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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुयक्खंघो-१, अजयण-१६ पईव-संब-अनिरुद्ध-निसढ-उम्मुय-सारण-गय-सुमुह-दुम्मुहाईणं जायवाणं अद्धवाणं य कुमारकोडीणं हियय-दइए संथवए कलह-जुद्ध-कोलाहलप्पिए मंडणाभिलासी बहूसु य समरसय-संपराएसु दसणरए समंतओ कलहं सदक्खिणं अनुगवेसमाणे असमाहिकरे दसारवर-वीरपुरिस-तेलोक्कबलवगाणं आमंतेऊण तं भगवई पक्कमणिं गगणपणदछं उप्पइओ गगणमभिलंघयंतो गामागर-नगर-खेड-कब्बड़-मइंच-दोणमुह-पट्टण-संवाह-सहस्सपेडिय थिमियमेइणीयं निभर जणपदं वसुहं ओलेइते रम्मं हस्थिणारं उवागए पंडुरायभवणंसि झत्ति-वेणेग समोवइए तएणं से पंडू राया कछुलनारयं सत्तटुपयाई पन्चुग्गच्छइ पच्चुगछित्ता तिक्खुत्तो आयहिण-पयाहिणं करेइ कोत्ता वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता महरिहेण अग्घेणं पजेणं आसणेणं य उवनिमंतेइ तए णं से कच्छलनारए उदगपरिफोसियाए दभोवरिपच्चस्थुयाए भिसियाए निसीयइ निसीइत्ता पंडुराय-रज्जे यारद्वे य कोसे व कोट्ठागारे य बले य वाहणे य पुरे य]अंतेउरे य कुसलोदंतं पुच्छइ तए णं से पंडू राया कोंती देवी पंच य पंडवा कछुल्लनारयं आढ़ति [परियाणंति अमुटुंति] पजुवासंति तए णं सा दोवई देवी कच्दुल्लनारयं अस्संजयं अविरयं अप्पडिहयपत्रक्खायपावकम्मति कटु नो आढाइ नो परियाणइ नो अदभुढेइ नो पजुवासइ ।१२८1-122 (१७५) तए णं तस्स कच्छुलनारयस्स इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए एत्यिए पणोगए संकप्पे समुप्पनित्था-अहो णं दोवई देवी रूवेण य [जोवण्णेण या लावणेण य पंचहिं पंडवेहि अवत्थद्धा समाणी ममं नो आढाइ [नो परियाणइ नो अब्भुट्टेइ] नो पजुवासइ तं सेयं खलु मम दोवईए देवीए विप्पियं करेत्तए त्ति कट्स एवं संपेहेइ संपेहेत्ता पंडुरायं आपुच्छइ आपुच्छिता उप्पणिं विजं आवाहेइ आवाहेत्ता ताए उकिकडिए [तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्धाए उद्धयाए जइणाए छेयाए] विजाहरगईए लवणसमुदं पझंपज्झेणं पुरत्याभिमुहे वीईवइउं पयत्ते यावि होत्था तेणं कालेणं तेणं समएणं घायइसंडे दीवे पुरस्थिमद्ध-दाहिणड्द-भरहवासे अवरकंका नाम रायहाणी होत्था तत्थ णं अवरकंकाए रायहाणीए पजमनाभे नामं राया होत्था--महयाहिपवंत महंत-मलवमंदर-महिंदसारे वण्णओ तस्स णं पउमनाभस्स रण्णो सत्त देवीसयाई ओरोहे होत्या तस्स णं पज्मनाभस्स रण्णो सुनाभे नाम पुसे जुवरायावि होत्या तए णं से पउमनामे गया अंतोअंतेउरंसि ओरोह-संपरिबुडे सीहासणवरगए विहरइ तए णं से कच्छुल्लनारए जेणेव अवरकंका रायहाणी जेणेव पउमनाभस्स मवणे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता पउमनाभस्स रण्णो भवर्णसि झत्तिवेगेण समोवइए तए णं से पउमनापे राया कच्छुलनारयं एजमाणं पासइ पाप्तित्ता आसणाओ अदभुढेइ अमुढेत्ता अग्घेणं [पजेणं] आसणेणं उवनिमंतेइं तए णं से कच्छुल्लनारए उदगपरिफोसियाए दभोवरिपच्चत्युयाए भिसियाए निसीयइ [निसीइत्ता पउमनाभं रायं रज्जे यरटे य कोसे य कोढगारे य बले य वाहणे य पुरे य अंतेउरे य] कुसलोदंतं आपुच्छइ तए णं से पउपनाभे राया निवगओरेहे जायविम्हए कच्छुलनारयं एवं वयासी-तुमं देवाणुप्पिया यहूणि [गामागर- नगरखेड-कव्वड-दोणमुह-मडंव-पट्टण-आसम निगम-संवाह-सणिवेसाई आहिंडसि दहूर्ण य राईसरतलवर- माडंदिय- कोडुंबिय- इब्म- सेट्टि-सेणावइ-सत्यवाहपभिईणं गिहाई अनुपविससि तं अस्थियाई ते कहिंचि देवाणुप्पिया एरिसए ओरोहे दिट्ठपुव्ये जारिसए णं मम ओरोहे तए णं से कच्छुल्लनारए पउपनाभेणं एवं वुत्ते समाणे ईसिं विहसियं करेइ करेत्ता एवं बयासी-सरिसे णं तुम पउमनाभा तस्स अगडद रस्स For Private And Personal Use Only
SR No.009732
Book TitleAgam 06 Nayadhammakahao Angsutt 06 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages182
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 06, & agam_gyatadharmkatha
File Size4 MB
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