SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra E www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवई - ३/-/३/१७८ -: त इ ओउ दे सो : (१७८) तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्या जाव परिसा पडिगया तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी मंडिअपुत्ते नामं अनगारे पगइभद्दए जाव पजुवासमाणे एवं बयासी कइ णं भंते किरियाओ पन्नत्ताओ मंडिअपुत्ता पंच किरियाओ पन्नत्ताओ तं जहा काइया अहिगरणिआ पाओसिया पारियावणिआ पाणाइवायकिरिया, काइया णं भंते किरिया कइविहा पत्रत्ता मंडिअपुत्ता दुविहा पन्नत्ता तं जहा- अनुवरय - कायकिरिया य दुप्पउत्तकायकिरिया य, अहिगरणिआ णं भंते किरिया कइविहा पन्नत्ता मंडि अत्ता दुविहा पत्ता तं जहा -संजोयणाहिगरणकिरिया य, निवत्तणाहिगरणकिरिया य पा- ओसिआ णं भंते किरिया कइविहा पत्रत्ता मंडिअयुत्ता दुविहा पत्रता तं जहा - जीवपाओसिआ य अजीवपा ओसिया य पारियावणिआ णं भंते किरिया कइविहा पत्रत्ता मंडिअपुत्ता दुविहा पत्ता तं जहा -सहत्यपारियावणिआय परहत्यपारियावणिआ य. पाणाइवायकिरिया णं भंते किरिया कइविहा पत्रता मंडिअपुता दुविहा पत्रत्ता तं जहा-सहत्यपाणाइवायकिरिया 'य परहत्य पाणाइवायकिरिया य 1१४९1-149 (१७३) पुच्चि भंते किरिया पच्छा वेदणा पुकिं वेदणा पच्छा किरिया मंडिअपुत्ता पुव्वि किरिया पच्छा वेदणा नो पुच्विं वेदणा पच्छा किरिया 19५०/- 160 (१८०) अस्थि णं मंते समणाणं निग्यंयाणं किरिया कज्जइ हंता अस्थि कहणणं भंते समणाणं निग्गंथाणं किरिया कज्जइ मंडिअपुत्ता पमायपचया जोगनिमित्तं च एवं खलु समजाणं निग्गंथाणं किरिया कज्जइ 1949-151 (१८१) जीवे णं भंते सया समितं एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ सुब्भइ उदीरइ तं तं मावं परिणमइ हंता मंडिअपुत्ता जीवे णं सया समित्तं एयति [ वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणमइ] जाब च णं भंते से जीवे सया समितं [एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्मइ उदीरइ ] तं तं भावं परिणमइ तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंत किरिया भवइ नो इण समट्टे से केणणं भेते एवं बुधइ-जावं च णं से जीवे सया समितं [ एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुमइ उदीरइ तं तं भावं परिणमइ तावं च णं तस्स जीवस्स] अंते अंतकिरिया न - भवति मंडिअपुत्ता जावं च णं से जीये सया समित्तं [एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं] परिणमइ तावं च णं से जीवे आरभइ सारभइ समारभइ आरंभ बट्टइ सारंगे वट्टइ समारंभे वलट्टि आरभमाणे सारभमाणे समारभमाणे आरंभ बट्टमाणे सारं वट्टमाणे समारंभे वट्टमाणे बहूणं पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं दुक्खावणयाए सोयावणयाए जूरावणयाए तिप्पाणयाए पिझवणयाए परियावणयाए वट्टइ से तेणड्डेणं मंडिअपुत्ता एवं बुच्चइ-जावं चणं से जीवे सया समित्तं एयति [वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्धइ उदीरइ तं तं भावं] परिणमइ तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया न भवति जीवे णं भंते सया समितं नो एयति [नो वेयति नो चलति नो फंदइ नो घट्टइ नो खुब्मइ नो उदीरइ] नो तं तं भावं परिणमइ हंता मंडिअत्ता जीवे णं सया समित्तं नो एयति नो वेयति नो चलति नो फंदइ नो घट्टड् नो खुब्भइ नो उदीरइ ] नो तं तं भाद परिणमइ जावं च गं भंते से जीवे नो एयति [नो बेयति नो चलति नो फंदइ नो घट्ट नो खुब्भइ नो उदीरइ] नो तं तं भावं परिणमइ तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy