणेव गुणसिलए चेइए [तेणामेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता] अहापडिरूवं ओग्यहं ओगिव्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति परिक्षा निग्गवा धम्मो कहिओ तए णं तस्स धणस्स सत्यवाहस्स बहुजणस्स For Private And Personal Use Only
SR No.009732
Book TitleAgam 06 Nayadhammakahao Angsutt 06 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages182
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 06, & agam_gyatadharmkatha
File Size4 MB
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