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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९० भगवई • ३/२/१-११/१०३८ एगिदिया पन्नत्ता मेदो चउक्कओ जहा कण्हलेस्सएगिंदियसए जाव वणस्सइकाइयत्ति कण्हलेस्सअपजत्तासुहमपुढविकाइए णं भंते इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए परस्थिपिल्ले एवं एएणं अभिलायेणं जहेव ओहिउद्देसओजाव लोगचरिमंते तिसव्वत्थ कण्हलेस्सु चेव उववाएयव्यो कहि णं मंते कण्हलेस्सअपजत्ताबादरपुढविक्काइयाणं ठाणा पन्नता एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओहिउद्देसओ जाय तलट्ठियइ ति सेवं भंते सेवं मंते ति एवं एएणं अभिलावणं जहेव पढौ सेढिसयं तहेव एक्कारस उद्देसगा भाणियव्वा ।८५५-9854.1 .चोत्तीसइमे सते विए सते १-११ उद्धेसा समता. मतइयं सतंज (१०३९) एवं नीललेस्सेहि वि सतं १८५५-२-854-2 .चोतीसइमे सते तइयंसतं समतं. कचउत्थं सतंक (१०४०) काउलेस्सेहि विसतं एवं चेव ।८५५-३। -8543 चोत्तीसइमेसते चउत्वं सतंसमतं. पचमं सतंभ (१०४१) भवसिद्धियएगिदिएहिं सतं १८५५-४-854-4 चोत्तीसइमे सते पंरपंसतं सपतं. मष्टुं सतंज (१०४२) कइविहाणं भंते कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया पन्नत्ता जहेव ओहिउद्देसओ कइविहा णं भंते अनंतरोववत्रगा कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया पन्नता जहेच अनंतरोववत्र उद्देसओ ओहियो तहेव कइविहा णं भंते परंपरोववत्रा कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया पन्नत्ता गोयमा पंचविहा परंपरोववन्ना कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया पन्नत्ता भेदो चउक्कओ जाव वणस्सइकाइयत्ति परंपरोववन्नकण्हलेस्सभवसिद्धियअपज्जत्तासुहमपुदविकाइए णं भंते इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिओ उद्देसओ जाव लोयचरिमंते ति सव्वस्थ कण्हलेस्सेसु भवसिद्धिएसु उववाएपब्चो कहि णं भंते परंपरोववत्राकण्हलेस्सभवसिद्धियपजत्ताबादरपुढविकाइयाणं ठाणा पन्नत्ता एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिओ उद्देसओ जाव तुल्लट्ठिइयत्ति एवं एएणं अभिलावणं कण्हलेस्सभवसिद्धियएगिदिएहि वि तहेव एक्कारसउद्देसगसंजुत्तं छठेंसतं।८५५-४१-854-5 .चोत्तीसइमे सते छई सतं सपतं. -: चोत्तीसइमे सते सत्ताई-७-१२ :(१०४३) नीललेस्सभवसिद्धियएगिदिएसु सतं एवं काउलेस्सभवसिद्धियएगिदिएहि वि सतं जहा भवसिद्धिएहिं चत्तारि एवं अभवसिद्धिएहि वि चत्तारि सयाणि भाणियब्वाणि नवरंचरिमअचरिमवज्जा नव उद्देसगा माणियव्या सेसं तं चैव एवं एयाई वारस एगिदियसेढीसताई सेवं मंते सेवं भंतेत्तिजाव विहाइ।८५५-६।- १८५५/-854-6 - 854 चोत्तीसहमे सते ७-१२ सताइंसमताई. For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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