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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुपक्खंपो १, अझघणं - १ ६ अरहंताणं जाव संपत्ताणं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमसित्ता जिणघराओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता जेणेव अंतेउरे तेणेव उवागच्छइ । १२५/- 119 (१७२) तए णं तं दोचई रायवरकन्नं अंतेउरियाओ सब्वालंकारचिभूसियं करेति किं ते वरपायपत्तनेउरा जाव चेडिया चक्कबाल -महयर्ग-विंद-परिक्खित्ता अंतेउराओ पडिनिक भइ पडनिमित्ता जेणेव वाहिरिया उवड्डाणसाला जेणेव चाउग्धंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ उचागच्छ्रिता किड्डावियाए लेहियाए सद्धि चाजग्घंटं आसरहं दुखहइ तए णं से धट्टगुणे कुमारे शेवईए रायवरकन्नाए सारत्थं करेइ तए णं सा दोवई रावयरकन्ना कंपिल्लपुरं नयरं मज्झमज्झेणं जेणेव सर्ववरा मंडवे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता रहूं ठवेई रहाओ पचोरूहइ पत्रोरूहित्ता किड्डावियाए लेहियाए सद्धिं सयंवरामंडवं अनुपविसइ अनुपविसित्ता करयल | परिगहियं दसनहं सिरसावतं मत्थए अंजलिं कट्ट्ट् तेसिं बासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायवरसहस्साणं पणामं करेइ तए सा दोवई रायण्णा एवं महं सिरियामगंडं किं ते पाऊल मल्लिय चंपय जाव सत्तच्छयाईहिं गंधद्धणि मुतं परमसुहफासं दरिसणिज्जं गण्हइ तए णं सा किड्डाविया सुरूवा साभावियपसं वोह हजगरस उत्सुकरं विवित्त-मणि रयण बद्धच्छरूहं वामहत्येणं चिल्लगं दप्पणं गहेऊण सललियं दण्पणसंकेतबिंव-सदंदसिए य से दाहिणेणं हत्थेणं दरिसए पवररायसीहे फुडविसय- विमुद्धरिभियगंभीर महुरमणिया सा तेसि सव्वेसि पत्थिवाणं अम्मापिउवंस सत सामत्थ- गोत्तविक्कंति-कंति-बहुविह आगम-माहम्य-रूवं कुलसीलजागिया कित्तणं करेइ पढमं ताव वण्हिपुंगवागं दसारबर-बीरपुरिस-तेलोक्कबलवगाणं सत्तुसयसहस्स-माणावमद्दगाणं भवसिद्धिय वरपुं - चाणं चिल्लागाणं वल वीरिय- रूव- जोवण्ण- गुण- लावण्णकित्तिया कित्तणं करेइ त ओ पुगो उसे माईणं जायवाणं भणइ सोहागरूवकलिए वरेहि वरपुरिसगंधहत्थीणं जो हु ते होइ हियव-दइओ १३३ तए णं सा दोबई रायावरकण्णगा बहूणं रायवरसहरसाणं मज्झमज्झेणं समइच्छमाणीसमइच्छमाणी पुव्यकयनिवाणेणं चोइजमाणी- चोइजमाणी जेणेव पंच पंडवा तेणेव उवागच्छ उवागच्छिता ते पंच पंडवे तेणं दसद्ध-वण्णेणं कुसुमदामेणं आवेढियपरिवेढिए करेइ करेत्ता एवं बयासी-एए णं मए पंच पंडवा वरिया तए णं ताई वासुदेवपामोक्खाई बहूणि रायसहस्साणि महया-महबा सद्देणं उग्धोसेमाणाई- उग्धोसेमाणाई एवं वयंति-सुवरियं खलु भो दोवईए रायबरकन्नाए त्ति कट्टु सयंवरमंडवाओ पडिनिक्खमति पडिनिक्खमित्ता जेणेव सवा-सया आबासा व उवागच्छति तए णं धट्टजुणे कुमारे पंच पंडवे दोवई च रायवरकण्णं चाउग्धंटे आसरहं दुरुहावेइ दुरुहावेत्ता कंपिल्लपुरं नवरं मज्झमज्झेणं [उवागच्छइ उवागच्छित्ता ] सयं भवणं अनुपविसइ तए णं से दुवए राया पंच पंडवे दीवई च रायवरकण्णं पट्ट्यं दुरुहावेइ दुरूहावेत्ता सेयापीयएहिं कलसेहिं मज्जावेइ मजावेता अग्गिहोमं करावेइ पंचण्हं पंडवाणं दोवईए य पाणिग्रहणं कारावेइ तए णं से दुबए राया दोवईए रायवरकन्नाए इमं एवारूवं पीड़दाणं दलयइ तं जहा अड्ड हिरण्णकोड़ीओ जाव पेक्षणकारी ओ दासचेडीओ अण्णं च विपुलं धण-कणग[रयण-मणि-मोतियसंख-सिलप्पवाल- रत्तरयण संत- सार सावएजं अलाहिं जाव आसत्तमाएओ कुलवंसाओ पकामं दाउ पकामं मोतुं पकामं परिभाएउ ] दलबइ तए णं से दुबए राया ताई वासुदेवपामोक्खाई बहूई रायसहस्साई विपुलेणं असण- पाण- खाइम - साइमेणं पुप्फ-वत्य-गंध- (मलालंकारेण सक्कारेइ For Private And Personal Use Only
SR No.009732
Book TitleAgam 06 Nayadhammakahao Angsutt 06 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages182
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 06, & agam_gyatadharmkatha
File Size4 MB
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