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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सतं-१२, उद्देसो-१० २७७ तगा परंपरोयगाढगाजाव अचरिमा जहा परंपरोवरणगा __ इमीसे णं भंते रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु असंखेजवित्थडेसु नरएसु एगसमएणं केवतिया नेरइया उववजंति जाव केवतिया अणागारोवउत्ता उववखंति गोयमा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु असंखेजवित्थडेसु नरएसु एगसमएणं जहण्णेणं एकको वा दो वा तिणि वा उक्कोसेणं असंखेजा नेरइया उववजंति एवं जहेव संखेनवित्थडेसु तिष्णि गमगा तहा असंखेज्जवित्थडेसु वि तिष्णि गमगा भाणियन्वा नवरंअसंखेजा भाणियव्या सेसं तं चेव जाव असंखेना अचरिमा पन्त्रता नवरं-संखेजवित्थडेसु असंखेनवित्थडेसु वि ओहिनाणी ओहिदंसणी य संखेजा उव्वट्टावेयव्वा सेसंतं चैव सक्करप्पभाए णं मंते पुढवीए केवतिया निरयावास सयसहस्सा पनत्ता गोयमा पणुवीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता तेणं भंते किं संखेजविस्थडा असंखेजवित्थडा एवं जहा रयणप्पभाए तहा सक्करप्पभाए वि नवरं-असण्णी तिसु वि गमएस न मण्णति सेसं तं चेव, बालुवप्पभाए णं-पुच्छा गोयमा पन्नरस निरयावाससयसहस्सा पनत्ता सेसं जहा सक्करप्पपाए नाणत्तं लेसासु लेसाओ जहा पढमसए, पंकप्पमाए णं-पुच्छा गोयमा दस निरयावाससयसहस्सा पत्रत्ता एवं जहा सक्करप्पभाए नवरं ओहिनाणी ओहिंदसणी य न उव्वटुंति सेसं तं चेव, धूमप्पभाए णं-पुच्छा गोयमा तिष्णि निरयावाससयसहस्सा एवं जहा पंकप्पभाए तपाए णं भंते पुढवीए केवतिया निरयावासं सयसहस्सा पत्रत्ता गोयमा एगे पंचूणे निरयावाससयसहस्से पन्नत्ते सेसं जहा पंकप्पभाए अहेसत्तमाए णं भंते पुढवीए कति अनुत्तरा महतिमहालवा महानिरया पत्रत्ता गोयमा पंच अनुत्तरा [महतिमहालवा महानिरया पत्रत्ता तं जहा-काले महाकाले रोरुए पहारोरुए अपइट्ठाणे ते णं मंते किं संखेजवित्थडा असंखेजवित्थडा गोयमा संखेनवित्यडे य असंखेजविस्थडाय अहेसत्तमाए णं भंते पुढवीए पंचसु अनुतरेसुमहतिमहालएसु महानिरएसुसंखेजवित्थडे नरए एगमएणं केवतिया नेरइया उववजंति एवं जहा पंकप्पभाए नवरं-तिसुनाणेसुन उववनंति न उव्वदंति पन्नत्तएस तहेव अस्थि एवं असंखेज्जवित्थडेसु वि नवरं-असंखेजाभाणियन्चा।४६९।-470 (५६५) इमीसे णं मंते रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु नरएसु किं सम्मद्दिट्टी नेरइया उववजंति मिच्छदिट्ठी नेरइया उववज्रति सम्मामिच्छदिट्ठी नेरइया उववझंति गोयमा सम्पदिट्ठी यि नेरइया उववझंति मिच्छदिट्ठी दि नेरइया उववज्रति नो सम्मामिच्छदिट्ठी नेरइया उववजंति इमीसे गंभंते रयणप्पभा पुढवीए तीसाए निरयावाससयहस्सेसु संखेजवित्थडेसु नरएसु किं सम्मदिट्ठी नेरइया उववदृति एवं चेव इमीसे णं भंते रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयहस्सेसु संखेजवित्थडा नरगा किं सम्मद्दिष्ट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया मिच्छदिट्ठीहि नेरइएहिं अविरहिया सम्मामिच्छदिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया गोयमा सम्भदिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया मिच्छदिट्ठीहिं वि नेरइएहिं अविरहिया सम्मामिच्छदिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया विरहिया वा एवं असंखेजवित्थडेसु वि तिष्णि गमगा भाणियव्या एवं सक्करप्पभाए वि एवं जाव तमाए वि अहेसत्तमाए णं मंते पुढवीए पंचसु अनुत्तरेसुजाव संखेजवित्थडे नरए किं सम्मद्दिट्ठी नेरइया-पुच्छा गोयमा सम्मट्टिी नेरइया न उववज्रति मिच्छदिट्ठी नेरइया उववजंति सम्मामिच्छदिठ्ठी नेरइया न उववजंति एवं उव्वटृति वि अविरहिए जहेव रयणप्पभाए एवं असंखेजवित्थडेसु वि तिण्णि गमगा ।४७०1-471 For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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