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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सतं - १३, उद्देसी ४ २८१ हंता गोयमा इमीसे गं रयणप्पभाए पुढवीए निरयपरिसामंतेसु तं चैव जाव महावेदयतरा चेव एवं जाव असत्तमा १४७७ -478 (५७३) कहि णं भंते लोगस्स आयाममझे पन्नत्ते गोयमा इमीसे स्यणप्पभाए ओवासंतरम्स असंखेभागं ओगाहेत्ता एत्थ णं लोगस्स आयाममज्झे पत्रत्ते कहि णं भंते अहेलोगस्स आयाममज्झे पन्नत्ते गोयमा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढचीए ओवासंतरस्स सातिरेगं अद्धं ओगाहेत्ता एत्य णं अहेलोगस्स आयाममज्झे पत्रते कहि णं भंते उड्ढलोगस्स आयाम्मज्झे पन्नत्ते गोयमा उष्पि सकुमार- माहिंदाणं कप्पाणं हेट्ठि बंभलोए कप्पे रिट्ठविमाणे पत्थडे एत्थ णं उड्ढलोगस्स आयाममज्झे पत्रत्ते कहि णं भंते तिरियलोगस्स आयाममज्झे पत्रते गोयमा जंबुद्दीचे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स बहुमज्झदेसभाए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उबरिमहेट्ठिल्लेसु खुड्डगपयरेसु एत्य णं तिरियलोयगमझे अट्ठपएसिए रूयए पत्रत्ते जओ णं इमाओ दस दिसाओ पवहंति तं जहा- पुरस्थिमा पुरत्थिमदाहिणा दाहिणा दाहिणपचत्थिमा पञ्चत्थिमा पञ्चत्थिमुत्तरा उत्तरा उत्तरपुरस्थिमा उड्ढा अहो एयासि णं भंते दसण्हं दिसाणं कति नामधेजा पन्नत्ता गोयमा दस नाभधेजा पत्रत्तातं जहाइंदा अग्गेयी जमा य नेरई वारुणी य वायव्या सोमा ईसाणी या विमला य तमा य बोद्धव्वा 18961-479 ( ५७४ ) इंदा णं भंते दिसा किमादीया किंपवहा कतिपदेसादीया कतिपदेसुत्तरा कतिपदेसिया किंपजवसिया किंसंठिया पत्रत्ता गोवमा इंदा णं दिसा रूयगादीया रूयगम्पवहा दुपएसादीचा दुपएसुत्तरा लोगं पडुच असंखेजपएसिया अलोगं पडुच अनंतपएसिया लोगं पडुच सादीया सपञ्जवसिया अलोगं पडुच्च सादीचा अपज्जवसिया लोगं पडुच्च मुरवसंठिया अलोगं पडुब सगडुद्धिसंटिया पन्नत्ता, अग्गेयी णं मंते दिसा किमादीया किंपवहा कतिपएसादीया कतिपएसदिपिण्णा कतिपएसिया किंपजवसिया किंसंठिया पन्नत्ता गोयमा अग्गेयी णं दिसा रूयगादीया रुगप्पा एगपएसादीया एगपएसवित्थिष्णा - अनुत्तरा लोगं पडुच असंखेज- पएसिया अलोगं पडु अनंतपएसिया लोगं पडुन सादीया सपज्जवसिया अलोगं पडुन सादीया अपञ्चवसिया छिष्णमुत्तावलिसंठिया पत्रत्ता जमा जहा इंदा नेरई जहा अग्गेयी एवं जहा इंदा तहा दिसाओ चारि जहा अग्गेई तहा चत्तारि विदिताओ विमला णं भंते दिसा किमादीया पुच्छा जहा अग्गेवीए गोयमा विमला णं दिसा रुयगादीया रुयगप्प वहा चउप्पएसादीया दुपएसवित्थिष्णा- अनुत्तरा लोगं पडुछ सेसं जहा अग्गेधीए नवरं रूपगसंठिया पत्रत्ता एवं तमा दि । ४७९/- 480 (५७५) किमियं भंते लोएत्ति पवुच्चइ गोयमा पंचत्थिकाया एस णं एवतिए लोएत्ति पयुच्चइ तं जहा-धम्पत्थिकाए अघम्मत्थिकाए [ आगासत्धिकाए जीवत्थिकाए] पोग्गलत्थिकाए धम्मत्थिकाएगं भंते जीवाणं किं पवत्तति गोयमा धम्मत्थिकाएणं जीवाणं आगमण-गमणमासुम्पेस-पणजोगवइ - जोग-कायजोग जे यावणे तहम्यगारा चला भावा सव्वे ते धम्मत्थिकाए पतंति गइलक्खणे णं धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाएणं भंते जीवाणं किं प्रवत्तति गोयमा अधम्मत्थिकारणं जीवाणं ठाणं-निसीयण-तुयट्टण मणस्स य एगत्तीभावकरणता जे यावणे तहप्पगारा थिरा भावा सच्चे ते अधम्मत्थिकाए पवत्तंति ठाणलक्खणे णं अधम्पत्थिकाए आगासत्धिकाएवं मंते जीवाणं अजीवाणं य किं पवत्तति गोयमा आगासत्थिकाए णं जीवदव्याण य अजीवदव्वाण य भायणभूए ।४८०-१ 1480-1 For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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