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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवई - ३/३/१८३ (१८३) मंतेति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसंइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-कम्हा णं पंते लवणसमुद्दे चाउद्दसट्ठमुद्दियुष्णमासिणीसु अतिरेगे वड्डइ वा हायइ वा लवणसमुद्दवत्तब्बया नेयव्वा जाव लोयट्टिई लोयाणुमावे सेवं भंते सेवं मंते ति जाव विहरति ।१५४1-154 .तइए सते तइओ उद्देसो समतो. - च उ त्यो - उ सो :(१८४) अणगारे णं मंते भाविअप्पा देवं वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहयं जाणवेणं जामाणं जाणइ-पासइ गोयमा अत्येगइए देवं पासइ नो जाणं पासइ अत्येगइए जाणं पासइ नो देवं पाप्सइ अस्गइए देवं पि पासइ जाणं पि पासइ अत्यंगइए नो देवं पासइ नो जाणं पासइ अणगारे णं भंते भाविअप्पा देवि देउब्वियसमुग्धाएणं समोहयं जाणरूवेणं जामाणि जाणइ-पासइ गोयमा [अत्येगइए देविं पासइ नो जाणं पासइ अत्येगइए जाणं पासइ नो देविं पासइ अत्थेगइए देवि पि पासइ जाणं पि पासइ अत्ये गइए नो देवि पासइ नो जाणं पासइ] अणगारे णं मंते भाविअप्पा देवं सदेवीअं बेउब्वियसमुग्धाएणं समोहयं जागरूवेणं जामाणं जाणइ-पासइ {गोयमा अत्धेगइए देवं सदेवीअं पासइ नो जाणं पासइ अत्येगइए जाणं पासइ नो देवं सदेवीअं पासइ अत्थेगइए देवं सदेवीअं पि पासइ जाणं पि पासइ अत्थेगइए नो देवं सदेवीअं पासइ नो जाणं पासइ] अणगारे णं भंते भाविअप्पा रूखस्स किं अंतो पासइ बाहिं पासइ [गोयमा अत्येगइए रुक्खस्स अंतो पासइ नो बाहिं पासइ अत्येगइए रुक्खस्स वाहिं पासइ नो अंतो पासइ अत्थेगइए रूक्खस्स अंतो पि पासइ बाहिं पि पासइ अत्थेगइए रूक्खस्स नो अंतो पासइ नो बाहिं पासइ] अणगारे णं भंते भाविअप्पा रुक्खस्स किं मूलं पासइ कंदं पासइ [गोयमा अस्थेगइए रूखस्स मूलं पासइ नो कंदं पासइ अत्येगइए लक्खस्स कंदं पासइ नो मूलं पासइ अत्थेगइए रूक्खस्स मूलं पि पासइ कंदं पि पासइ अत्धेगइए रुक्खस्स नो मूलं पासइ नो कंदं पासइ मूलं पासइ खंधं पासइ चउमंगो एवं मलेणं जाव बीजं संजोएयव्वं एवं कंदेण वि समं संजोएयव्वं जाव बीयं एवं जाव पुप्फेणं समं बीयं संजोएयव्वं अणगारे णं मंते भाविअप्पा रूक्खस्स किं फलं पासइ बीयं पासइ चउमंगो ।१५५/-155 (१८५) पभू णं भंते याउकाए एगं महं इत्यिरूवं वा पुरिसरूवं वा आसरूवं वा हत्यिरूवं वा जाणरूवं वा जुग्गरूवं वा गिल्लिरूवं वा घिल्लिरूवं वा सीयरूवं वा संदमाणियरूवं वा विउवितए गोयमा नो इणटे समटे वाउकाए णं विकुव्यमाणे एगं महं पडागासंठियं स्वं विकुम्बइ पभू णं मंते वाउकाए एगं महं पडागासंठियं रूपं विउब्बित्ता अणेगाइं जोयणाई गमितए हंता पभू से मंते किं आइड्ढीए गच्छइ परिइढीए गच्छइ गोयमा आइइढीए गच्छइ नो परिड्ढीए गच्छइ से मंते किं आयकम्मुणा गच्छद परकम्मुणा गच्छइ गोयमा आयकम्पुणा गच्छइ नो परकम्पुणा गच्छइ से भंते किं आयप्पयोगेणं गच्छइ परप्पयोगेणं गच्छइ गोयमा आयप्पयोगेणं गच्छइ नो परप्पयोगेणं गच्छइ] से भंते किं ऊसियोदयं गच्छइ पतोदयं गच्छइ गोयमा ऊसिअदयं पि गच्छइ पतोदयं पि गच्छइ से भंते किं एगओपडागं गच्छइ दुहओपडागं गच्छइ से भंते किं वाउकाए पडागा गोयमा वाउकाए णं से नो खलु सा पडागा १५६ -156 (१८६) पभूणं भंते बलाहए एगं महं हस्थिरूवं वा जाय संदमाणियरूवं या परिणामेत्तए For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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