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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सतं - १४, उद्देसो-८ ३०३ या जुई इ वा जसे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार- परक्कमे इ वा हंता अत्थि ते णं भंते देवा परलोगस्स ] आराहगा हंता अस्थि । ५२८/-529 (६२७) बहुजणे णं भंते अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं मासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइएवं खलु अप्पडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे धरसए [आहारमाहरेइ घरसए वसहि उवेइ से कहमेयं मंते एवं खलु गोयमा जं णं से बहुजणे अण्णमण्णस्स एवमाइक्खड़ जाब वसहि उवेइ स णं एसमट्ठे अहंपिणं गोयमा एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पण्णवेमि एवं परूवेमि एवं खलु अम्पडे परिच्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए आहामाहरेइ घरसए वसहि उवेइ से केणट्टेणं यंते एवं वुधइ-गोयमा अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स पगइभद्दयाए पगइउवसंतयाए पगइपतणुकोहमाणमायालोहयाए मिउमद्दयसंपण्णयाए अल्लीणयाए विणीचयाए छट्टछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय पगिज्झिय सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं पसत्थेहिं अज्झबसाणेहिं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं अण्णया कयाइ तदावरणिजाणं कम्माणं खओवसणं ईहापूर - मागण - गवेसणं करेमाणस्स वीरियलद्धीए वेउच्वियलद्धीए ओहिनाणली समुप्पण्णा तए णं से अम्मडे परिव्वायए तीए वीरियलद्धीए वेउब्वियलद्धीए ओहिनाणलद्धीए समुप्पणाए जणविम्हावणहेउं कंपिल्लपुरे नगरे घरसए आहारमाहरेइ घरसए वसहि उवेइ से तेणट्टेणं गोयमा एवं दुछइ पहूणं भंते अम्मडे परिव्वायए देवाणुप्पियाणं अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारिचं पव्यत्तए नो इण समङ्कं गोयमा अम्मडे णं परिव्वायए समणोवासए अभिगयजीवा जीवे उवलद्धपुण्णपावे आसव-संवर-निज्जर-किरियाहिगरण-बंध- मोक्खकुसले असहेज देवासुरनागसुवण्ण-जक्ख- रक्खस- किन्नर - किंपुरिस गरुल- गंधव्वमहोरगाइएहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिजे इणमो निग्गंधे पावयणे निस्संकिए निक्कंखिए निव्वितिगिच्छे लठ्ठे गहियट्ठे पुच्छ्रियट्ठे अभिगयडे विणिच्छियट्टे अट्ठिमिंजपेमाणुरागरत्ते अयमाउसो निग्गंधे पावयणे अट्ठे अयं परमट्ठे सेसे अणडे चउद्दस अट्ठमुद्दिपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं अणुपालेमाणे समणे निग्गंधे फासुएसणिज्जेणं असण-पाण- खाइम - साइमेणं वत्थ-पडिग्गहकंबल-पायपुच्छणेणं ओसहसणं पाडिहारिएणं पीढफलगसेज्जा-संधारएणं पडिलामेमाणे सीलव्वय-गुण- वेरमण-पच्चक्खाणपोसहोवयासेहिं अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्येहिं अप्पाणं मावेमाणे विहरइ] जाव दढप्पइण्णी अंत काहिति । ५२९/-530 (६२८) अत्थि णं भंते अव्वाबाहा देवा अव्वाबाहा देवा हंता अस्थि से केणट्टेणं भंते एवं वुधइ-अव्वाबाहा देवा अव्वावाहा देदा गोयमा पपू णं एगमेगे अव्वाबाहे देवे एगमेगस्स पुरिसस्स एगमेगंसि अच्छिपत्तंसि दिव्वं देविड्ढि दिव्वं देवजुति दिव्वं देवाणुभागं दिव्वं बत्तीसतिविहं विहिं उवदंसेलए नो चेव णं तस्स पुरिसस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाएइ छविच्छेयं वा करेइ एसुहुमं च णं उवदंसेज्जा से तेणद्वेणं जाव- अब्याबाह देवा अब्याबाहा देवा १५३०1-531 (६२९) पभू णं भंते सक्के देविंदे देवराया पुरिसस्स सीसं सपाणिणा असिणा छिंदित्ता कमंडलुंसि पक्खिवित्तए हंता पपू से कहमिदाणिं पकरेति गोयमा छिंदिया- छिंदिया चणं पक्खिवेज्जा भिंदिया-भिंदिया च णं पक्खिवेज्जा कोट्टिया-कोट्टिया च णं पक्खिवेज्जा चुण्णियाचुणिया चणं पक्खिवेजा तओ पच्छा खिप्पामेव पडिसंधाएजा नो चेच णं तस्स पुरिसस्स किंचि For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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