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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४३ सुयखंयो-१, अन्नपणं-१६ तए णं मुणिसुव्वए अरहा कविलं वासुदेवं एवं वयासी-नो खत्तु देवाणुप्पिया एवं भूयं वा भव्वं वा भविसं वाजण्णं आहंता वा अरहंतं पासंति चकचट्टी वा चक्कटिं पासंति बलदेवा वा बलदेवं पासंति वासुदेवा वा वासुदेवं पासंति तहवि य णं तुर्म कण्हस्स वासुदेवस्स लवणसमुदं मझमझेणं वीईक्यमाणस्स सेयापीयाई धयग्गाई पासिहिसि तए णं से कविले वासुदेवे मुणिमुव्ययं अरहं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता हत्थिखधं दुरुहइ दुरुहित्ता सिग्धं तुरियं चवलं चंड जइणं बेइयं जेणेव बेलाउले तेणेव उवागच्छइ उवागछित्ता कण्हस्स वासुदेवस्स लवणसमुई मझमझेणं वीईवयमाणस्स सेयापीयाइं धयग्गाई पासइ पासित्ता एवं वयइ एस णं मम सरिसपरिसे उत्तमपुरिसे कण्हे वासुदेवे लवणसमुदं मन्झंमज्झेणं वीईवयइत्ति कट्ट पंचयण्णं संखं परामुसइ परामुसित्ता मुहवाबपूरियं करेइ तए णं से कण्हे वासुदेवे कविलस्स वासुदेवस्स संखसई आयण्णेइ आयपणेता पंचवण्णं [संखं परामुसइ परामुसित्ता मुहवाय पूरियं कोइ तए णं दोवि वासुदेवा संखसद्द-सामावारि करेंति तएणं से कविते वासुदेवे जेणेच अवरकंका रापहाणी तेणेव उवागच्छइ उवागछिता अवरकंक्र रायहाणि संभग्ग- तोरण जाव पासइ पासित्ता पउमनाभं एवं ग्यासी-किण्णं देवाणुप्पिया एसा अवरकंका रायहाणी संभण- [पागर-गोरालय-चरिय-तोरणपल्हत्थिवपवरभवण-सिरिधरा सरसरस्स धरणियले] सण्णिवइया तए णं से पउपनाभे कविलं वासुदेवं एवं वयासी-एवं खलु सापी जंबुद्दीवाओ दीवाओ भारहाओ वासाओ इहं हव्यमागम्म कण्हेणं वासुदेवेणं तुब्बे परिभूवं अवरकंका जाव सन्निवाडिया तए णं से कविले वासुदेवे पउपनामस्स अंतिए एयमई सोच्छा पउमनाभं एवं वयाणी-हंभो परमनाभा अपस्थियपस्थिया दुरंतपंतलक्खणा हीणपुनचाउद्दसा सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवजिया किण्णं तुमं न जाणसि मम सरिसपुरिसस्स कण्हस्त वासुदेवस्स विप्पियं करेमाणे-आसुरुते [रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलियं मिडिं निलाडे साहट्ट पउमनाम निच्चिसयं आणवेइ पउमनाभस्स पुत्तं अवरकंकाए रायहाणीए महया महया रायाभिसेएणं अभिसंचइ [अभिसिंचित्ता जामेव दिसि पाउलए तामेव दिसिं] पडिगए।१३१1-125 (१७८) तए णं से कण्हे वासुदेवे लवणसमुई मझमझेणं वीईययमाणे-वीईवद्यमाणे गंगं उवागए उवागम्म ते पंच पंडवे एवं बयासी-गच्छह णं तुभे देवाणुप्पिया गंगं महानई उत्तरइ जाव ताव अहं सुट्ठियं लवणाहियई पासामि तए णं ते पंच पंडवा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं युत्ता समाणा जेणेव गंगा महानदी तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता एगठियाए मागण-गवेसणं करेति करेता एगट्ठियाए गंग महानइं उत्तरंति उत्तरित्ता अण्णमण्णं एवं वयंति-पहणं देवाणुप्पिया कण्हे वासुदेवे गंगं महानई याहाहिं उत्तरित्तए उदाहू नो पहू उत्तरितए ति कटु एगट्टियं नूमेति नूमेत्ता कण्हं वासुदेवं पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा चिट्ठति तए णं से कण्हे वासुदेवे सुविय लवणाहिदई पासइ पासित्ता जेणेव गंगा महानई तेणेव उवागच्छइ उवागछित्ता एगट्टियाए सव्वओ समंता मागणगवसणं करेइ करेत्ता एगट्ठियं अपासमाणे एगाए बाहाए रहं सतुरगं ससारहिं गेण्हइ एगाए वाहाए गंगं महानई बासढि जोयणाई अद्धजोयणं च वित्थिपणं उत्तरिउं पयते यावि होत्था तए णं से कण्हे वासुदेवे गंगाए महानईए बहुमझेदेसभाए संपत्ते समाणे संते तंते परितते बद्धसेए जाए यावि होत्या तए णं तस्स कण्हस्स वासुदेवस्स इमेयारूवे अज्झथिए [चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे] समुप्पञ्जित्था-अहो णं पंच पंडवा महाबलवगा जेहिं गंगा महानई वासट्टि जोपणाइं अद्धजोयणं च For Private And Personal Use Only
SR No.009732
Book TitleAgam 06 Nayadhammakahao Angsutt 06 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages182
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 06, & agam_gyatadharmkatha
File Size4 MB
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