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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पगबई - २/-1919१६ (११६) तए से खंदए अणगारे सममेणं भगवया महावीरेणं अब्मणुण्णाए समाणे हट्ठतुई [चित्तमाणदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण] हियए उठाए उद्वेइ उद्वेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुतो आयाहिण-पयाहिणं करेड करेत्ता वंदइ नमसइ बंदित्ता] नर्मसित्ता सयमेव पंच महाव्बयाई आरुहेइ आरुहेत्ता समणा य समणीओ य खामेइ खामेत्ता तहारूवेहिं थेरेहिं कडाईहिं सद्धिं विपुलं पव्वयं सणियं-सणियं दुहुइ दुहिता मेहघणसत्रिगासं तेवसन्निदातं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेई पडिलेहेता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ पडिले हेत्ता दब्मसंथारगं संधाइ संयरित्ता पुरत्याभिमुहे संपलियंकनिसण्णे करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्यए अंजलिं कट्ट एवं वयासीनमोत्यु णं अरहंताणं भगवंताणं जाव सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं संपत्ताणं नमोत्यु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव सिद्धिगतिनापधेयं ठाणं संपाविउकामस्स चंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए पासउ मे भगवं तस्थगए इहगयं ति कट्ट वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-पुचि पि मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वे पाणाइवाए पचक्खाए जावजीदाए जाव मिच्छादसणसल्ले पच्चस्खाए जावजीवाए इयाणि पि य णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सब्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जावज्जीवाए जाब मिच्छादसणसल्लं पचक्खामि जावज्जीवाए सव्वं असण-पाण-खाइम-साइम-चउब्विहं पि आहारं पञ्चक्खामि जावजीवाए जं पि य इपं सरीरं इढ़ कंतं पियं जाव मा णं वाइयपित्तिय सेभिय-सत्रिवाइय विविहा रोगायका परीसहोवसग्गा फुसंतु त्ति कटु एवं पि णं चरिमेहिं उस्सास-नीसासेहिं वोसिरामि त्ति कट्ठ संलेहणायूसणाझूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकंखमाणे विहरइ तए णं से खंदए अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं येराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिग्जित्ता बहुपडिपुण्णाई दुवालसवासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता पासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सहि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते आणु-पुबीए कालगए।९४/-94 (११७) तए णं ते थेरा भगवंतो खंदयं अणगारं कालगयं जाणित्ता परिनिव्वाणवत्तियं काउसग्गं करेंति करेत्ता पत्त-चीवराणि गेण्हति गेण्हित्ता विपुलाओ पव्वयाओ सणियं-सणियं पच्चोरूहति पञ्चोपहित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति उवागछित्ता समणं भगवं महावीरं वंदति नमसंति वंदिता नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी खंदए नामं अणगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे पिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विणीए से णं देवाणुप्पिएहिं अत्मणुण्णाए समाणे सयमेव पंच महव्वयाणि आरुहेता समणा य समणीओ य खामेत्ता अम्हेहिं सद्धिं विपुलं पब्बयं सणियं-सणियं दुहित्ता जाव पासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सट्ठि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता आलोइया-पडिक्कंते समाहिपते] आणुपुचीए कालगए इसे य से आयारभंडए मंतेति भगवं गोयमे भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी खंदए नामं अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए कहिं उबवणे गोयमाइ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वदासी-एवं खलु गोयमा मम अंतेवासी खंदए नामं अणगारे पगइभद्दए [पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपण्णे अल्लीणे For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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