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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवाई . २५/-१२१८६९ आहारुद्देसए जाव निव्वाघाएणं छद्दिसिं वाघायं पडुच्च सिय तिदिसिं सिय चउदिसिं सिय पंचदिति जीवे णं भंते जाइंदब्बाइं वेउब्वियसरीरत्ताए गेण्हइ ताइं किं ठियाई गेण्हइ अट्टियाइं गेण्हइ एवं चेव नवरं-नियम छद्दिसिं एवं आहारगसरीरत्ताए वि जीवे णं भंते जाई दव्वाई तेवगसरीरत्ताए गेण्हइ पुच्छा गोयमा ठियाई गेण्हइ नो अट्ठियाई गेण्हइ सेसं जहा ओरालियसरीरस्स कम्मगसरीरे एवं चेव एवं जाव भावओ वि गेण्हइ जाई दच्याई दव्वओ गेण्हइ ताई किं एगपदेसियाई गेण्हइ दुपदेसियाई गेण्हइ एवं जहा भासापदे जाव आणुपुर्दियं गेण्हइ नो अणाणुपुट्विं गेण्हइ ताई मंते कतदिसिं गेण्हइ गोयमा निव्वाघाएणं जहा ओरालियस्स जीवे णं भंते जाइं दव्वाइं सोइंदियत्ताए गेण्हइ जहा वेउब्वियसरीरं एवं जाव जिब्मिदियत्ताए फासिंदियत्ताए जहा ओरालियसरीरं मणजोगताए जहा कम्मगसरीरं नवरं-नियमं छद्दिप्ति एवं वइजोगत्ताए वि कायजोगत्ताए जहा ओरालियसरीरस्स जीवे णं भंते जाइं दव्याई आणापाणुत्ताए गेण्हइ जहेव ओरालियसरीरत्ताए जाव सिय पंचदिसि सेयं भंते सेवं भंते त्ति ।७२४/-723 .पंचवीसइमे सते बीओ उद्देसो समतो. - त इ ओ-उदे सो :(८७०) कति णं भंते संठाणा पत्रत्ता गोयमा छ संठाणा पन्नता तं जहा-परिमंडले बट्टे तसे चउरंसे आयते अणित्यंथे परिमंडला णं भंते संठाणा दव्वट्ठयाए किं संखेजा असंखेज्जा अनंता गोयमा नो संखेना नो असंखेजा अनंता वट्टा णं भंते संठाण एवं चेव एवं जाव अणित्यंथा एवं पएसठ्ठवाए वि एएसिणं भंते परिमंडल-बट्ट-संस-चउरंस-आयत-अणित्यंधाणं संठाणाणं दव्वट्ठयाए पएसट्टयाए दबट्ट-पएसट्टयाए कयरे कयरेहितो विसेसाहिया वा गोधमा सव्वयोवा परिमंडलसंठाणा दव्वट्ठायए वट्टासंठाणा दबट्टयाए संखेनगुणा चउरंसा संठाणा दबट्ठयाए संखेनगुणा तंसा संठाणा दग्वट्ठयाए संखेनगुणा आयाता संठाणा दव्वट्ठायए संखेनगुणा अणित्यंधा संठाणा दबट्टयाए असंखेनगुणा पएसट्टयाए-सब्बयोवा परिमंडला सठाणा पएसट्टयाए वटा संठाणा पएसट्टयाए संखेनगुणा जहा दब्बट्टयाए तहा पएसट्टयाए वि जाव अणित्यंया संठाणा पएसट्टयाए असंखेनगुणा दबट्टपएसट्टयाए-सव्वत्थोवा परिमंडला संगणा दबठ्याए सो चेव दव्वट्ठयाए गमओ भाणियचो जाव अणित्यंथा संठाणा दवठ्ठयाए असंखेनगुणा अणित्थंहिंतो संठाणेहिंतो दव्वट्ठयाए संखेनगुणा सो चेव पएसट्टयाए गमओ भाणिवव्वो जाय अणित्थंथा संठाणा पएसट्ठायाए असंखेनगुणा ७२५1-724 (८७१) कति णं भंते संठाणा पत्रत्ता गोयमा पंच संठाणा पत्रता तं जहा-परिमंडले जाय आयते, परिमंडला णं भंते संठाणा किं संखेज्जा असंखेना अनंता गोयमा नो संखेजा नो असंखेजा अनंता, वट्टा णं भंते संठाणा किं संखेना एवं चेव एवं जाव आयता इमीसे णं भंते स्यणप्पभाए पुढवीए परिमंडला संठाणा किं संखेजा अंसखेजा अनंता गोयमा नो संखेजा नो असंखेजा अनंता वट्टाणं भंते संठाणा किं संखेजा एवं चेय एवं जाव आयता सक्करप्पभाए णं भंते पुढवीए परिमंडला संठाणा एवं चेव एवं जाव आयता एवं जाव अहेसत्तमाए सोहम्मे णं भंते कप्पे परिमंडला संठाणा एवं जाव अच्चुए गेवेजविमाणे णं भंते परिमंडला संठाणा एवं चेव एवं अनुत्तरविमाणेसु वि एवं इसिपधाराए वि जत्य णं भंते एगे परिमंडले संठाणे जवमझे तत्य परिमंडला संठाणा किं संखेजाअसंखेज्जा अनंता गोयमा नो संखेजा नो असंखेन्ना अनंता वट्टा णं For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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