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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७६ भगवई - ३० /-/ १ / ९९९ किरियाबादी किं भवसिद्धीया - पुच्छा गोयमा भवसिद्धीया नो अभवसिद्धीया एवं एएणं अभिलावेणं कण्हपक्खिया तिसु वि समोसरणेसु भयणाए सुक्कपक्खिया चउसु वि समोसरणेसु भवसिद्धीयानो अभवसिद्धीया सम्मदिट्ठी जहा अलेस्सा मिच्छादिट्ठी जहा कण्हपरिक्खया सम्मामिच्छादिट्टी दोसु वि समोसरणेसु जहा अलेस्सा नाणी जाव केवलनाणी भवसिद्धीया नो अभवसिद्धीया अन्नाणी जाव विभंगनाणी जहा कण्हपक्खिया सण्णासु चउसु वि जहा सलेस्सा नोसण्णोवउत्ता जहा सम्मदिट्ठी सवेदगा जाव नपुंसगवेदगा जहन सलेस्सा अवेदगा जहा सम्मदिट्टी सकसायी जाव लोभकसायी जहा सलेस्सा अकसायी जहा सम्मदिट्ठी सजोगी जाव कायजोगी जहा सलेस्सा अजोगी जहा सम्मदिट्ठी सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता जहा सलेस्सा एवं नेरइया वि भाणियव्या नवरं- नायव्वं जं अस्थि एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा पुढविक्काइया सव्यद्वाणेसु वि मझिल्लेसु दोसु समोसरणेसु भवसिद्धीया वि अभवसिद्धीया वि एवं जाव वणस्सइकाइया बेइंदिय-तेइंदिय- चउरिंदिया एवं चैव नवरं सम्मत्ते ओहिनाणे आभिणिबोहियना सुयनाणे-एएसु चेच दोसु मज्झिमेसु समोसरणेसु भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया सेसं तं चेव पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा नेरइया नवरं - नायव्वं जं अत्थि मणुस्सा जहा ओहिया जीवा वाणमंतर - जोइसिय- वैमाणिया जहा असुरकुमारा सेवं भंते सेवं मंते त्ति । ८२६ -825 • तीसइमे सते पढमो उद्देसो समत्तो • -: बी ओ - उ द्दे सो : (१०००) अनंतरोववन्नगाणं मंते नैरइया किं किरियावादी पुच्छा गोयमा किरियावादी वि जाव वेणइयवादी वि सलेस्सा णं भंते अनंतरोववन्नगा नेरइया किं किरियावादी एवं चैव एवं जहेव पढमुद्दे से नेरइयाणं वत्तव्यया तहेव इह वि भाणियव्वा नवरं जं जं अस्थि अनंतशेववन्नगाणं नेरइयाणं तं तं भाणियव्वं एवं सव्वजीवाणं जाव वैमाणियाणं नवरं अनंतशेववन्नगाणं जं जर्हि अत्थितं तहिं भाणियव्वं किरियावादी णं भंते अनंतरोववन्नगा नेरइया किं नेरइवाउयं पकरेंतिपुच्छा गोयमा नो नेरइयाउवं पकरेति नो तिरिक्खजोणियाउयं नो मणुस्साउयं नो देवाउयं पकरेति एवं अकिरियावादी वि अण्णाणियवादी वि वेणइयवादी वि, सलेस्सा णं भंते किरियावादी अनंतराववत्रगा नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेति पुच्छा गोयमा नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवायं पकरेति एवं जाद बेमाणिया एवं सव्वट्टाणेसु वि अनंतरोववन्नगा नेरइया न किंचि वि आउयं पकरेंति जाव अणागारोवउत्तत्ति एवं जाय वैमाणिया नवरं जं जस्स अत्थि तं तस्स भाणियव्यं किरियावादी णं भंते अनंतरोववन्त्रगा नेरइया किं भवसिद्धीया अभयसिद्धीया गोयमा भवसिद्धीया नो अभवसिद्धीया अकिरियावादी णं पुच्छा गोयमा भवसिद्धीया वि अभवसिद्धीया वि एवं अण्णाणियवादी वि वेणइयवादी वि, सलेस्सा णं भंते किरियावादी अनंतराववत्रगा नेरइया किं भवसिद्धीया अमवसिद्धीया गोयमा भवसिद्धीया नो अभवसिद्धीया एवं एएणं अभिलावेणं जव ओहिए उद्देसए नेरइयाणं वत्तव्वया मणिया तहेव इह वि भाणियव्या जाय अणगारोवउत्तत्ति एवं जाव वेमाणियाणं नवरं जं जरस अस्थि तं तस्स भाणियव्वं इमं से लक्खणं-जे किरियावादी सुक्कपक्खिया सम्मामिच्छदिट्ठीया एए सव्वे भवसिद्धीया नो अभवसिद्धीया सेसा सव्वे भवसिद्धीया वि अभवसिद्धीया वि सेवं भंते सेवं मंते त्ति । ८२७ -826 >तीसहमे सते बीओ उद्देसो समत्तो • For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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