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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७५ सतं-१२, उसो-१० सिय नोआया सिय अवत्तव्यं-आयाति य नोआयाति य सिय आया य नोआया य सिय आया य अवत्तव्वं नोआया य अवत्तव्वेणं य सिय आया य नोआयाय अवत्तव्यं [सिय आया य नोआया य अवत्तब्वाइं सिय आया य नोआयाओय अवतव्वं सिय आया य नोआयाओय अवत्तव्वाई सिय आयाओ य नोआया य अवत्तव्यं सिय आयाओ य नोआया य अवत्तव्वाई सिय आयाओ य नोआयाओ य अवत्तव्यं से केणटेणं मंते एवं बुच्चइ-पंचपएसिए खंधे सिय आया जाव सिय आयाओ य नोआयाओ य अवत्तव्वं गोयमा अप्पणो आदिढे आया परस्स आदिढे नोआया तदुभयस्स आदिढे अवत्तव्यं देसे आदितु सब्मावपञ्जवे देसे आदिडे असङमावपञ्जवे-एवं दुयगसंजोगे सव्वेपडंति तियसंजोगे एक्को न पडइ छप्पएसियस्स सव्येपडति जहा छप्पएसिए एवं जाव अनंतपएसिए सेवं मंते सेवं मंते ति जाब विहरइ।४६८३-469 गारसमे सते दसमो उद्देसो समत्तो गारसमंसतं समतं. तेरसमं - सत्तं - पट मो-उदे सो :(५६३) पुढवी देव मणंतर पुढवी आहारमेव उववाए भसा कामणगारे केयाघडिया समुग्धाए १७३||-1 (५६४) रायगिहे जाव एवं वयासी कति णं मंते पुढवीओ पन्नत्ताओ गोयमा सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ तं जहा-रयणप्पभा जाव अहेसत्तपा इमीसे णं मंते रयणप्पभाए पुढवीए केवतिया निरयावाससयसहस्सा पन्नता गोयमा तीसं निरयावाससयसहस्सा पत्रत्ता ते णं मंते किं संखेनवित्यडा असंखेजवित्थडा गोयमा संखेजवित्थडा वि असंखेजविस्थडा वि इमीसे णं मंते रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेन्जवित्थडेसु नरएसु एगसमएणं केवतिया नेरइया उववजंति केवतिया काउलेस्सा उववजंति केवतिया कण्हपक्खिया उववजंति केवतिया सुक्कपक्खिया उववजंति केवतिया सण्णी उववनंति केवतिया असण्णी उववजंति केवतिया पवसिद्धिया उववजंति केवतिया अभवसिद्धिया उववजंति केवतिया आमिणिबोहियनाणी उववनंति केवतिया सुयनाणी उववजंति केवतिया ओहिनाणी उववजंति केवतिया मइअन्नाणी उवयजंति केवतिया सुयअन्नाणी उयवति केयतिया विन्मंगनाणी उववजंति केवतियाचक्खुदंसणी उववजंति केवतिया अचक्खुदसणी उववजंति केवतिया ओहिदसणी उववनंति केवतिया आहारसष्णोवउत्ता उववजंति केवतिया भयसण्णोवउत्ता उववनंति केवतिया मेहुणसपणोवउत्ता उववनंति केवतियापरिग्गहसण्णोवउत्ता उववजंति केवतिया इत्यिवेदगा उववजंति केवतिया पुरिसवेदगा उववनंति केवतिया नपुंसगवेदगा उववअंति केवतियाकोहकसाई उववजंतिजाव केवतिया लोभकसाई उववझंति केवतिया सोइंदियोवउत्ता उववझंति जाय केयतिया फासिदियोवउत्ता उववजंति केवतिया नोइंदियोवउत्ता उववज्रति केवतिया मणजोगी उववनंति केवतिया बइजोगी उवयझंति केवतिया कायजोगी उववजंति केवतिया सागारोवउत्ताउववजंति केवतिया अणागारोवउत्ता उववजंति __ गोयमा इमीसे रयणप्पभा पुढवीए तीसाए निरयावासयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु नरएस जहण्णेणं एकको वा दो वा तिण्णि वा उक्कोसेणं संखेजा नेरइया उपवनंति जहणेणं एक्कोवा दो दा तिणि या उक्कोसेणं संखेज्जा काउलेस्सा उववजंति जहन्नेणं एकको वा दो वा तिणि वा For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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