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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६७ सतं-२५, उदेसो-१२ अवसेसंतं चेव एवं जाव वेमाणिए सेवं भंते सेवं भंतेति।८१०|-809 पंचवीसहमे सते वारप्तमो उद्देसो समतो पंचवीसइमं सतं समतं. छवीसइमं सत] -: पट मो-उ हे सो : [नमो सुयदेवयाए भगवईए] (९७५) जीवा य लेस्स पक्खिय दिहि अण्णाण नाण सण्णाओ वेय कसाए उवओग जोग एककारस वि ठाणा ॥१०८||-1 (९७६) तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी-जीवा णं मंते पावं कम्मं कि बंधी बंधइ बंधिस्सइ बंधी बंधइ न बंधिस्सइ बंधी न बंधइ बंधिस्सइ बंधी न बंधइ न बंधइस्सइ गोयमा अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ अस्थगतिए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ अत्थेगतिए बंधी न वंधइ वंधिस्सइ अत्थेगतिए बंधी न बंधइन बंधिस्सइ सलेस्सेणं भंते जीवे पावं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ बंधी बंधइन बंधिस्सइ-पुच्छा गोयमा अत्येगतिए बंधी पंघिइ बंधिस्सइ अत्थेगतिए एवं चउभंगो, कण्हलेस्से णं भंते जीवे पावं कम्मं किं बंधी-पुच्छा गोयमा अत्येगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ अत्थेगतिए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ एवं जाव पाहलेस्से सव्वत्य पढम-बितियभंगा सुकलेस्से जहा सलेस्से तहेव चउभंगो अलेस्से णं भंते जीवे पावं कम्मं किं बंधी-पच्छा गोयमा बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ कण्हपरिखए णं भंते जीवे पावं कम्मं-पुच्छा गोयमा अत्येगतिए बंधी पढम-बितिया भंगा सुक्कपक्खिए णं भंते जीवे-पुच्छा गोयमा चउभंगो भाणियव्वो।८११810 (९४७) सम्मदिट्ठीणं चत्तारि भंगा मिच्छादिट्ठीणं पढम-वितिया सम्मामिच्छादिट्ठीणं एवं चेव नाणीणं चत्तारि भंगा आभिणीबोहियनाणीणं जाव मणपजवनाणीणं चत्तारि भंगा केवलनाणीणं चरिमो भंगो जहा अलेस्साणं अण्णाणीणं पढम-बितिया एवं मइअण्णाणीणं सुयअण्णाणीणं विभंगनाणीणं वि आहारसण्णोक्उत्ताणं जाव परिग्गहसण्णोवउत्ताणं पढम-वितिया नोसष्णोवउत्ताणं चत्तारि सवेदगाणं पढप-बितिया एवं इत्यिवेदगा परिसवेदगा नसगवेदगा वि अवेदगाणं चत्तारि, सकसाईणं चत्तारि कोहकसाईणं पढम-बितिया भंगा एवं माणकसायिस्स वि पायाकसायिस्स वि लोमकसायिस्सं चतारि मंगा, अकसायी णं भंते जीवे पावं कम्मं किं बंधीपुच्छा गोयमा अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ अत्येगतिए बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ, सजोगिस्स चउभंगो एवं मणजोगिस्स वि वइजोगिस्स वि कायजोगिस्स वि अजोगिस्स चरिमो सागारोवउत्तेचतारि अणागारोवउत्ते वि चत्तारि भंगा।८१२१-८११ (९७८) नेरइएणं भंते पावं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ गोयमा अत्येगतिए बंधी पढपबितिया सल्लेस्से णं भंते नेरइए पावं कम्म एवं चेव एवं कण्हलेस्से वि नीललेस्से वि काउलेस्से वि एवं कण्हपक्खिए सुक्कपक्खिए सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्टी नाणी आमिणिबोहियनाणी सुयनाणी ओहिनाणी अण्णाणी मइअण्णाणी सुयअण्णाणी विभंगनाणी आहारसण्णोवउत्ते जाव परिग्गहसण्णोवउत्ते सवेदए नपुंसकवेदए सकसायी जाव लोभकसायी सजोगी मणजोगी वइजोगी कावजोगी सागरोवउत्ते अणागारोवउत्ते-एएसु सव्येसु पदेसु पढम-बितिया भंगा भाणियव्या एवं असुरकुमारस्स वि वत्तव्यया भाणियब्बा नवरं-तेउलेसा इत्यिवेदगपरिसवेदगा य अमहिया नपुसंगवेदगा न मण्णंति सेसं तं चेव सव्वत्य पढम-वितिया भंगा एवं For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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