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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४८ भगवई - १७/19/६९५ E९५) रायगिहे जाव एवं वयासी-उदायी णं मंते हत्यिराया कओहिंतो अनंतरं उव्वत्तिा उदायिहतिधरायत्ताए उपयत्रे गोयमा असुरकुमारहितो देवेहितो अनंतरं उबट्टिता उदायिहस्थिरायत्ताए उववन्ने उदायी णं मते हस्थिराया कालमासे कालं किच्छा कहिं गच्छिहिति कहिं उववजिहिति गोयमा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उककोससागरोवमट्टितयंसि निरयावासंसि नेरइयताए ज्ववजिहिति से णं पते तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गछिहिति कहिं उववनिहिति गोयमा महाविदेहे वासे सिन्झिहिति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति भूयाणंदे णं मंते हत्यिराया कओहिंतो अनंतरं उव्वहिता भूयाणंदे हस्थिरायत्ताए उववन्ने एवं जहेव उदायी जाव अंतं काहिति १५९१1.590 (६९६) पुरिसे णं मंते तलपारुहइ आरुहित्ता तलाओ तलफलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कतिकिरिए गोयमा जाव च णं से परिसे तलमारूहइ आरुहिता तलाओ तलफलं पचालेइ वा पवाडेइ वातावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुढे जेसि पिणं जीवाणं सरीरेहितो तले निव्वत्तिए तलफले निव्वत्तिए ते विणं जीवा काइयाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा अहे णं मंते से तलफले अप्यणो गरुयत्ताए भारियताए गरुयसंभारियत्ताए अहे वीससाए पच्चोवयमाणे जाई तत्थ पाणाइं जाव जीवियाओ ववरोवेति तए णं मंते से पुरिसे कतिकिरिए गोयमा जावं च णं से तलफले अप्पणो गरुयत्ताए जाव जीवियाओ ववरोवेति तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव चउहि किरियाहिं पट्ट जेसि पिणं जीवामं सरीरेहिंतो तले निव्यत्तिए ते विणं जीवा काइयाए जाव चउहिं किरियाहिं पुट्ठा जेसि पिणंजीवाणं सरीरेहिंतो तलफले निव्वत्तिएतेणंजीवा काइयाए जाय पंचहिं किरियाहिं पट्ठा जे विय से जीया अहे वीससाए पच्चोवयमाणस्स उवग्गहे वटुंति ते वियणं जीवा काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुट्ठा पुरिसे णं मंते रुक्खस्स मूतं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कतिकिरिए गोयमा जावं च णं से पुरिसे रुक्खस्स मूलं पचालेइ वा पवाडेइ वातावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पंचर्हि किरियाहिं पुढे जेसि पिय णं जीवाणं सरीरेहितो मूले निव्वत्तिए जाव बीए निव्वत्तिए ते वि य णं जीवा काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुट्ठा अहे णं पते से मूले अप्पणो गरुययाए जाव जीवियाओ वयरोवेति तए णं मंते से पुरिसे कतिकिरिए गोयमा जायं च णं से मूले अप्पणो गरुययाए जाच जीवियाओ दवरोवेति तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव चउहिं किरियाहिं पढे जेसि पिय णंजीवाणं सरीरेहितो कंदे निव्वत्तिएजावबीए निव्यत्तिएते विणं जीवा काइयाए जाव चउहि किरिचाहिं पुट्ठा जेसि पि यणं जीवाणं सरीरेहिंतो मूले निव्यत्तिए ते णं जीवा काइयाए जाय पंचहिं किरियाहिं पुष्टा जे वि य से जीवा अहे वीससाए पच्चोवयमाणस्स उवग्गहे वटृति ते विय जीवा काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पट्टा पुरिसे णं मंते रुक्खस्स कंदे पचालेमाणे या पवाडेमाणे वा कतिकिरिए गोयमा जावं च णं से पुरिसे रुक्खस्स कंदै पचालेइ वा पवाडेइ वा तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पढे जेसि पि य णं जीवाणं सरीरेहिंतो मूले निव्यत्तिए जाय बीए निव्वत्तिए ते वियणं जीवा काइयाए जाय पंचहि किरियाहिं पुट्ठा अहे णं भंते से कंदे अप्पणो गरुययाए जाव जीवियाओयवरोवेति तए णं पते से परिसे कतिकिरिए गोयमा जावं च णं से कंदे अप्पणो गरुययाए जाव जीवियाओ ववरोवेति तायं च णं से परिसे काइयाए जाव चाहिं किरियाहिं पुढे जेसि पि य णं जीवाणं सरीरेहितो मूले निव्वत्तिए खंघे निव्यत्तिए जाय बीए निव्यत्तिए ते विणं जीवा काइयाए जाव चउहि किरियाहिं पट्ठाजेसिं पियणं For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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